Current Date: 18 Nov, 2024

श्री सूर्य अमृतवाणी

- Avinash Karn


सूर्य नारायण तुमको वंदन हाथ जोड़ में कृ अभिनंदन 
अति विशाल तुम रथ के वाहक सकल जगत के तुम संवाहक 
प्रातः काल करो जब फेरा छत जाये हर घना  अँधेरा 
लेके लालिमा जब भी आते हो बीत उर जाते जाते हो 
पृथ्वी को तुम गर्मी देते बारिश क्र फिर नरमी देते हो  
तुम्ही जगत  के प्राण आधार हो करो तुम्ही जीवन विस्तार 
शनि यमराज है पुत्र तुम्हारे पुत्री यमुना धरा सवार 
हनुमान है शीश तुम्हारे राम सिया के प्राणन प्यारे 
मृत्युलोक में जीवन तुमसे जन जीवन संचालन तुमसे 
सम्भव नहीं कुछ बिना तुम्हारे सकल प्रकृति के तुम रखवारे 
भक्त तुम्हे जल अर्पण करते चरण तुम्हारे तर्पण करते 
दार दार जल तुम्हे रिझाते जीवन अपना सफल बनाते 
प्रातः से तुम्हे जो ध्याये धन वैभव सब कुछ वो पाए 
जीवन से निर्धनता टलती घोर घोर विफलता टलती 
सब देवन के तुम हो राजा अति उत्तम सिंघासन साजा
सप्त अश्व तुम करो सवारी सूर्य देव तुम अति महिमा न्यारी 
सूर्य दिवाकर भानु है नामा नहीं कभी करते विश्राम 
रथ का पहिया घूमता जाए डॉ डगर प्रकाश बिछाए 
अग्नि वर्ण अति ज्वलन शील हो सागर सम तुम शहनशील हो 
पल में तुम ब्रम्हांड जला दो ख़ाक में तीनो लोक मिला दो 
कोई नहीं ऐसा बलधारी ताप सके तो और तुम्हें 
सूर्य देव यु तेज तुम्हारा मन की गति सम वेग तुम्हारा 
मिले सूर्य की ऊष्मा बढे रक्त संचार 
ग्रीष्म सरद श्रवण वसंत तुम्ही से मौसम चार 
ौर्य की रेखा जिसके हाथ है मान प्रतिष्ठा उसके साथ है 
ऊँचा पद वो पाता है मन चाहा फल वो पाता है 
राहु केतु दुश्मन बनके बनकर ग्रहण खड़े है तन के 
उनसे तुम लड़ने वाले हो तुम ही विजय करने वाले हो 
सकल जगत अधिकार तुम्हारा तुम्ही से रोशन है जग सारा 
तीनो लोको के अधिकारी तुम जीवो के पालनहारी 
शोभित तुमसे चाँद सुनेहरा धरा अनु और सागर गहरा 
तुम सबका संचालन करते नियम का अपने पालन करते 
तुम बिन कुछ भी नहीं है सम्भव तुम ही सम्भव तुम्ही असम्भव 
तुमसे हिम तुमसे ही सरिता तुम्ही से जहर जहर झरना गिरता 
तुम बिन जन जीवन कुछ नाही तुम्ही हो धुप तुम्ही परछाई 
कोई तुम्हारा अंत नहीं है तुम सम कोई अननत नहीं है 
तुमसे ही चलती दुनिया साड़ी तुम्हे पूजते है संसारी 
तुम समान देव नहीं कोई पुराण सकल कामना होइ 
तुम्हे नमन है तुम्हे है वंदन प्रातः सांय कृ अभी नंदन 
हाथ जोड़ में करू वंदना सूर्य देव मेरी पीड़ा हरना 
तुम्ही करता तुम ही कारक तुम ही होतकदीर सुधारक 
शनि यमराज के पिता तुम्ही हो दुष्ट जनो की चिता तुम्ही हो 
करता है सुखदेव प्रार्थना बार बार है यही याचना 
सूर्य देव मेरे कष्ट मिटाओ अंत समय भव पार लगाओ 
कोटि कोटि है देवता सबसे उत्तम आप 
सुनो विनय अविनाश की हरहु नाथ संताप 

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