M:- श्री हनुमंत स्तुति प्रेमीजनों इन पांच श्लोको में श्री हनुमान जी की बड़ी ही विलक्षण वंदना की गई है कहते है हनुमान जी का वास कहा है अक्सर लोग भ्रमित रहते है शास्त्री आख्यान है पारिजात वृक्ष के जड़ में हनुमान जी का वास है आइए पारिजात तरु मूल वासनाम
भायामि पवमान नन्दनम
ऐसे दिव्य श्लोक से श्री हनुमान जी की वंदना करते है
अंजनी मती पाट लालनं कांचन नदरिक मनीय विग्रहाम
पारिजात तरु मूल वासनाम भायामि पवमान नन्दनम
गोसपादि कृत्वा रिशम मस्की कृत राक्षम रामायण महा मलारत्नम
वंदे अमिल्तजाम यत्र यत्र रघुनाथ कृतनम तत्र तत्र कृत मस्त कांजलिम
वास्पारि पारी पूर्ण लोचनं मरुतिनाम राक्षस सान्तकं अंजनी नादनम वीरम
जानकी शोक नासनाम कपिक्षमाक हन्तारं वंदे लंका भयंकरम
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
इति हनुमंत स्तुति समाप्त जय सिया राम
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