यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड
यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित भगवान यम और देवी यमुना को समर्पित है। यह मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह वह स्थान है, जहाँ से यमुना नदी निकली है। यहाँ पर प्रतिवर्ष गर्मियों में तीर्थ यात्री आते हैं। यमनोत्री धाम हिन्दुओ के चार धामों में से एक है। इस मंदिर को ‘माता यमुनोत्री का मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है।
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अवस्थिति
यमुनोत्री (31'.0100° N, 78'.4500° E) भारत के उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। ऋषिकेश से २१० किलोमीटर और हरिद्वार से २५५ किलोमीटर सड़क मार्ग से जुड़ा समुद्रतल से १० हज़ार फीट ऊंचा एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ है।
यमुनोत्री-महिमा
इसकी महिमा पुराणों ने यों गाई है-
सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी। आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।
तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रता सर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम |
अर्थात (जहाँ से यमुना (नदी) निकली है वहां स्नान करने और वहां का जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!)
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सूर्य-पुत्री
सूर्यतनया का शाब्दिक अर्थ है सूर्य की पुत्री अर्थात् यमुना। पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं। भ्रातृ द्वितीया (भैयादूज | भाई दूज) पर यमुना के दर्शन और मथुरा में स्नान करने का विशेष माहात्म्य है। यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है। पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है।
प्रयागकूले यमुनातटे वा सरस्वती पुण्यजले गुहायाम्। यो योगिनां ध्यान गतोsपि सूक्ष्म तस्मै नम:।।
कहा गया है-जो व्यक्ति यमुनोत्तरी धाम आकर यमुनाजी के पवित्र जल में स्नान करते हैं तथा यमुनोत्तरी के सान्निध्य खरसाली में शनिदेव का दर्शन करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यमुनोत्तरी में सूर्यकुंड, दिव्यशिला और विष्णुकुंड के स्पर्श और दर्शन मात्र से लोग समस्त पापों से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त हो जाते हैं।
इतिहास
एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनि का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से251किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से131किलोमीटरपश्चिम -उत्तर में 3185मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से5मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है।यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए "ओम् सदृश "ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है,वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है।वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।(यमुनोत्तरी का मार्ग) हनुमान चट्टी (2400मीटर)यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है।इसके बाद नारद चट्टी,फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है।इन चट्टीयों में महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है,क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं।कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है।1946में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी,और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है।पहले हनुमान चट्टी से यमुनोत्तरी तक का मार्ग पगडंडी के रूप में बहुत डरावना था,जिसके सुधार के लिए खरसाली से यमुनोत्तरी तक की 4मील लम्बी सड़क बनाने के लिए दिल्ली के सेठ चांदमल ने महाराजा नरेन्द्रशाह के समय50000रुपए दिए।पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक "छाया पथ "भी यमुनोत्तरी आता था।यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है।जहाँ भैंरो का मन्दिर है।अनेक पुराणों में यमुना तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण(39/9_13)में यमुनोत्तरी माहात्म्य का वर्णन है।केदारखण्ड(9/1-10)में यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है।इसे सूर्यपुत्री,यम सहोदरा और गंगा- यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है।ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को"यमुना प्रभव"तीर्थ कहा गया है।ॠग्वेद (7/8/19)मे यमुना का उल्लेख है।महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी,तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे,तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।हेमचन्द्र ने अपने "काव्यानुशान "मे कालिन्द्रे पर्वत का उल्लेख किया है,जिसे कालिन्दिनी(यमुना) के स्रोत प्रदेश की श्रेणी माना जाता है।डबराल का मत है कि कुलिन्द जन की भूमि संभवतः कालिन्दिनी के स्रोत प्रदेश में थी।अतः आज का यमुना पार्वत्य उपत्यका का क्षेत्र, जो रंवाई,जौनपुर जौनसार नामों से जाना जाता है,प्राचीनकाल में कुणिन्द जनपद था।"महामयूरी"ग्रंथ के अनुसार यमुना के स्रोत प्रदेश में दुर्योधन यक्ष का अधिकार था।उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है।यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है।काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहाँ शक रहते हैं,वहाँ यम तुषार- कीर भी है।इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।(तप्तकुण्ड व अन्य कुण्ड) यमुनोत्तरी पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण यहाँ के तप्तकुण्ड हैं।इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20फीट की दूरी पर है,केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड एवं तापक्रम लगभग195डिग्री फारनहाइट है,जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है।इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे "ओम् ध्वनि"कहा जाता है।इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है।जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं,हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को "स्टीम कुकिंग"कहा जाता है।सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है।जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है,इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है।इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है,ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है।यमुनोत्तरी से 4मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है।विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहाँ नहीं पहुँच सकता।स्थानीय लोगों का कहना है कि आजसे लगभग 60साल पहले विष्णुदत्त उनियाल वहाँ गए थे।लौटते समय उन्होंने वहाँ एक शिवलिंग देखा।जैसे ही वह उसे उठाने के लिए हुए वह गायब हो गया।
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भूगोल
चार धामों में से एक धाम यमुनोत्री से यमुना का उद्गम मात्र एक किमी की दूरी पर है। यहां बंदरपूंछ चोटी (6315 मी) के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है। गढ़वाल हिमालय की पश्चिम दिशा में उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री चार धाम यात्रा का पहला पड़ाव है। यमुना पावन नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत है। तीर्थ स्थल से एक कि. मी. दूर यह स्थल 4421 मी. ऊँचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण श्रद्धालू इस उद्गम स्थल को देखने से वंचित रह जाते हैं। यमुनोत्री का मुख्य मंदिर यमुना देवी को समर्पित है। पानी के मुख्य स्रोतों में से एक सूर्यकुण्ड है जो गरम पानी का स्रोत है।
मंदिर
मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ है जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री मंदिर परिशर 3235 मी. उँचाई पर स्थित है। यँहा भी मई से अक्टूबर तक श्रद्धालुओं का अपार समूह हरवक्त देखा जाता है। शीतकाल में यह स्थान पूर्णरूप से हिमाछादित रहता है। मोटर मार्ग का अंतिम विदुं हनुमान चट्टी है जिसकी ऋषिकेश से कुल दूरी 200 कि. मी. के आसपास है। हनुमान चट्टी से मंदिर तक 14 कि. मी. पैदल ही चलना होता था किन्तु अब हलके वाहनों से जानकीचट्टी तक पहुँचा जा सकता है जहाँ से मंदिर मात्र 5 कि. मी. दूर रह जाता है।
देवी यमुना की तीर्थस्थली, यमुना नदी के स्रोत पर स्थित है। यह तीर्थ गढवाल हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसके शीर्ष पर बंदरपूंछ चोटी (3615 मी) गंगोत्री के सामने स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नहीं है क्योंकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है। देवी यमुना माता के मंदिर का निर्माण, टिहरी गढवाल के महाराजा प्रताप शाह द्वारा किया गया था। अत्यधिक संकरी-पतली युमना काजल हिम शीतल है। यमुना के इस जल की परिशुद्धता, निष्कलुशता एवं पवित्रता के कारण भक्तजनों के ह्दय में यमुना के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति उमड पड़ती है। पौराणिक आख्यान के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। देवी यमुना के मंदिर तक चढ़ाई का मार्ग वास्तविक रूप में दुर्गम और रोमांचित करनेवाला है। मार्ग पर अगल-बगल में स्थित गगनचुंबी, मनोहारी नंग-धडंग बर्फीली चोटियां तीर्थयात्रियों को सम्मोहित कर देती हैं। इस दुर्गम चढ़ाई के आस-पास घने जंगलो की हरीतिमा मन को मोहने से नहीं चूकती है। सड़क मार्ग से यात्रा करने पर तीर्थयात्रियों को ऋषिकेश से सड़क द्वारा फूलचट्टी तक 220 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। यहां से 8 किमी की चढ़ाई पैदल चल कर अथवा टट्टुओं पर सवार होकर तय करनी पड़ती है। यहां से तीर्थयात्रियों की सुविधाओं के लिए किराए पर पालकी तथा कुली भी आसानी से उपलब्ध रहते हैं।
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यमुनोत्री का प्रधान मंदिर
यमुनोत्तरी मंदिर के कपाट वैशाख माह की शुक्ल अक्षय तृतीया को खोले जाते और कार्तिक माह की यम द्वितीया को बंद कर दिए जाते हैं। यमुनोत्तरी मंदिर का अधिकांश हिस्सा सन १८८५ ईस्वी में गढ़वाल के राजा सुदर्शन शाह ने लकड़ी से बनवाया था, वर्तमान स्वरुप के मंदिर निर्माण का श्रेय गढ़वाल नरेश प्रताप शाह को है।
भूगर्भ से उत्पन्न ९० डिग्री तक गर्म पानी के जल का कुंड सूर्य-कुंड और पास ही ठन्डे पानी का कुंड गौरी कुंड यहाँ सबसे उल्लेखनीय स्थल हैं|
मंदिर के कपाट
अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर मंदिर के कपाट खुलते हैं और दीपावली (अक्टूबर-नंवबर) के पर्व पर बद हो जाते हैं। यमुनोत्री मंदिर के आसपास के क्षेत्र में गर्मजल के अनेक सोते है। ये सोते अनेक कुंडों में गिरते हैं इन कुंडों में सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्यकुंड है। यह कुंड अपने उच्चतम तापमान के लिए विख्यात है। भक्तगण देवी को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे की पोटली में चावल और आलू बांधकर इसी कुंड के गर्म जल में पकाते है। देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाये हुए चावलों को प्रसाद के रूप में भक्त जन अपने अपने घर ले जाते हैं। सूर्यकुंड के निकट ही एक शिला है जिसे दिव्य शिला कहते हैं। इस शिला को दिव्य ज्योति शिला भी कहते हैं। भक्तगण भगवती यमुना की पूजा करने से पहले इस शिला की पूजा करते हैं।
ग्रीष्मकाल- दिन के समय सुहावना तथा रात्रिकाल के दौरान सर्द। न्यूनतम तापमान 6 डिग्री सें0 तथा अधिकतम 20 डिग्री सें.
शीतकाल- सिंतबर से नवंबर तक, दिन के समय सुहावना तथा रात के समय काफी अधिक सर्द। दिसंबर से मार्च तक समस्त भाग हिमाच्छादित तथा तापमान शून्य से भी कम
वेश भूषा- मई से जुलाई तक हल्के ऊनी। सितंबर से नवंबर तक भारी ऊनी
तीर्थयात्रा का समय- अप्रैल से नवंबर
भाषा- हिंदी, अंग्रेजी तथा गढवाली
आवास- यमुनोत्री तथा यात्रा मार्ग से समस्त प्रमुख स्थानो पर जीएमवीएन यात्री विश्राम गृह, निजी विश्राम गृह तथा धर्मशालाएं उपलब्ध हैं
वायुमार्ग- देहरादून स्थित जौलिग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। यह मार्ग संख्या 1 ए से होकर यमुनोत्री तक जाता है। कुल दूरी 210 किलोमीटर है
रेल- मार्ग संख्या 1ए से होते हुए अंतिम रेल स्टेशन ऋषिकेश से 231 किलोमीटर तथा देहरादनू से 185 किलो मीटर की दूरी पर हैं
सड़क मार्ग- ऋषिकेश से बस, कार अथवा टैक्सी द्वारा नरेंन्द्र नगर होते हुए यमुनोत्री के लिए 228 किलो मीटर की दूरी तय करते हुए फूलचट्टी तक पहुंचा जा सकता है। फूलचट्टी से मंदिर तक पहुंचने के लिए 8 किलो मीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं
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दूरियाँ-
मार्ग संख्या 1 ए - हरिद्वार-देहरादूनः यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किलो मीटर की पैदल चढ़ाई सहित 237 किलो मीटर) हरिद्वार (52 किमी), देहरादून (35 किमी), मसूरी (12 किमी), केम्प्टी फाल (17 किमी), यमुनापुल (12 किमी), नैनबाग (12 किमी), दामा (19 किमी), कुवा (12 किमी), नौगांव (9 किमी), बडकोट (9 किमी), गंगनाणी (15 किमी), कुथूर (3 किमी), पाल गाड (9 किमी), सयानी चट्टी (5 किमी), राणाचट्टी (3 किमी), हुनमानचट्टी (3 किमी), बनास (2 किमी), फूलचट्टी (3 किमी पैदल चढ़ाई), जानकी चट्टी (5 किमी पैदल चढ़ाई), यमुनोत्री
मार्ग संख्या 2 ए - हरिद्वार - ऋषिकेश- यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किमी की पैदल चढ़ाई सहित 260 किमी) ऋषिकेश-यमुनोत्री (फूलचट्टी से 8 किमी की पैदल चढ़ाई सहित-236 किमी) हरिद्वार-(24 किमी), ऋषिकेश (16 किमी), नरेन्द्रनगर (45 किमी), चंबा (टिहैंरी गढवाल,17 किमी), दुबट्टा (40 किमी) धरासू (18 किमी), ब्रह्माखल (43 किमी), बारकोट बारकोट से यमुनोत्री (57 किमी), मार्ग संख्या 1
Yamunotri Temple Uttarakhand
Yamunotri Temple is dedicated to Lord Yama and Goddess Yamuna, located in the state of Uttarakhand. This temple is situated in the west of the Garhwal Himalayas at an altitude of 3235 meters above sea level. This is the place from where the river Yamuna originated. Pilgrims come here every year in summer. Yamanotri Dham is one of the four Dhams of Hindus. This temple is also known as 'Mata Yamunotri Ka Mandir'.
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Location
Yamunotri (31'.0100° N, 78'.4500° E) is located in Uttarkashi district of Uttarakhand state, India. Connected by road 210 km from Rishikesh and 255 km from Haridwar is a major Hindu pilgrimage 10 thousand feet above sea level.
Yamunotri-Glory
Its glory has been sung by the Puranas like this-
Sarvalokasya Janani Devi Twam Papanashini. Avahayami Yamune Twam Shri Krishna Bhamini.
Tatra snatava cha pitva cha yamuna tatra nistrata sarva sin vinirmuktaḥ punatyasaptam kulam.
Means (by taking a bath and drinking the water from where the Yamuna (river) has emerged, a man becomes free from sin and his seven clans become pure!)
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Daughter of the sun
The literal meaning of Suryatanya is the daughter of Surya i.e. Yamuna. In Puranas, Yamuna has been called Surya-Putri. Yamuna, Yama, Shani Dev and Vaivaswat Manu appeared from the two wives named Chhaya and Sangya of the Sun. Thus Yamuna is the sister of Yamraj and Shanidev. On Bhratri Dwitiya (भैयादूज | भाई दूज) there is special greatness of seeing Yamuna and taking bath in Mathura. Yamuna first came in the form of water on Mount Kalind, hence one of her names is Kalindi. Saptarishi Kund, Sapt Sarovar is located on top of Kalind Parvat. Yamunottari Dham has been said to provide all the achievements. It is mentioned in Puranas that Kalindi Yamuna is also one of the favorite queens of Lord Krishna. The oldest temple of Yamuna's brother Shanidev is in Kharsali.
Prayagkule Yamunatta or Saraswati Punyajale Guhayam. Yoginan's meditation gotospi subtle Tasmai Namah.
It has been said - the person who comes to Yamunottari Dham and bathes in the holy water of Yamunaji and sees Lord Shani in Kharsali near Yamunottari, all his troubles go away. In Yamunottari, by mere touch and darshan of Suryakund, Divyashila and Vishnukund, people get freed from all sins and attain the supreme abode.
History
According to a legend, it was the abode of Asita Muni. The present temple was built by Maharani Guleria of Jaipur in the 19th century. It has been destroyed once due to earthquake, which was reconstructed. Yamunottari Tirtha is located in Rajgarhi (Barkot) tehsil of Uttarkashi district, 251 km north-west of Rishikesh and 131 km west-north of Uttarkashi, at an altitude of 3185 meters. This pilgrimage is situated 5 miles below the Yamunottari Glacier on a hard rock between two fast-flowing water streams. Here The amazing wonder of nature is the release of hot water streams from the rock with the sound of "Om" like "Om". Where there is a source of hot water between two rocks at the foothill, there is a temple of Yamunaji in a narrow place. In fact temperate Yamunottari is the meeting point of the water. (Yamunottari route) Hanuman Chatti (2400 m) is the last motor station to go to Yamunottari pilgrimage. After this there is a walking route through Narad Chatti, Phool Chatti and Janaki Chatti to Yamunottari. Janaki is important in these chattis. There is a chatti, because most of the travelers stay here for the night due to the good arrangements for night rest. Some people consider it as Janaki Chatti in the name of Sita, but it is not so. But a huge Dharamshala was built there, and then in his memory the Beef village became famous as Janaki Chatti. There is a temple of Lord Narayan in this village. Earlier the route from Hanuman Chatti to Yamunottari was very scary as a footpath, after which it was improved. Seth Chandmal of Delhi gave 50,000 rupees at the time of Maharaja Narendra Shah to build a 4-mile-long road from Kharsali to Yamunottari. A "Shadow Path" also used to come to Yamunottari from Gangotri to Harshil. Where there is a temple of Bhairon. In many Puranas there is a description of Yagya performed on the banks of Yamuna and in Kurmapurana (39/9_13) the greatness of Yamunottari. There is a special mention of the descent of Yamuna in Kedarkhand (9/1-10). Yama Sahodara and Ganga-Yamuna have been called Vaimatrik sisters. In Brahmand Purana, Yamunottari has been called "Yamuna Prabhava" Tirtha. Yamuna is mentioned in Rigveda (7/8/19). According to Mahabharata, when Pandavas pilgrimage to Uttarakhand When they came to Yamunotri, then Gangotri then proceeded towards Kedarnath-Badrinathji, since then the journey of Uttarakhand is done anticlockwise. Dabral is of the opinion that the land of Kulind people was probably in the source region of Kalindini. Therefore, the area of today's Yamuna mountain valley, which is known by the names Ranwai, Jaunpur Jaunsar, was Kunind district in ancient times. According to Mahamayuri, Duryodhana Yaksha had authority in the source region of the Yamuna. Its proof is that Duryodhana is still worshiped in Panchagayi and Geeth Patti of the Yamuna valley. Kavyamimansakar has written in the 10th century that in the northern regions of the Yamuna where Shakas live, Yama Tushar-Keer is also there. In this way Yamunottari became important from both religious and historical point of view. The main attractions here are Taptakund. The source of the hottest water pool is about 20 feet away from the temple, Kedarkhand described Brahmakund, now its name is Suryakund and the temperature is about 195 degree Fahrenheit, which is the hottest among all Taptakunds of Garhwal. A special sound emerges, which is called "Om Dhvani". This source has a slightly deeper place. In which potatoes and rice are cooked when put in a potli, similar taptakund located in Manikarna Tirtha in Parvati valley of Kullu district of Himachal Pradesh This is called "steam cooking". There is Divya Shila near Suryakund. Where hot water takes a slope like a drain and goes to the lower Gaurikund, this kund was built by Jamunabai, hence it is also called Jamunabai Kund. It has been made so that the hot water of Suryakund cools down a bit after spreading in it and the pilgrims can take bath. There is Taptakund below Gaurikund as well. Saptarshi Kund is situated on an inaccessible hill 4 miles above Yamunotri. It is believed that the Saptarishis did penance on the banks of this pool. Due to being inaccessible, an ordinary person cannot reach here. Local People say that about 60 years ago, Vishnudutt Uniyal went there. While returning, he saw a Shivling there. As soon as he was about to lift it, it disappeared.
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Geography
The origin of Yamuna is only one kilometer away from Yamunotri, one of the Char Dhams. Here it is very exciting to see the Yamunotri Glacier spread over the western end of the Bandarpoonch peak (6315 m). Yamunotri is the first stop of the Char Dham Yatra located in the Uttarkashi district in the western direction of the Garhwal Himalayas. The source of the holy river Yamuna is the Kalindi mountain. One kilometer from the pilgrimage site. m. This place is 4421 meters away. It is located at high altitude. Due to the difficult climb, devotees are deprived of seeing this place of origin. The main temple of Yamunotri is dedicated to Goddess Yamuna. One of the main sources of water is Suryakund which is a source of hot water.
Temple
There is a huge rock pillar in the temple premises which is known as Divya Shila. Yamunotri Temple Parisar 3235 m. It is located at high altitude. Here also, from May to October, a huge group of devotees is seen all the time. This place remains completely snow covered in winter. The last point of the motorway is Hanuman Chatti, whose total distance from Rishikesh is 200 kms. m. is around. 14 kms from Hanuman Chatti to the temple. m. Earlier one had to walk on foot but now one can reach Jankichatti by light vehicles from where the temple is only 5 kms. m. remains away.
The pilgrimage center of Goddess Yamuna, is situated at the source of river Yamuna. This pilgrimage is situated in the western part of the Garhwal Himalayas. At its top, the Bandarpunch peak (3615 m) is located opposite Gangotri. The actual source of Yamunotri is a frozen lake and glacier (Champasar Glacier) situated on the Kalind Parvat at an altitude of 4421 meters above sea level. It is not possible to go beyond about 1 km from this place as the route here is very difficult. This is the reason why the temple of the goddess is situated at the foot of the hill. The temple of Goddess Yamuna Mata was built by Maharaja Pratap Shah of Tehri Garhwal. The extremely narrow-skinned Yumna Kajal is ice cold. Due to the purity, impeccability and purity of this water of Yamuna, deep devotion and devotion towards Yamuna overflows in the hearts of the devotees. According to the legend, Asit Muni's Parnakuti was at this place. The way of climbing up to the temple of Goddess Yamuna is really treacherous and thrilling. Skyscraper, graceful naked snow peaks situated side by side on the route mesmerize the pilgrims. The greenery of the dense forests around this difficult climb does not fail to fascinate the mind. If traveling by road, the pilgrims have to cover a distance of 220 km from Rishikesh to Phoolchatti by road. From here one has to climb 8 km on foot or ride on ponies. From here palanquins and coolies are also easily available on rent for the convenience of the pilgrims.
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Main temple of Yamunotri
The doors of Yamunottari temple are opened on Shukla Akshaya Tritiya of Vaishakh month and are closed on Yama Dwitiya of Kartik month. Most of the Yamunottari temple was built of wood by King Sudarshan Shah of Garhwal in 1885 AD, the credit for the construction of the temple in the present form goes to Garhwal Naresh Pratap Shah.
Surya-kund, a spring of hot water up to 90 degrees from underground, and Gauri Kund, a nearby cold water spring, are the most notable places here.
Temple doors
The doors of the temple open on the auspicious festival of Akshaya Tritiya and close on the festival of Diwali (October-November). There are many hot water springs in the vicinity of Yamunotri temple. These springs fall in many kunds, the most famous of these kunds is Suryakund. This kund is famous for its highest temperature. Devotees tie rice and potatoes in a cloth bundle and cook them in the hot water of this kund to offer them as prasad. After offering Prasad to the Goddess, the devotees take this cooked rice to their homes as Prasad. There is a rock near Suryakund which is called Divya Shila. This rock is also called Divya Jyoti Shila. Devotees worship this rock before worshiping Bhagwati Yamuna.
Summers- Pleasant during the day and cool during the night. The minimum temperature is 6 degree centigrade and the maximum temperature is 20 degree centigrade.
Winter - September to November, pleasant during the day and very cold at night. From December to March the entire area is covered with snow and the temperature is less than zero.
Clothing - Light woolly from May to July. heavy woolly from September to November
Pilgrimage season- April to November
Language- Hindi, English and Garhwali
Accommodation- GMVN Yatri Rest House, Private Rest House and Dharamshalas are available at all major places from Yamunotri and Yatra Marg.
By Air- Jollygrant located in Dehradun is the nearest airport. It goes to Yamunotri via route number 1A. Total distance is 210 kms
By Rail – The last railway station via route number 1A is 231 km from Rishikesh and 185 km from Dehradun.
By Road: From Rishikesh, one can reach Phoolchatti by bus, car or taxi, traveling a distance of 228 kms to Yamunotri via Narendra Nagar. One has to climb 8 kms to reach the temple from Phulchatti.
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Distances
Route No. 1A - Haridwar-Dehradun: Yamunotri (237 kms including 8 kms uphill from Phoolchatti) Haridwar (52 kms), Dehradun (35 kms), Mussoorie (12 kms), Kempty Fall (17 kms), Yamunapul ( 12 Km), Nainbagh (12 Km), Dama (19 Km), Kuwa (12 Km), Naugaon (9 Km), Badkot (9 Km), Gangnani (15 Km), Kuthur (3 Km), Pal Gad (9 km), Sayani Chatti (5 km), Ranachatti (3 km), Hanumanchatti (3 km), Banas (2 km), Phoolchatti (3 km uphill), Janki Chatti (5 km uphill), Yamunotri
Route No. 2A - Haridwar - Rishikesh - Yamunotri (260 km including 8 km uphill from Phoolchatti) Rishikesh-Yamunotri (including 8 km uphill from Phoolchatti - 236 km) Haridwar-(24 km), Rishikesh (16 km) , Narendranagar (45 km), Chamba (Tihanry Garhwal,17 km), Dubatta (40 km) Dharasu (18 km), Brahmakhal (43 km), Barkot Barkot to Yamunotri (57 km), Route No.
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