तिरुपति बालाजी का मंदिर अत्यंत प्रसिद्द है। श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर को हिंदू शास्त्रों द्वारा गौरवशाली ढंग से वर्णित किया गया है, इस मंदिर को “टेम्पल ऑफ़ 7 हिल्स” भी कहा जाता है। लोगो का मानना है कि भगवान प्राचीन युग में यहां आने संकटों से मानवीय जीवन को बचाने के लिये अवतरित हुए थे। तिरुपति बालजी हिंदू तीर्थों के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक है, यह आंध्र प्रदेश के चित्तौर जिले में एक उत्कृष्ट स्थान है
मंदिर का मुख्य परिसर
मंदिर का इतिहास :-
तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण 300 ईसवी में शुरू हुआ, जिसमें कई सम्राट और राजा समय-समय पर मंदिर के विकास के लिए नियमित योगदान करते थे। 18 वीं सदी के मध्य में, मराठा जनरल राघोजी भोंसले ने मंदिर की व्यवस्था करने के लिए एक स्थायी प्रबंधन की अवधारणा को आगे बढ़ाया। यह संकल्प और योजना तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) है जिसे 1933 में TTD अधिनियम के माध्यम से विकसित किया गया था। आज, तिरुमला तिरुपति अपने सक्षम प्रबंधन के तहत कई मंदिरों और उनके उप-तीर्थों का प्रबंधन और रखरखाव करता हैं।
तिरुपति बालाजी की पौराणिक कथा :-
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार, ऋषि भृगु यह मूल्यांकन करना चाहता थे कि त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है। इस प्रयोजन से महर्षि भृगु बैकुंठ पधारे और आते ही शेष शैय्या पर योगनिद्रा में लेटे भगवान विष्णु की छाती पर एक लात मारी। भगवान विष्णु ने तुरंत भृगु के चरण पकड़ लिए और पूछने लगे कि ऋषिवर पैर में चोट तो नहीं लगी। लेकिन देवी लक्ष्मी को भृगु ऋषि का यह व्यवहार पसंद नहीं आया और वह विष्णु जी से रुष्ट हो गई। वे इस बात से क्रोधित थीं कि भगवान ने भृगु ऋषि को दंड क्यों नहीं दिया। देवी लक्ष्मी बैकुंठ छोड़कर चली गई। भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को ढूंढना शुरु किया तो पता चला कि देवी ने पृथ्वी पर पद्मावती नाम की कन्या के रुप में जन्म लिया है। भगवान विष्णु ने भी तब अपना रुप बदला और पद्मावती के पास पहुंच गए। भगवान ने पद्मावती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे देवी ने स्वीकार कर लिया। पद्मावती एक राजकुमारी थी और उनसे विवाह के लिए विष्णु जी को धन की आवश्यकता थी, तब विष्णु जी ने समस्या का समाधान निकालने के लिए भगवान शिव और ब्रह्मा जी को साक्षी मानकर कुबेर से काफी धन कर्ज लिया। इस कर्ज से भगवान विष्णु के वेंकटेश रुप और देवी लक्ष्मी के अंश पद्मवती का विवाह संपन्न हुआ, जो कि एक अभूतपूर्व विवाह था। शादी के बाद भगवान तिरुमाला की पहाड़ियों पर रहने लगे, कुबेर से कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया था कि कलियुग के अंत तक वह अपना सारा कर्ज चुका देंगे। कर्ज समाप्त होने तक वह सूद चुकाते रहेंगे। भगवान के कर्ज में डूबे होने की इस मान्यता के कारण बड़ी मात्रा में भक्त धन-दौलत भेंट करते हैं ताकि भगवान कर्ज मुक्त हो जाएं।
तिरुपति बालाजी मंदिर की महिमा :-
तिरुपति बलाजी मंदिर को भूलोक वैकुंठतम कहा जाता है – पृथ्वी पर विष्णु का निवास। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु इस मंदिर में खुद प्रगट हुए थे ताकि वह अपने भक्तों को मोक्ष की ओर अग्रसित कर सके। दैनिक आधार पर, भगवान की मूर्ति, फूलों, सुन्दर कपड़े और गहने से भव्य रूप से सजायी जाती है। इसके अलावा मंदिर में भगवान के सजाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सोने के गहने के विशाल भंडार है।
तिरुपति बालाजी मंदिर की मान्यता :-
मंदिर की मुख्य प्रतिमा
वह स्थान जहां भगवान श्री वेंकटेश्वर की स्वयंभू प्रतिमा मन्दिर में स्थित है, उसे आनंद निलायम कहा जाता है। भगवान् वेंकटेश्वर गर्भ गृह में पूर्व की तरफ मुह करके खड़े है। यह कहा जाता है कि तिरुपति मंदिर की यात्रा तभी पूरी होती है जब उनकी पत्नी पद्मावती जो कि लक्ष्मी की अवतार थीं, के मंदिर की यात्रा की जाए। माता पद्मावती का मंदिर तिरुपति मंदिर से पांच किलोमीटर दूर है।
तिरुपतिबालाजी मंदिर पृथ्वी पर सबसे लोकप्रिय मंदिर है, यहाँ अनेको श्रद्धालु प्रतिदिन आते है। यह एक अध्यात्म स्थान है, यहाँ का आकर्षण कई भक्तों को यहाँ आने के लिये आमंत्रित करता है।
भगवान के दर्शन करने से पहले श्रद्धालु अपनी प्रार्थनाओं और मान्यताओं के अनुसार यहाँ आकर भगवान् को अपने बाल भेट स्वरुप देते है, जिसे “मोक्कू” कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि बाल अर्पित करके, भक्त अपने झूठे गर्व को नष्ट करते हैं, और भगवान विष्णु के प्रभाव से विनम्रता को जन्म देते हैं।
दर्शन के प्रारूप :-
मंदिर में बालाजी के दिन में तीन बार दर्शन होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप कहलाता है, जो सुबह के समय होते हैं। दूसरे दर्शन दोपहर को और तीसरे दर्शन रात को होते हैं। सर्वदर्शनम से अभिप्राय है 'सभी के लिए दर्शन'। सर्वदर्शनम के लिए प्रवेश द्वार वैकुंठम काम्प्लेक्स है। वर्तमान में टिकट लेने के लिए यहाँ कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था है। यहाँ पर निःशुल्क व सशुल्क दर्शन की भी व्यवस्था है। यह दर्शन 7:00 पूर्वाह्न से शाम 6:00 बजे तक, फिर 7:00 अपराह्न से 9:00 बजे तक किये जा सकते हैं। इनके अलावा अन्य दर्शन भी हैं, जिनके लिए विभिन्न शुल्क निर्धारित है। पहले तीन दर्शनों के लिए कोई शुल्क नहीं है। भगवान बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन केवल शुक्रवार को सुबह अभिषेक के समय ही किए जा सकते हैं।
अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।