॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन,
दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश,
बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै,
भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई,
सुख सम्पति संसार॥
॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी,
जग विख्यात सभी मन मानी ।
नमो नमो संकट कू हरनी,
मनवांछित पूरण सब करनी ॥2॥
नमो नमो जय जय जगदंबा,
भक्तन काज न होय विलंबा ।
नमो नमो जय जय जगतारिणी,
सेवक जन के काज सुधारिणी ॥4॥
दिव्य रूप सिर चूनर सोहे,
जगमगात कुन्डल मन मोहे ।
मांग सिंदूर सुकाजर टीकी,
गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥6॥
गल वैजंती माल विराजे,
सोलहूं साज बदन पे साजे ।
धन्य भाग गुरसामलजी को,
महम डोकवा जन्म सती को ॥8॥
तनधनदास पति वर पाये,
आनंद मंगल होत सवाये ।
जालीराम पुत्र वधु होके,
वंश पवित्र किया कुल दोके ॥10॥
पति देव रण मॉय जुझारे,
सति रूप हो शत्रु संहारे ।
पति संग ले सद् गती पाई,
सुर मन हर्ष सुमन बरसाई ॥12॥
धन्य भाग उस राणा जी को,
सुफल हुवा कर दरस सती का ।
विक्रम तेरह सौ बावन कूं,
मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं ॥14॥
नगर झून्झूनू प्रगटी माता,
जग विख्यात सुमंगल दाता ।
दूर देश के यात्री आवै,
धुप दिप नैवैध्य चढावे ॥16॥
उछाङ उछाङते है आनंद से,
पूजा तन मन धन श्रीफल से ।
जात जङूला रात जगावे,
बांसल गोत्री सभी मनावे ॥18॥
पूजन पाठ पठन द्विज करते,
वेद ध्वनि मुख से उच्चरते ।
नाना भाँति भाँति पकवाना,
विप्र जनो को न्यूत जिमाना ॥20॥
श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते,
सेवक मनवांछित फल पाते ।
जय जय कार करे नर नारी,
श्री राणी सतीजी की बलिहारी ॥22॥
द्वार कोट नित नौबत बाजे,
होत सिंगार साज अति साजे ।
रत्न सिंघासन झलके नीको,
पलपल छिनछिन ध्यान सती को ॥24॥
भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला,
भरता मेला रंग रंगीला ।
भक्त सूजन की सकल भीङ है,
दरशन के हित नही छीङ है ॥26॥
अटल भुवन मे ज्योति तिहारी,
तेज पूंज जग मग उजियारी ।
आदि शक्ति मे मिली ज्योति है,
देश देश मे भवन भौति है ॥28॥
नाना विधी से पूजा करते,
निश दिन ध्यान तिहारो धरते ।
कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी,
करूणामयी झुन्झुनू वासिनी ॥30॥
प्रथम सती नारायणी नामा,
द्वादश और हुई इस धामा ।
तिहूं लोक मे कीरति छाई,
राणी सतीजी की फिरी दुहाई ॥32॥
सुबह शाम आरती उतारे,
नौबत घंटा ध्वनि टंकारे ।
राग छत्तीसों बाजा बाजे,
तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥34
त्राहि त्राहि मै शरण आपकी,
पुरी मन की आस दास की ।
मुझको एक भरोसो तेरो,
आन सुधारो मैया कारज मेरो ॥36॥
पूजा जप तप नेम न जानू,
निर्मल महिमा नित्य बखानू ।
भक्तन की आपत्ति हर लिनी,
पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी ॥38॥
पढे चालीसा जो शतबारा,
होय सिद्ध मन माहि विचारा ।
टिबरिया ली शरण तिहारी,
क्षमा करो सब चूक हमारी ॥40॥
॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण,
जन जीवन आधार ।
बिगङी बात सुधारियो,
सब अपराध बिसार ॥
॥ मात श्री राणी सतीजी की जय ॥
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