इस दिन भी पूरे दिन व्रती निर्जल व्रत रहती हैं फिर सायं में वह समीप के किसी नदी या तालाब के पास अर्घ्य देने जाती हैं तब उनके घर का कोई बेटा या पुरुष एक बांस की बनी टोकरी या डलिया सिर पर रख कर ले जाता हैं जिसे ‘बहँगी’ कहते हैं उस टोकरी में पूजा में लगने वाले फल, आटे की बनी ठेकुआ, गंजी, मूंगफली, गुजिया आदि प्रकार के प्रसाद के साथ पूजा की सामग्री होती हैं । नदी में थोड़े पानी में जाकर व्रती डूबते हुवे सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस प्रकार ये अर्घ्य सम्पन्न होता हैं।
संध्या अर्घ्य की विधि
छठ पूजा के तीसरे दिन संध्या काल में डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है और इसे विधि विधान से करने पर समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। संध्या अर्घ्य के लिए आप इस प्रकार पूजन कर सकती हैं।
- इस दिन प्रातः उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और मुट्ठी में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
- पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करें और शाम के समय नदी या तालाब में स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र धारण करके सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
- संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस की बड़ी टोकरी या 3 सूप लें और उसमें चावल, दीया, लाल सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सब्जी और अन्य सामग्री रखें।
- सभी पूजन सामग्रियों को टोकरी में सजा लें और सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें।
- पूजन के समय सूप में एक दीपक जरूर रखें।
- छठ का डाला सजाकर नदी या जल कुंड में प्रवेश करके सूर्य देव की पूजा करें और छठी मैया को प्रणाम करके सूर्य देव को अर्घ्य दें।
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