Current Date: 18 Nov, 2024

वैष्णो देवी चालीसा

- Traditional


गरूड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकुटा पर्वत धाम ।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम ।।

चौपाई
नमो नमो वैष्णो वरदानी । 
कलिकाल में शुभ कल्यानी ।।

मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी ।
पिंडी रूप में हो अवतारी ।।

देवी-देवता अंष दियो है ।
रत्नाकर घर जन्म लियो है ।।

करी तपस्या राम को पाऊं ।
त्रेता की शक्ति कहलाऊं ।।

कहा राम मणि पर्वत जाओ ।
कलियुग की देवी कहलाओ ।।

विष्णु रूप से कल्की बनकर ।
लूंगा शक्ति रूप बदलकर ।।

तब तब त्रिकुटा घाटी जाओ ।
गुफा अंधेरी जाकर पाओ ।।

काली लक्ष्मी सरस्वती मां ।
करेंगी पोषण पार्वती मां ।।

ब्रह्मा, विष्णु शंकर द्वारे ।
हनुमत, भैंरो प्रहरी प्यारे ।।

रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलायें ।
कलियुग वासी पूजन आवें ।।

पान सुपारी ध्वजा नारियल ।
चरणामृत चरणों का निर्मल ।।

दिया फलित वर मां मुस्काई ।
करन तपस्या पर्वत आई ।।

कलि-काल की भड़की ज्वाला ।
इक दिन अपना रूप निकाला ।।

कन्या बन नगरोटा आई ।
योगी भैरों दिया दिखाई ।।

रूप देख सुन्दर ललचाया ।
पीछे-पीछे भागा आया ।।

कन्याओं के साथ मिली मां ।
कौल-कंदौली तभी चली मां ।।

देवा माई दर्षन दीना ।
पवन रूप हो गई प्रवीणा ।।

नवरात्रों में लीला रचाई ।
भक्त श्रीधर के घर आई ।।

योगिन को भण्डारा दीना ।
सबने रूचिकर भोजन कीना ।।

मांस, मदिरा भैरों मांगी ।
रूप पवन कर इच्छा त्यागी ।।

बाण मारकर गंगा निकाली ।
पर्वत भागी हो मतवाली ।।

चरण रखे आ एक षिला जब ।
चरण-पादुका नाम पड़ा तब ।।

पीछे भैरांे था बलकारी ।
छोटी गुफा में जाय पधारी ।।

नौ माह तक किया निवासा ।
चली फोड़कर किया प्रकाषा ।।

आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी ।
कहलाई मां आदि कुंवारी ।।

गुफा द्वार पहुंची मुस्काई ।
लांगुर वीर ने आज्ञा पाई ।।

भागा-भागा भैरांे आया ।
रखा हित निज शस्त्र चलाया ।।

पड़ा शीष जा पर्वत ऊपर ।
किया क्षमा जा दिया उसे वर ।।

अपने संग में पुजवाऊंगी ।
भैरांे घाटी बनवाऊंगी ।।

पहले मेरा दर्षन होगा ।
पीछे तेरा सुमरन होगा ।।

बैठ गई मां पिण्डी होकर ।
चरणों में बहता जल झर-झर ।।

चौंसठ योगिनी-भैरांे बरवन ।
सप्तऋषि आ करते सुमरन ।।

घंटा ध्वनि पर्वत बाजे ।
गुफा निराली सुन्दर लांगे ।।

भक्त श्रीधर पूजन कीना ।
भक्ति सेवा का वर लीना ।।

सेवक ध्यानूं तुमको ध्याया ।
ध्वजा व चोला आन चढ़ाया ।।

सिंह सदा दर पहरा देता ।
पंजा शेर का दुःख हर लेता ।।

जम्बू द्वीप महाराज मनाया ।
सर सोने का छत्र चढ़ाया ।।

हीरे की मूरत संग प्यारी ।
जगे अखण्ड इक जोत तुम्हारी ।।

आष्विन चैत्र नवराते आऊं ।
पिण्डी रानी दर्षन पाऊं ।।

सेवक ‘षर्मा‘ शरण तिहारी ।
हरो वैष्णो विपत हमारी ।।

दोहा
कलियुग में तेरी, है मां अपरम्पार ।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार ।।

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