Current Date: 22 Dec, 2024

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता (Skandmata) क्यों कहा जाता है जानिए इसके पीछे की कथा (Why is the fifth form of Maa Durga called Skandmata, know the story behind it in Hindi and English)

- The Lekh


Skandamata - Wikipedia

शकंदमाता की कथा एवं पूजा विधि 

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद कुमार (कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें रूप को स्कंद माता का नाम मिला है। भगवान स्कंद जी बच्चे के रूप में माता की गोद में विराजमान हैं, इस दिन साधक का मन शुद्ध चक्र में स्थित होता है। स्कंद मातृस्वरूपिनी देवी की चार भुजाएँ हैं, भगवान स्कंद को अपनी गोद में दाहिनी ऊपरी भुजा में पकड़े हुए हैं और अपनी दाहिनी निचली भुजा में एक कमल धारण किए हुए हैं जो ऊपर उठा हुआ है। माता का रंग पूर्ण रूप से शुभ है और कमल के फूल पर विराजमान रहता है। इसीलिए उन्हें पद्मासन की देवी और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है।

 

उनका वाहन भी सिंह है। स्कंदमाता सौरमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी पूजा करने से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है। यह अलौकिक आभा हर पल उनके योगक्षेम का निर्वहन करती है। एकाग्रचित्त होकर मन की शुद्धि करके माता की स्तुति करने से दुखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

 

स्कंदमाता की पूजा विधि-

 

जो साधक कुंडलिनी जागरण के उद्देश्य से देवी दुर्गा की पूजा कर रहे हैं, उनके लिए दुर्गा पूजा का यह दिन शुद्ध चक्र की साधना के लिए है। इस चक्र को भेदने के लिए साधक को पहले विधि से माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा के लिए जिस प्रकार अब तक चार दिनों में कुश या कंबल के पवित्र आसन पर बैठकर पूजा की प्रक्रिया शुरू की उसी प्रकार करें। इस मंत्र से देवी की पूजा करनी चाहिए।

 

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

 

अब पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करें-

 

नवरात्रि के पांचवें दिन, भक्त जन उदयंग ललिता का व्रत भी रखते हैं। इस व्रत को फलदायी बताया गया है। जो भक्त देवी स्कंद माता की भक्ति के साथ पूजा करते हैं, उन्हें देवी का आशीर्वाद मिलता है। देवी की कृपा से भक्त की मनोकामना पूरी होती है और घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।

 

स्कंदमाता का मंत्र

 

 सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।

 

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।

 

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

स्कंदमाता का ध्यान-

 

वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्।

 

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्।।

 

धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।

 

अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

 

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।

 

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

 

प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।

 

कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

 

स्कंदमाता का कवच-

 

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।

 

हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥ श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।

 

सर्वाग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥ वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता।

 

उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠ तेअवतु॥

 

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी संहारिणी।

 

वात, पित्त, कफ आदि रोगों से पीड़ित व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी का भोग लगाकर प्रसाद के रूप में लेना चाहिए।

 

स्कंद माता कथा-

दुर्गा पूजा के पांचवें दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा की जाती है। कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कंद कुमार कहा गया है। माता का पांचवा रूप शुभ्रा यानि श्वेत है।

 

जब अत्याचारी दैत्यों के अत्याचार बढ़ जाते हैं तो संतों की रक्षा के लिए माता सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती है। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं, माँ के दो हाथों में कमल का फूल है और एक भुजा में भगवान स्कंद (कुमार कार्तिकेय) को सहारा देते हुए उनकी गोद में विराजमान हैं। मां का चौथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा में है।

 

देवी स्कंद माता हिमालय पार्वती की पुत्री हैं, उन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। पर्वत राज की पुत्री होने के कारण इन्हें पार्वती कहा जाता है, महादेव की पत्नी होने के कारण उन्हें माहेश्वरी कहा जाता है और उनके गौर चरित्र के कारण उन्हें देवी गौरी के नाम से पूजा जाता है। माँ अपने बेटे से ज्यादा प्यार करती है, इसलिए माँ को अपने बेटे के नाम से पुकारना अच्छा लगता है। जो भक्त मां के इस रूप की पूजा करता है, मां अपने पुत्र की तरह उस पर अपना स्नेह बरसाती है।

 

भोले शंकर को पति के रूप में पाने के लिए माता ने बड़ा व्रत किया, महादेव की आदरपूर्वक पूजा करनी चाहिए, क्योंकि यदि उनकी पूजा नहीं की जाती है, तो उन्हें देवी की कृपा नहीं मिलती है। देवी लक्ष्मी के साथ श्री हरि की पूजा करनी चाहिए।

 

आरती के साथ पूजा समाप्त करें।

 Story and worship method of Shakandmata

The fifth form of Maa Durga is known as Skandmata. Being the mother of Lord Skanda Kumar (Karthikeya), this fifth form of Durga has got the name of Skanda Mata. Lord Skanda ji is seated in the lap of mother in the form of a child, on this day the mind of the seeker is situated in the pure chakra. Skanda Matriswarupini Devi has four arms, holding Lord Skanda in her lap in the right upper arm and holding a lotus in her right lower arm which is raised up. Mother's complexion is completely auspicious and sits on a lotus flower. That is why she is also called the Goddess of Padmasana and Durga Devi, Vidyavahini.

 

Her vehicle is also a lion. Skandmata is the presiding deity of the solar system. By worshiping them, the seeker gets supernatural radiance. This supernatural aura discharges his yogakshema every moment. By praising the mother by purifying the mind with concentration, one gets freedom from sorrows and the path of salvation is attained.

 

Worship method of Skandmata-

 

For those seekers who are worshiping Goddess Durga for the purpose of awakening Kundalini, this day of Durga Puja is for the sadhana of the pure chakra. In order to break this chakra, the seeker should first worship the mother through the method. For worship, start the process of worship in the same way as in four days so far by sitting on the holy seat of Kush or blanket.

On the fifth day of Navratri, devotees also observe a fast of Udayanga Lalita. This fast is said to be fruitful. The devotees who worship Goddess Skanda Mata with devotion, they get the blessings of the Goddess. By the grace of the Goddess, the wishes of the devotee are fulfilled and happiness, peace and prosperity remain in the house. Durga Saptashati is recited in Navratri.

 

A person suffering from diseases like Vata, Pitta, Kapha etc. should worship Skandmata and offer linseed to the mother and take it as prasad.

 

Skanda Mata Story-

On the fifth day of Durga Puja, the mother of the commander of the gods, Kumar Kartikeya is worshipped. Kumar Kartikeya has been called Sanat-Kumar, Skanda Kumar in the texts. The fifth form of Mother is Shubra i.e. white.

 

When the atrocities of the tyrannical demons increase, to protect the saints, Mata rides on a lion and ends the wicked. Goddess Skanda Mata has four arms, Mother holds a lotus flower in two hands and in one arm, Lord Skanda (Kumar Kartikeya) is seated on her lap supporting her. The fourth hand of the mother is in the posture of blessing the devotees.

 

Goddess Skanda Mata is the daughter of Himalaya Parvat, she is known as Maheshwari and Gauri. She is called Parvati, being the daughter of Parvat Raj, being the wife of Mahadev, she is called Maheshwari and because of her gaur character, she is worshiped as Goddess Gauri. Mother loves more than her son, so it is good to call her by her son's name. The devotee who worships this form of the mother, the mother showers her affection on him like her son.

 

In order to get Bhole Shankar as her husband, the mother made a big fast, Mahadev should be worshiped with respect, because if she is not worshiped, she does not get the grace of the Goddess. Shri Hari should be worshiped along with Goddess Lakshmi.

 

End the puja with aarti.

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