महादेव शिव शंकर का सर्वप्रथम माना जाने वाला ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर में ही स्थित है। यह मंदिर विश्वप्रसिद्ध है तथा गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के तट पर बसा है। यह स्थान इसलिए भी इतना प्रसिद्द है क्योकि यहां श्री कृष्ण ने देह त्याग की थी।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास :-
सोमनाथ की स्थापना कब हुई और किसने की इसकी कोई पुख्ता या वैज्ञानिक जानकारी नहीं है, किन्तु इस के होने की चर्चा ऋग्वेद में की गयी है अर्थात यह मंदिर ईसा से भी
मंदिर में स्थापित शिवलिंग
पूर्व का है। उसके बाद से इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण हुआ है- सबसे पहले इसका पुनर्निर्माण सातवीं सदी में कराया गया उसके बाद आठवीं सदी में अरबी गवर्नर ने इसे नष्ट करवाया किन्तु इसके बाद भी गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 इसवीं में इसका पुर्नर्निर्माण करवाया। यह एक गौरवशाली मंदिर होने के साथ साथ वैभवशाली मंदिर भी था, इसलिए मुगलों और पुर्तगालियों द्वारा यह मंदिर कुल सोलह बार नष्ट किया गया और साथ ही लूटा गया। किन्तु हर बार इसका पुनरुद्धार किया गया, यह वर्तमान का भवन पूर्व गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल जी द्वारा आज़ादी के बाद बनवाया गया और 1995 को पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया। इस मंदिर का शिवलिंग भी कई बार खंडित किया गया और कहा जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं जिन्हे महमूद गजनवी सन 1026 में लूटपाट के दौरान अपने साथ ले गया था।
मंदिर के दक्षिण की तरफ समुद्र के किनारे एक स्तम्भ बनाया गया है जिसके ऊपर एक तीर रखा हुआ है जो संकेत करता है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिणी ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भू भाग नहीं है, यह स्तम्भ बाणस्तम्भ कहलाता है।
सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कथा :-
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है, उसके अनुसार इसका निर्माण सोम अर्थात 'चंद्रदेव' ने कराया था। चंद्रदेव का विवाह प्रजापति दक्ष की 27 पुत्रियों के साथ हुआ था, किन्तु चंद्रदेव उनमे से केवल रोहिणी की ओर अधिक आकर्षित रहते थे जिससे उनकी अन्य पत्नियां दुखी रहती थी। उन्होंने प्रजापति दक्ष
सोमनाथ मंदिर मुख्य परिसर
को यह बात बताई तो उन्होंने चंद्र देव को समझाया किन्तु फिर भी उन पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इससे दक्ष क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया की वे प्रतिदिन क्षय होते रहेंगे अर्थात धीरे धीरे अपनी चांदनी खो देंगे।श्राप से भयभीत होकर चंद्र देव शिव की आराधना करने लगे, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें ऐसा आशीर्वाद दिया जिससे दक्ष के श्राप का मान भी रह गया और चंद्रदेव को भी हानि नहीं हुई। उन्होंने कहा तुम प्रतिदिन धीरे धीरे अपनी आभा खोओगे किन्तु उसके बाद धीरे धीरे अपने पूर्ण स्वरुप में वापस भी आ जाओगे। उनके आशीर्वाद से चंद्रदेव अमावस्या के बाद फिर से धीरे धीरे बढ़ने लगते हैं और पूर्णिमा पर अपने पूर्ण स्वरुप में वापस आ जाते हैं। चंद्रदेव शिवजी के अत्यंत आभारी थे इसलिए उन्होंने अपनी तपस्थली पर शिवलिंग की स्थापना की और उसका नाम सोमनाथ पड़ गया।
सोमनाथ मंदिर की विशेषता :-
सोमनाथ मंदिर प्रारम्भ से ही अत्यंत सुन्दर है जिस कारण यह एक विश्व प्रसिद्द धार्मिक और लुभावना पर्यटन स्थल है। यहां मंदिर में शाम के समय साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक साउंड एंड लाइट शो होता है, जिसके द्वारा सोमनाथ मंदिर के इतिहास का मनमोहक सचित्र वर्णन किया जाता है। दूसरी चीज़ जो यहां की विशेषता है वह है मंदिर की वास्तुकला। वर्तमान मंदिर चालुक्य शैली पर बनाया गया है। यहां का वातावरण भी अत्यंत शांत और रमणीय है। चूँकि यह अरब सागर के तट पर स्थित है इसलिए यहां से समुद्र का भी
लाइट शो के दौरान सोमनाथ मंदिर
अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। शिवजी की बारह ज्योर्तिर्लिंगो में यह सबसे पहली ज्योतिर्लिंग मानी जाती है।
कैसे पहुंचें? :-
वायु मार्ग - केशोद एयरपोर्ट जो की मुंबई से सीधा कनेक्टेड है, सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है जो की 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह पहुंचने के बाद बस और टैक्सी की सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग -
सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन वेरावल स्टेशन है जो की वहां से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग -
गुजरात के किसी भी स्थान से यहां के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
दर्शन प्रारूप :-
सोमनाथ मंदिर में दर्शन का समय: सुबह 6.00 बजे से शाम 9.00 बजे
आरती के लिए समय: प्रातः 7.00 बजे, दोपहर 12.00 बजे और सांय 7.00 बजे
जय सोमनाथ साउंड और लाइट शो: सांयकाल 8.00 बजे से 9.00 बजे तक
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