ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियाँ.
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय
धाय मात गोद लेत दशरथकी रनियाँ.
अंचल रज अंग झारि विविध भांति सो दुलारि
तन मन धन वारि वारि कहत मृदु बचनियाँ.
विद्रुमसे अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर
सुभग नासि कामें चारु लटकत लटकनियाँ.
तुलसीदास अति आनंद देखके मुखारिंद
रघुवर छबिके समान रघुवर छबि बनियाँ .
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