वैभवलक्ष्मी व्रत की कथा
बहुत साल पहले एक बहुत बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में मग्न रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती आदि बहुत से अपराध शहर में होते थे।
माता लक्ष्मी जी का गायत्री मंत्र : श्री लक्ष्मी गायत्री मंत्र
कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक आशा की किरण छिपी होती है’ इसी तरह इतनी सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उसका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी मानी जाती थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अटल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति को पूर्व जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द करोड़पति होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल निकला और करोड़पति के बजाय रोड़पति बन गया। यानि रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।
माँ लक्ष्मी जी के १०८ नाम : महालक्ष्मी अष्टोत्तर शत नामावली
शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था।
समय के परिवर्तन के साथ घर में दरिद्रता और भुखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था।
शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ।किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी। इस तरह शीला असह्य दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला सोच में पड़ गयी कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?
माँ लक्ष्मी जी का चालीसा : माँ लक्ष्मी चालीसा
फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिए, ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला। तो देखा एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज दिख रहा था।उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनके भव्य चेहरे से करुणा और प्यार छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’
शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं पाई।
माँ जी ने हँसकर कहा: ‘क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।’
पति जब से गलत रास्ते पर चला गया था, तब से शीला बहुत दुखी हो गई थी और दुख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने दिमाग पर जोर दिया पर वह माँ जी उसे याद नहीं आ रही थीं। तभी माँ जी ने कहा: ‘तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि कहीं तू बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।’
माँ लक्ष्मी जी का महा मंत्र : महालक्ष्मी मंत्र
माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दु:ख आता है, तो दु:ख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? अपने दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन भी हलका हो जायेगा और तेरे दुख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।’
माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी से कहा: ‘माँ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं, मेरे पति भी सुशील थे। अचानक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति बुरी संगति में फँस गये और बुरी आदतों के शिकार हो गये तथा अपना सब-कुछ गवाँ बैठे हैं तथा हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये हैं।’
यह सुन कर माँ जी ने कहा: ‘ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है’, हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है।
माँ लक्ष्मी जी की आरती : माँ लक्ष्मी जी की आरती
अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख कर माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा: ‘माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।’
माँ जी ने कहा: ‘बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।
‘बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं, अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हलदी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। तभी उसका फल मिलता है। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि से पूजन करना चाहिए। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि से करना चाहिए। यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिए। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’ का स्मरण करते रहो। किसी की शिकायत नहीं करनी चाहिए। शाम को पूर्व दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाओ। सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रख कर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जला कर धूप सुलगा कर रखो।
माता की कृपा के लिए भजन : मैया लक्ष्मी की कृपा
माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं। और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्रीयंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ में पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्रीयंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रुपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो।
और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खा कर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि से व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है।
सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।
शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: ‘माँ! आपने वैभवलक्ष्मी व्रत की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए? यह भी कृपा करके सुनाइये।’
माँ लक्ष्मी जी का स्तोत्र : अष्टलक्ष्मी स्तोत्रं
माँ जी ने कहा: ‘ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह वैभवलक्ष्मी व्रत पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिए। व्रत के आखिरी शुक्रवार को खीर का नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिए। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिए और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिए। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका व्रत पूर्ण किया है। तो हे माँ! हमारी मनोकामना पूर्ण कीजिए। हमारा सबका कल्याण कीजिए। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरम्पार है।’
माँ जी के पास से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय विधि सुनकर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी व्रत इक्कीस शुक्रवार तक करूँगी और व्रत की शास्त्रीय रीति के अनुसार उद्यापन भी करूँगी।
शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा नहीं साक्षात लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी माँ जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थीं।
दूसरे दिन शुक्रवार था। प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी’ का मन ही मन स्मरण करने लगी। सारा दिन किसी की शिकायत नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव-मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पति ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की कील (पुल्ली) बच गई थी। नाक की कील निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर कील वाली कटोरी रखी। फिर विधिपूर्वक वंदन, स्तवन, पूजन वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर वैभवलक्ष्मी व्रत किया।
यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में वैभवलक्ष्मी व्रत के लिए श्रद्धा बढ़ गई। शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक व्रत किया। इक्कीसवें शुक्रवार को विधिपूर्वक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को वैभवलक्ष्मी व्रत की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी: ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के धनलक्ष्मी स्वरूप की छवि को प्रणाम किया।
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इस तरह शास्त्रीय विधि से शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति सही रास्ते पर चलने लगा और अच्छा आदमी बन गया तथा कड़ी मेहनत से व्यवसाय करने लगा। धीरे धीरे समय परिवर्तित हुआ और उसने शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
वैभवलक्ष्मी व्रत का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधि से वैभवलक्ष्मी का व्रत करने लगीं। हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!
Vaibhav Lakshmi Vrat Katha
Many years ago there was a very big city. Lakhs of people lived there. In ancient times, people really lived the happy social life. They used to meet and sit together and enjoyed themselves. In those days, people used to lead the life completely in different way. People of this city were totally busy engaged in their own personal worldly affairs. The elements of holy devotion, benevolence, sympathy and affection all these virtues were rarely visible in the cultural life of the society. Innumerable vices had spread in the daily-life of the citizens living in that city. Wine and gambling, race and speculation, illegal relations and various guilty misdeeds were done by the people living in that city.
Gayatri Mantra of Goddess Lakshmi : Lakshmi Gayatri Mantra
There is always a silver line hidden among the black clouds in the sky. The lightning of the eternal hope spreads into the thousands of dark clouds of disappointments. Inspite of so many vices prevailing in the social life some pious people lived the virtuous life like the lotus in the muddy water of the pond. Among all the virtuous people, Sheela and her husband also lived pious worldly life. Sheela was of religious nature living the contented life. Her husband was a humble fellow having good character.
Sheela and her husband lived honestly. They never abused or displeased anyone. They were happy to utilize their time in worshipping God. Their worldly life was ideal and people never got tired while praising them.
Thus she had been passing her life happily. It is said that the end of the misdeeds is quite strange. Who could read the words of fate written by the Goddess of Fortune? A king becomes a poor man, and a poor man becomes a king. By the destiny, in just a moment, such a great change can be done. As a result of misdeeds done, Sheela’s husband got the company of bad friends. It is said that the man is influenced by the company he keeps. Due to the influence of the company of bad friends, Sheela’s husband dreamed to be one of the wealthiest people gaining crores of rupees. As a result he misled his life and became as good as a beggar instead of becoming the wealthy person. He followed evil ways of immorality and began to ruin his life. He indulged in drinking wine, gambling, and race, speculation that had spread in the city-life. His friends were also on the same immoral path. He began to waste his money in the way of immorality. And at last he lost all the savings and also the ornaments of his wife. Once there was a golden time when he was passing his life happily with his wife and they were utilizing the time in worshiping God. Now there was a great change in their life. They became so poor that they could not get food to satisfy their hunger. Moreover Sheela had to suffer much due to the abusive language of her husband.
108 names of Goddess Lakshmi : Shree Mahalakshmi Ashtottara Shat Namavali
Sheela was a polite and well-cultured woman. She had suffered a lot because of her husband’s misbehavior. But keeping faith in God she began o bear the sufferings of unhappy life. Unhappiness is followed by happiness and happiness is followed by unhappiness in this worldly life. That is the eternal truth. Having faith in the eternal truth of the happiness and unhappiness, Sheela forgot herself in praying and worshipping God, she was hopeful for future happy life. While she had been passing her unhappy time of her life, one day at noontime someone came knocking at her door. She began to think, ‘who would have come to my place as I am so poor and have nothing with me?’ Still however, inspired by Aryan religious culture of welcoming the guests at the door, she stood up and opened the doors of her house.
To her wonder, she saw an old woman standing in front of her. She was a very old woman. Her face was dazzling with the glow of divine light. Her eyes were dripping with the glow of divine light. Her eyes were dripping the nectar of love. Her majestic face was overflowing with the compassion and love. Sheela experienced immense peace in her heart though she was not acquainted with her. She was full of delight. She welcomes her and gave her the only torn mat and requested her to sit with hesitation. The old lady said, ‘Sheela! Don’t you know me?’
Sheela humbly said, ‘Mother, I feel delightful to see you and experience peace in the soul, as if I have been searching you for a long time, but it seems that you are not known to me!’
With a smile the old lady said, ‘why! Did you forget me? Every Friday I used to come to the temple of Goddess Lakshmiji, when there had been singing praise of the Goddess. There we happened to meet each other!’
Mother Lakshmi's Chalisa : Laxmi Chalisa
Sheela was full of sorrow, as her husband had gone to the immoral way of life. She had stopped going to the temple of Goddess Lakshmiji. She felt ashamed to get associated with others. She tried much to recollect the memory of that old lady. But she was not successful.
After a while, the old lady said to Sheela, ‘How sweet you had been singing prayer of Goddess Lakshmiji in the temple amidst the devotees! Now days you are not seen there. Hence I have begun to think the reason for it. At last I have come to see you’. Hearing the kind words of the old lady, Sheela’s heart moved and her eyes were full of tears. She began to sob painfully. The old lady moved near her and began to console her striking lightly on her back with love. The old lady said to Sheela, ‘My dear, happiness and sorrow are like the heat and shadow of the Sun. Happiness and misery come one after the other. Please have patience and tell me all about your sufferings. You will feel exempted from your pains, and will get the remedy for the same’.
Hearing the consoling words of the lady, Sheela’s heart felt peace and comfort. She said to her, ‘We were very happy in our life and enjoyed ourselves with the bliss in our heart. My husband was also having a good character. By the grace of God, we wee pleased with our financial position. We used to utilize our time in worshipping God. But by our ill luck, my husband was influenced by his bad company. At last he ruined the life by going on the path of immorality: drinking wine, speculation, gambling, race, intoxicating drugs etc. As a result we have become as good as beggars of the footpath’.
The great mantra of Maa Lakshmi ji : Mahalakshmi Mantra
The old lady said, ‘Dear, happiness and sorrow come one after the other. Moreover the end of the misdeeds is strange. Every man has to suffer the consequences of his good or bad deeds. Now don’t get worried. You have already suffered all the consequences of your husband’s misdeeds. Now, you will have happy days of your life. You are the devotee of Goddess Lakshmiji. Goddess Lakshmiji is the incarnation of love and compassion. She is very merciful to her devotees. Hence, have patience and observe the Vrat of the Goddess Lakshmiji and your life will be quite easy-going.’
Having heard about the observance of the Vrat of divine Goddess Lakshmiji, Sheela’s face glittered with light. She said to the old lady, ‘Mother! Kindly tell me how the Vrat of Lakshmiji can be observed. I will certainly observe it.’
The old lady said, ‘The Vrat of Lakshmiji is very easy to follow. It is called the ‘Vaibhava Lakshmi Vrat’ (Vrat giving wealth) or ‘Vaibhava Lakshmi Vrat’ (Vrat giving Luxury). All the hopes of the person who observes the Vrat, will get fulfilled, and she or he becomes happy, wealthy and reputed’. Then she began to describe how to perform the Vrat.
‘Dear, this Vrat is very simple and easy to observe. Many people observe this Vrat by the improper method. Hence they don’t have good result. People believe that the Vrat can be observed only by applying yellow and red turmeric to golden ornaments. But it is not so. Vrat should be performed with proper ceremony according to the religious scriptures or shastras. Then only the observance of the Vrat becomes fruitful. The celebration of the Vrat also should be performed as prescribed by the shastras with proper ceremony’.
Mother Lakshmi's Aarti : Maa Lakshmi Ji Ki Aarti
‘The Vrat should be observed on Friday every week. One should put on clean clothes after taking bath and should utter silently ‘Jai Ma Lakshmi’. One should not speak evil of others. Having washed hands and feet in the evening, one should sit on the wooden seat facing the east direction. One should put a big wooden seat, and then one should put a copper pot on the small heaps of rice arranged on the handkerchief spread on the wooden seat. One should keep gold or a silver ornament or a rupee coin in a small bowl placed on the copper pot. One should light the lamp-stand and the incense stick near the wooden seat." "There are many incarnations of Goddess Lakshmi." A person observing the Vrat of Vaibhava Lakshmi should devotedly see ‘Shree mystical diagram’ and various complexions or forms of goddess Lakshmiji. Then one should sing the prayer of Lakshmiji. Afterwards one should apply the ornament or a rupee-coin with the yellow and red turmeric and rice-grain. Then after adorning it with a red flower, one should wave lights keeping sweets or piece of jaggery and should utter ‘Jai Ma Lakshmi’. After the rituals one should offer the prasad among the members of the family. That ornament or a rupee-coin should be put to the safe place. The water kept in the copper-bowl should be poured into the pot of basil-plant [tulasi] and the rice grain should be thrown to the birds. In this way one gets his or her desires fulfilled by observing the Vrat according to the prescribed ceremony of the shastras. A Man gets wealthy by the grace of Goddess Lakshmiji. An unmarried girl gets married. The married woman maintains the happy state of wifehood and a childless woman gets a child by the influence of observance of the Vrat.
Sheela was pleased to know about the observance of the Vrat from that old lady. She said to her, ‘Mother! You have shown me the ceremony of the Vrat. Now I will surely observe it. But please, tell me how long this Vrat should be done and how it should be celebrated’. The old lady said, ‘People say that this Vrat can be done in one’s own way. But it is not so. This Vaibhava Lakshmi Vrat should be done for eleven or twenty-one Friday. On the last Friday, the Vrat should be celebrated offering a coconut and sweet dish of rice. Then on that day the sweets should be given to seven unmarried girls or ladies, and saying…’Jai Ma Vaibhava Lakshmi’ they should be given a book of ‘Vaibhava Lakshmi Vrat’. Afterwards you should bow down your head to the photograph of Goddess Dhanlakshmi and should pray in the heart! Mother! I have observed the Vaibhava Lakshmi Vrat. Please fulfill all our wishes! Kindly give wealth to the poor and give children to the childless woman. Let the married woman enjoy the happy state of wifehood. Let the unmarried girl fulfill her desires. Please have grace on those who observe your Vrat and be kind to them by favoring happiness in their lives’. By praying in this manner, bow down your head to the Dhan Lakshmi, incarnation of the Goddess Lakshmiji and Keep your hand above (not to touch) the flames of the lamp and apply it to your eyes’. Hearing the ceremony for the observation of Vaibhava Lakshmi Vrat, she closed her eyes and decided in her mind to do the Vrat with full faith according to shastras for twenty-one Friday and to celebrate the same with ceremony. When Sheela opened the eyes, she was very much surprised to know that the old lady had disappeared! That old lady was no one else but Lakshmiji Herself! As Sheela was the devoted worshipper, Goddess Lakshmiji Herself had come in the form of an old lady to show Sheela the path of happiness.
On the very next day it was Friday. After taking bath Sheela began to utter, ‘Jai Ma Lakshmi’ with full faith in the Goddess Lakshmi. During the day she didn’t defame any one. In the evening having washed her hands and feet, Sheela placed the wooden seat. She put her nose-ornament in the small bowl placed on the copper pot, which was on the heaps of rice arranged on the handkerchief spread on the wooden seat. Sitting in the east, Sheela observed the Vaibhava Lakshmi Vrat with proper ceremony as informed by that old lady. Then she offered some sugar to her husband. Immediately there was a great change in her husband’s nature. As usual her husband did not beat her! She was very much happy to see such miraculous change in husband. Then after observing the Vrat with devotion and faith for twenty-one Friday. Sheela celebrated the last Friday. She gave a book of Vaibhava Lakshmi Vrat to seven ladies and bowing down her head to the photograph of Goddess Lakshmiji, prayed: ‘Mother! I have finished observance of the Vrat today. Kindly fulfill the desires of the unmarried girls and return the happiness of those who observe the Vrat. Be merciful to bless us with bliss of life uttering, "Give wealth to the poor, a child to the childless woman and preserve the happiness of the married woman. Kindly fulfill the desires." Uttering these words, Sheela kept her hands above the flames of the lamp and applied her hands to her eyes and paid homage to the Goddess. In this way, Sheela could get the result as she had observed the Vrat according to the prescribed ceremony of the shastras. Her husband gave up the immoral way of life and began to earn with great efforts. With the pious power of the Goddess, her husband became wealthy. He got back the ornaments of Sheela mortgaged by him. Hence forward he became a noble man and Sheela regained the peace and happiness in her life as before.
Hymn for Mother's Grace : Maiya Laxmi Ki Kripa
Having seen the pious power of the Vaibhava Lakshmi Vrat, other women of the street began to perform the Vrat according to ceremony described by the shastras. Oh! Goddess Dhan Lakshmi! Be merciful to all, as you had been to Sheela. Fulfill the desires of all. Bless all with peace and bliss. Jai Ma Dhan Lakshmi! Jai Ma Vaibhava Lakshmi!!.
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