मालनिया कर सोलह श्रृंगार मालनिया कर सोलह श्रृंगार
भाँति भांति उबटन लगाय के अपनों रूप निखार
करे स्नान सरोवर तट पे सुन्दर केश सवार
तन पे कंचुक सुवधि पेहेनके लेहेंगा तट में धार
अपने करले शृंग चुनरी लायी शीश पे डार
मालनिया कर सोलह श्रृंगार मालनिया कर सोलह श्रृंगार
मुख पे विविध लगाए प्रसाधन काजर रेख सवार
हरी मंजूषा रंग गंधसुर दुखी विटप की धार
बैठ सुविध सुवि पुष्प पिरोये माला करे तैयार
चढ़ी चढ़ाई श्याम सुन्दर पे महिमा अपरम्पार
मालनिया कर सोलह श्रृंगार मालनिया कर सोलह श्रृंगार
बाज उठी घंटी मंदिर में आरती रही उतार
भक्ति भाव की सरस माधुरी बार बार बलिहार
सुन्दर श्याम सलोने की छवि नैनं रही निहार
भूल गयी वो तन मन की सुध भूल गयी संसार
मालनिया कर सोलह श्रृंगार मालनिया कर सोलह श्रृंगार
भाँति भांति उबटन लगाय के अपनों रूप निखार
मालनिया कर सोलह श्रृंगार मालनिया कर सोलह श्रृंगार
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