कोरस :- जय संतोषी माँ जय संतोषी माँ आ आ आ आआ
M:- बोलिये मैया आदि भवानी संतोषी मैया की
कोरस :- जय
M:- भक्तो लीजिये फिर से पावन शुक्रवार आ गया है मेरी मैया संतोषी का प्रिय शुक्रवार भक्तो पावन शुक्रवार के दिवस जो नारी माँ संतोषी का व्रत उपवास रखती है सारा दिन माँ के नामा का ध्यान धरती है और सायकाल संतोषी व्रत कथा का श्रवण कर आरती चालीसा का पठन कर माँ को गुड़ चने का भोग अर्पित करती है और स्वयं भी केवल एक समय भोजन अर्पित करती है वह नारी जीवन में समस्त सुख भोगती है तथा सदा सुहागन रहते हुए अपने जीवन के अंत में माँ संतोषी के चरणों में स्थान प्राप्त करती है तो आइये सुनते है माँ संतोषी की पावन व्रत कथा एक बार फिर बोलिये मैया आदि भवानी संतोषी मैया की
कोरस :- जय
M:- पावन संतोषी व्रत गाथा श्रद्धा से जो सुनता सुनाता हो कल्याण जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस:- संतोषी मैया को प्रणाम जी
M:- इन चरणों में ध्यान लगा लो माँ संतोषी को द्यालो दे वरदान जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस :- संतोषी मैया को प्रणाम जी
M:- किसी गांव में एक बुढ़िया रहा करती थी भक्तो उसके सात पुत्र थे छह बड़े पुत्र तो कमाते धमाते थे परन्तु सत्व सबसे छोटा कुछ भी नहीं करता था बुढ़िया को अपने छह बड़े बेटो से बहुत प्यार था उन्हें बड़े प्यार से भोजन कराती और उनकी बची कुछ झूठन से सातवे को भोजन कराया करती थी सातवे पुत्र की पत्नी यह सब देखकर मन ही मन बहुत दुखी रहती थी परन्तु सातवां पुत्र था उसकी बातो पर विश्वास ही नहीं करता था परन्तु पत्नी के बहुत कहने पर एक दिन खाने के समय आंगन में चारपाई में चादर ओढ़कर लेट गया और स्वास्थ्य खराब होने का बहाना करने लगा उसने देखा की माँ ने छहो भाइयो को प्रेम से भोजन करवाया और उन सबका बचा कुचा भोजन उसी को परोस दिया यह देखकर उसका मन क्षुद हो गया भक्तो माँ से बोला मैं परदेस जाता हूँ माँ बुढ़िया ने भी कह दिया कल का जाता है बेटे तो आज ही चला जा जाते समय पत्नी से कुछ निशानी मांगता है
पत्नी गोबर पाथ रही थी पीठ पे दोनों हाथ धरे थे
पति भी अंगूठी देके निशानी भक्तो फिर परदेस चले थे
पत्नी बोली जाओ स्वामी हम काटेंगे जिंदगानी बिना आप जी
ईश्वर करेंगे कल्याण जी
कोरस :- ईश्वर करेंगे कल्याण जी
M:- पावन संतोषी व्रत गाथा श्रद्धा से जो सुनता सुनाता हो कल्याण जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस:- संतोषी मैया को प्रणाम जी
M:- जय संतोषी माँ जय संतोषी माँ आ आ आ आआ
उधर पति परदेस पंहुचा और एक साहूकार के यहाँ नौकरी करने लगा धीरे धीरे अपनी नौकरी से उसने काम धंदे को दोगुना चौगुना बना दिया और फिर पूरी जी जान से मेहनत करी जिससे सेठ का विश्वास भी जीत लिया काम धंदे में इतना खो गया की अपने परिवार के बारे में सब कुछ भूल गया उधर उसकी माँ और छहो भाभियाँ उसकी पत्नी पर अत्याचार करती थी उसे भूसे की रोटी देते नारियल के खोपे में पानी देते ऐसे ही दुखी मन से एक दिन जंगल से लकड़ी लेने जाती है तो क्या देखती है स्त्रिया वहा पूजन आरती कर रही है पूजन के पश्चात जिज्ञासावश वो उनसे पूछने लगती है की ये कोनसे देवी देवता का पूजन है तब स्त्रियां उसे बताती है की ये पावन संतोषी माता के व्रत का पूजन है इस व्रत का पालन सोलह शुक्रवार तक करना चाहिए शुक्रवार को स्नान पश्चात माँ संतोषी का पूजन कर उपवास करना चाहिए सायकाल पूजन के पश्चात गुड़ चने का भोग अर्पित करना चाहिए माँ अवश्य मुरादे पूर्ण करती है
यह सुन उसने अपने मन में माँ के शुक्रवार का व्रत और मन की मुराद मांगने की सोची
माँ के नाम की मन्नत मानी माँ संतोषी तुम दया की दानी
मेरे पति से मुझको मिला दो अपनी किरपा माँ बरसा दो
माँ ने चमत्कार दिखलाया पति को परिवार याद आया लेता नाम रे
वापिस में जाओ उनके पास रे
कोरस :- वापिस में जाओ उनके पास रे
M:- पावन संतोषी व्रत गाथा श्रद्धा से जो सुनता सुनाता हो कल्याण जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस:- संतोषी मैया को प्रणाम जी
M:- पति सोचने लगा वापिस जाऊ तो जाऊ कैसे सारा हिसाब किताब तो बाकी पड़ा है परन्तु माँ संतोषी की किरपा से उसका सारा हिसाब किताब एक ही दिवस में पूर्ण हो गया उसके पास बहुत सा धन भी आ गया जिस धन को उसने स्वर्ण मुद्राओ में बदल लिया और धैर्य बनाकर अपने घर की और लौट चला उधर उसकी पत्नी ने जब मार्ग में धुल उड़ती देखी तो माँ संतोषी से पूछने लगी माँ ने कहा बेटी तेरा पति वापिस आ रहा है जा सुखी लड़कियों के तीन गर्ठर बना एक नदी किनारे रख एक मेरे मंदिर में और तीजा अपने सर पर रख अपने घर पर जाना जोर से भूमि पर पटकना और तेज आवाज में कहना लो लकड़ी ले आयी मुझे भूसे की रोटी दो नारियल के खोपरे में पानी दो घर में घर में कौन मेहमान आया है और उधर उसका पति मार्ग में लकडिया देखकर रुक जाता है वहां भोजन इत्यादि कर अपने घर लोटता है अपने माँ भाई भाभियो एवं भतीजे भतीजीओ से मिलता है परन्तु अपने पत्नी के विषय में उसे कुछ याद नहीं रहता तभी उसकी पत्नी घर के अंदर आती है तेज आवाज में चिल्लाती है भूसे की रोटी दो नारियल के खोपरे में पानी दो घर में कौन मेहमान आया है उसकी आवाज सुनकर उसका पति बाहर आता है और उसके हाथ में अंगूठी देखके पहचान जाता है अपनी पत्नी की यह हालत देख वह दुखी होता है और माँ से अलग घर में रहने के लिए चाबी मांगता है अलग घर में जा उसकी पत्नी माँ संतोषी का उद्यापन करवाती है परन्तु उसकी जेठानिया छल से बालको को खट्टा खिलाकर उद्यापन भंग करवा देती है
खट्टा खाकर भंग कर डाला माँ ने अपने क्रोध दिखाया
पति को सैनिक पकड़के ले गए और जेल में बंद कराया
मैया से फिर माफ़ी मांगी है संतोषी में अज्ञानी दो क्षमा दान जी
माफ़ करो तुम अपराध जी
कोरस :- माफ़ करो तुम अपराध जी
M:- पावन संतोषी व्रत गाथा श्रद्धा से जो सुनता सुनाता हो कल्याण जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस:- संतोषी मैया को प्रणाम जी
M:- जय संतोषी माँ जय संतोषी माँ आ आ आ आआ
संतोषी माता से क्षमा मांगने के पश्चात माँ से प्रार्थना करती हैकी है माँ मैं आपका उद्यापन फिर से करवाउंगी माँ संतोषी ने दर्शन दिए और कहा है पुत्री अब कोई भूल नहीं करना ध्यान रहे मेरे उद्यापन के दिन कोई भी खट्टा पदार्थ ना खाने पाए माँ की कृपा से पति भी जेल से वापिस आ गया अगले शुक्रवार को उसने फिर से माँ का उद्यापन किया इस बार भी जेठानी के लड़को ने खट्टा माँगा तो उसने उन्हें घर से बाहर भगा दिया और ब्राह्मण कुम्हारो को भोज कराकर दक्षिणा दी माँ संतोषी अत्यंत प्रसन्न हुई और नौ माह पश्चात उसे चाँद समान एक पुत्र की प्राप्ति हुई तो देखा अपने भक्तो जिस तरह उस स्त्री ने पुरे विधि विधान से माँ संतोषी की सोलह शुक्रवार की व्रत की और इच्छा पूर्ण होने पर उद्यापन करवाया और जीवन में माँ संतोषी की कृपा पायी ठीक उसी तरह यदि आप भी माँ संतोषी के व्रत पुरे विधि विधान से करेंगे तो आप और आपके परिवार पर माँ की विशेष कृपा सदा बनी रहेगी बोलिये संतोषी मैया की
कोरस :- जय
M:- माँ संतोषी नाम है सच्चा भक्तो मन से जपते जाना
पूजन अर्चन माँ का करना चंदन का इन्हे तिलक लगाना
भवसागर से तर जाओगे संतोषी किरपा पाओगे हो गुणगान जी
मैया करेगी कल्याण जी
कोरस :- मैया करेगी कल्याण जी
M:- पावन संतोषी व्रत गाथा श्रद्धा से जो सुनता सुनाता हो कल्याण जी
संतोषी मैया को प्रणाम जी
कोरस:- संतोषी मैया को प्रणाम जी
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