Current Date: 18 Nov, 2024

श्री गुरु चरण सरोज छवि 

- Tara Devi


F:- श्री गुरु चरण सरोज छवि 
 निज मन मन्दिर धारि 
सुमरि गजानन शारदा 
 गहि आशिष त्रिपुरारि
 बुद्धिहीन जन जानिये 
अवगुणों का भण्डार 
बरण परशुराम सुयश 
निज मति के अनुसार 

 F:- जय प्रभु परशुराम सुख सागर 
जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर 
 कोरस:- भृगुकुल मुकुट विकट रणधीरा 
क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा 
F:- जमदग्नी सुत रेणुका जाया 
तेज प्रताप सकल जग छाया 
कोरस:- मास बैसाख सित पच्छ उदारा 
तृतीया पुनर्वसु मनुहारा 

F:- प्रहर प्रथम निशातीत न घामा 
तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा 
कोरस:- तब ऋषि कुटीर रूदन शिशु कीन्हा 
रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा 
F:-  निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े 
 मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े
कोरस:- तेज - ज्ञान मिल नर तनु धारा 
जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा 
 F:- धरा राम शिशु पावन नामा 
नाम जपत जग लहे विश्रामा
कोरस:- भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर 
 कांधे मुंज जनेऊ मनहर 

 F:- मंजु मेखला कटि मृगछाला 
रूद्र माला बर वक्ष विशाला 
कोरस:- पीत बसन सुन्दर तनु सोहें 
 कंध तुणीर धनुष मन मोहें
 F:- वेद - पुराण - श्रुति - स्मृति ज्ञाता 
 क्रोध रूप तुम जग विख्याता
 कोरस:- दायें हाथ श्रीपरशु उठावा 
वेद - संहिता बायें सुहावा
F:- विद्यावान गुण ज्ञान अपारा 
शास्त्र - शस्त्र दोउ पर अधिकारा 
कोरस:- भुवन चारिदस अरु नवखंडा 
चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा

 F:- एक बार गणपति के संगा 
जूझे भृगुकुल कमल पतंगा
कोरस:- दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा 
एक दंत गणपति भयो नामा
F:- कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला 
सहस्त्रबाहु दुर्जन विकराला
 कोरस:- सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं 
रखिहहुं निज घर ठानि मन मांही
F:- मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई 
भयो पराजित जगत हंसाई
कोरस:- तन खलु हृदय भई रिस गाढ़ी 
रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी

F:-  ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना 
तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा
कोरस:- लगत शक्ति जमदग्नी निपाता 
मनहुं क्षत्रिकुल बाम विधाता
 F:- पितु बध मातु रूदन सुनि भारा 
भा अति क्रोध मन शोक अपारा
 कोरस:- कर गहि तीक्षण परशु कराला 
दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला 

F:-  क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा 
पितु - बंध प्रतिशोध सुत लीन्हा
कोरस:- इक्कीस बार भू क्षत्रिय विहीनी 
छीन धरा विप्रन्ह कहँ दीनी
F:- जुग त्रेता कर चरित सुहाई 
शिव - धनु भंग कीन्ह रघुराई 
कोरस:- गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना 
तव समूल नाश ताहि ठाना 
F:- कर जोरि तब राम रघुराई 
विनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई 
कोरस:- भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता 
भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता

 F:- शास्त्र विद्या देह सुयश कमावा 
गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा
कोरस:- चारों युग तव महिमा गाई 
सुर मुनि मनुज दनुज समुदाई 
F:- दे कश्यप सों संपदा भाई 
तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई 
कोरस:- अब लौं लीन समाधि नाथा 
सकल लोक नावइ नित माथा
F:- चारों व एक सम जाना 
समदर्शी प्रभु तुम भगवाना
कोरस:- लहहिं चारि फल शरण तुम्हारी 
देव दनुज नर भूप भिखारी
F:- जो यह पढ़ श्री परशु चालीसा 
तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा
कोरस:- पृर्णेन्दु निसि वासर स्वामी 
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी
पृर्णेन्दु निसि वासर स्वामी 
बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी

F:- परशुराम को चारू चरित 
मेटत सकल अज्ञान 
शरण पड़े को देत प्रभु 
सदा सुयश सम्मान 

 बोलिए श्री परशुराम महाराज की 
कोरस:- जय
 

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