Current Date: 19 Dec, 2024

सुनलो अरज हमारी

- संजय मित्तल जी।


सुनलो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी,
एक आसरा है तेरा,
हे साँवरे मुरारी,
सुनलो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

तर्ज – मैं हूँ शरण में तेरी।

तेरा सुमिरन तेरा चिंतन,
तेरी पूजा तेरा वंदन,
नहीं होता प्रभु मुझसे,
नहीं लगता मेरा ये मन,
लायक नहीं मैं तेरे,
लायक नहीं मैं तेरे,
फिर भी लगन तुम्हारी,
सुन लो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

तुम्हे कैसे रिझाऊँ मैं,
तुम्हे अपना बनाऊं मैं,
मेरे दिल की तमन्ना है,
तेरे नजदीक आऊं मैं,
अब फासला मिटा दो,
अब फासला मिटा दो,
हे मोर मुकुट धारी,
सुन लो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

नहीं अंजान मैं तुमसे,
करो पहचान तुम मुझसे,
बुझा दो प्यास अंखियन की,
तुम्हे ढूंढे जो मुद्दत से,
दिल में तुम्हे बसा लूँ,
दिल में तुम्हे बसा लूँ,
झांकी दिखा दो प्यारी,
सुन लो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

तेरी दरकार है मुझको,
तुम्ही से प्यार है मुझको,
तेरा पीछा नहीं छोडूं,
प्रभु अधिकार है मुझको,
‘बिन्नू’ का हाथ पकड़ो,
‘बिन्नू’ का हाथ पकड़ो,
निभ जाए अपनी यारी,
सुन लो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

सुनलो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी,
एक आसरा है तेरा,
हे साँवरे मुरारी,
सुनलो अरज हमारी,
मैं हूँ शरण तुम्हारी।।

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