"विजया एकादशी व्रत कथा
एकादशियों का माहात्म्य सुनने में अर्जुन को अपार हर्ष की अनुभूति हो रही थी। जया एकादशी की कथा का श्रवण रस पाने के बाद अर्जुन ने कहा- ""हे पुण्डरीकाक्ष! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसके व्रत का क्या विधान है? कृपा करके मुझे इसके सम्बंध में भी विस्तारपूर्वक बताएं।""
श्रीकृष्ण ने कहा- ""हे अर्जुन! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजयश्री मिलती है। इस विजया एकादशी के माहात्म्य के श्रवण व पठन से सभी पापों का अंत हो जाता है।
एक बार देवर्षि नारद ने जगत पिता ब्रह्माजी से कहा- 'हे ब्रह्माजी! आप मुझे फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का व्रत तथा उसकी विधि बताने की कृपा करें।'
नारद की बात सुन ब्रह्माजी ने कहा- 'हे पुत्र! विजया एकादशी का उपवास पूर्व के पाप तथा वर्तमानके पापों को नष्ट करने वाला है। इस एकादशी का विधान मैंने आज तक किसी से नहीं कहा परंतु तुम्हें बताता हूँ, यह उपवास करने वाले सभी मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।
अब श्रद्धापूर्वक कथा का श्रवण करो- श्रीराम को जब चौदह वर्ष का वनवास मिला, तब वह भ्राता लक्ष्मण तथा माता सीता सहित पंचवटी में निवास करने लगे। उस समय महापापी रावण ने माता सीता का हरण कर लिया।
इस दुःखद घटना से श्रीरामजी तथा लक्ष्मणजी अत्यंत दुखी हुए और सीताजी की खोज में वन-वन भटकने लगे। जंगल-जंगल घूमते हुए, वे मरणासन्न जटायु के पास जा पहुंचे। जटायु ने उन्हें माता सीता के हरण का पूरा वृत्तांत सुनाया और भगवान श्रीरामजी की गोद में प्राण त्यागकर स्वर्ग की तरफ प्रस्थान किया। कुछ आगे चलकर श्रीराम व लक्ष्मण की सुग्रीवजी के साथ मित्रता हो गई और वहां उन्होंने बालि का वध किया।
श्रीराम भक्त हनुमानजी ने लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और माता से श्रीरामजी तथा महाराज सुग्रीव की मित्रता का वर्णन सुनाया। वहां से लौटकर हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजी के पास आए और अशोक वाटिका का सारा वृत्तांत कह सुनाया।
सब हाल जानने के बाद श्रीरामचन्द्रजी ने सुग्रीव की सहमति से वानरों तथा भालुओं की सेना सहित लंका की तरफ प्रस्थान किया। समुद्र किनारे पहुंचने पर श्रीरामजी ने विशाल समुद्र को घड़ियालों से भरा देखकर लक्ष्मणजी से कहा- 'हे लक्ष्मण! अनेक मगरमच्छों और जीवों से भरे इस विशाल समुद्र को कैसे पार करेंगे?'
प्रभु श्रीराम की बात सुनकर लक्ष्मणजी ने कहा- 'भ्राताश्री! आप पुराण पुरुषोत्तम आदिपुरुष हैं। आपसे कुछ भी विलुप्त नहीं है। यहां से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में वकदाल्भ्य मुनि का आश्रम है। वे अनेक नाम के ब्रह्माओं के ज्ञाता हैं। वे ही आपकी विजय के उपाय बता सकते हैं'
अपने छोटे भाई लक्ष्मणजी के वचनों को सुन श्रीरामजी वकदाल्भ्य ऋषि के आश्रम में गए और उन्हें प्रणाम कर एक ओर बैठ गए।
अपने आश्रम में श्रीराम को आया देख महर्षि वकदाल्भ्य ने पूछा- 'हे श्रीराम! आपने किस प्रयोजन से मेरी कुटिया को पवित्र किया है, कृपा कर अपना प्रयोजन कहें प्रभु!'
मुनि के मधुर वचनों को सुन श्रीरामजी ने कहा- 'हे ऋषिवर! मैं सेना सहित यहां आया हूँ और राक्षसराज रावण को जीतने की इच्छा से लंका जा रहा हूं। कृपा कर आप समुद्र को पार करने का कोई उपाय बताएं। आपके पास आने का मेरा यही प्रयोजन है।'
महर्षि वकदाल्भ्य ने कहा- 'हे राम! मैं आपको एक अति उत्तम व्रत बतलाता हूं। जिसके करने से आपको विजयश्री अवश्य ही प्राप्त होगी।'
'यह कैसा व्रत है मुनिश्रेष्ठ! जिसे करने से समस्त क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है?' जिज्ञासु हो श्रीराम ने पूछा। इस पर महर्षि वकदाल्भ्य ने कहा- 'हे श्रीराम! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की विजया एकादशी का उपवास करने से आप अवश्य ही समुद्र को पार कर लेंगे और युद्ध में भी आपकी विजय होगी। हे मर्यादा पुरुषोत्तम! इस उपवास के लिए दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबे या मिट्टी का एक कलश बनाएं। उस कलश को जल से भरकर तथा उस पर पंच पल्लव रखकर उसे वेदिका पर स्थापित करें। उस कलश के नीचे सतनजा अर्थात मिले हुए सात अनाज और ऊपर जौ रखें। उस पर विष्णु की स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान श्रीहरि का पूजन करें। वह सारा दिन भक्तिपूर्वक कलश के सामने व्यतीत करें और रात को भी उसी तरह बैठे रहकर जागरण करें। द्वादशी के दिन नदी या बालाब के किनारे स्नान आदि से निवृत्त होकर उस कलश को ब्राह्मण को दे दें। हे दशरथनंदन! यदि आप इस व्रत को सेनापतियों के साथ करेंगे तो अवश्य ही विजयश्री आपका वरण करेगी।' मुनि के वचन सुन तब श्रीरामचन्द्रजी ने विधिपूर्वक विजया एकादशी का व्रत किया और इसके प्रभाव से राक्षसों के ऊपर विजय प्राप्त की।
हे अर्जुन! जो मनुष्य इस व्रत को विधि-विधान के साथ पूर्ण करेगा, उसकी दोनों' लोकों में विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था- जो इस व्रत का माहात्म्य श्रवण करता है या पढ़ता है उसे वाजपेय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है।""
"Vijaya Ekadashi fasting story
Arjun was feeling immense joy on hearing the greatness of Ekadashis. After listening to the story of Jaya Ekadashi, Arjuna said- ""O Pundarikaksha! What is the name of Ekadashi of Krishna Paksha of Falgun month and what is the procedure for its fasting? Kindly tell me in detail about this also.
Shri Krishna said- ""O Arjuna! The name of Ekadashi of Krishna Paksha of Phalgun month is Vijaya. Man gets Vijayashree by the effect of its fast. All sins are destroyed by hearing and reciting the greatness of this Vijaya Ekadashi.
Once Devarshi Narad said to the father of the world Brahmaji - 'O Brahmaji! You please tell me the fast of Vijaya Ekadashi of Krishna Paksha of Falgun month and its method.
After listening to Narad, Brahmaji said - 'O son! The fasting of Vijaya Ekadashi is going to destroy the sins of the past and the sins of the present. I have not told the law of this Ekadashi to anyone till date, but I tell you, it gives victory to all the humans who fast.
Now listen to the story with devotion - When Shriram got fourteen years of exile, he started living in Panchavati along with brother Laxman and mother Sita. At that time, the great sinner Ravana abducted Mother Sita.
Shriramji and Laxmanji were extremely saddened by this sad incident and started wandering from forest to forest in search of Sitaji. Roaming through the jungle, they reached the dying Jatayu. Jatayu told him the whole story of Mother Sita's abduction and leaving his life in the lap of Lord Shri Ram, left for heaven. Later on, Shri Ram and Lakshman became friends with Sugriva and there they killed Bali.
Shriram devotee Hanumanji went to Lanka to find Mother Sita and narrated the friendship of Shriramji and Maharaj Sugriva to the mother. Returning from there, Hanumanji came to Shri Ramchandraji and narrated the whole story of Ashok Vatika.
After knowing everything, Shriramchandraji left for Lanka with the consent of Sugriva along with the army of monkeys and bears. On reaching the sea shore, Shri Ramji saw the vast sea full of crocodiles and said to Lakshmanji - 'O Lakshman! How will you cross this vast sea full of many crocodiles and creatures?'
After listening to Lord Shriram, Laxmanji said - ' Brother! You are Puran Purushottam Adipurush. Nothing is missing from you. Half a scheme away from here is the hermitage of Vakdalbhya Muni in Kumari Island. He is the knower of many names of Brahmas. Only they can tell you the ways of your victory.
After listening to the words of his younger brother Lakshmanji, Shriramji went to the hermitage of Vakdalbhya Rishi and sat on one side after saluting him.
Seeing Shriram coming to his ashram, Maharishi Vakdalbhya asked - 'O Shriram! For what purpose have you sanctified my cottage, please tell your purpose Lord!'
After listening to the sweet words of the sage, Shriramji said - 'O Rishivar! I have come here with the army and am going to Lanka with the desire to conquer the demon king Ravana. Please tell me some way to cross the ocean. This is my purpose in coming to you.'
Maharishi Vakdalbhya said - 'O Ram! Let me tell you a very good fast. By doing which you will definitely get Vijayashree.
'What kind of fast is this, Munishrestha! By doing which one attains victory in all fields?' Are you curious, Shri Ram asked. On this Maharishi Vakdalbhya said - 'O Shriram! By fasting on Vijaya Ekadashi of Krishna Paksha of Phalgun month, you will surely cross the sea and you will win in war too. O Maryada Purushottam! For this fast, make a gold, silver, copper or clay urn on the day of Dashami. After filling that Kalash with water and placing Pancha Pallava on it, install it on the Vedika. Put Satanja i.e. seven mixed grains under that Kalash and barley on top. Install the golden statue of Vishnu on it. On the day of Ekadashi, after taking bath, worship Lord Hari with dhoop, lamp, naivedya, coconut etc. He should spend the whole day devotionally in front of the Kalash and stay awake at night sitting in the same way. On the day of Dwadashi, after retiring from bathing etc. on the banks of a river or a stream, give that urn to a Brahmin. Hey Dashrathanandan! If you do this fast with the generals, then Vijayashree will definitely yours. After listening to the sage's words, Shri Ramchandraji observed Vijaya Ekadashi fast and with its effect, he got victory over the demons.
Hey Arjun! The man who fulfills this fast with rules and regulations, he will be victorious in both the worlds. Shri Brahmaji had said to Naradji - The one who hears or recites the greatness of this fast, he gets the fruit of Vajpayee Yagya.
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