यह एक प्रभावशाली शनिस्तवन है। इसका अनुष्ठान पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करें तथा जप काल में
किसी प्रकार की अशुद्धि अथवा त्रुटि भी नहीं रहनी चाहिए।
विनियोगःॐ अस्यश्रीशनैश्चरस्तोत्रमंत्रस्यदशरथऋषिःत्रिष्टुपछंद:
श्री शनैश्चरोदेवताश्रीशनैश्चरप्रीत्यर्थेजपेविनियोगः ।
दाए हाथ में जल लेकर विनियोग करे इसके बाद शनि का ध्यान करते हुए स्तवन आरम्भ करे
दशरथउवाच
कोणोऽन्तकोरौद्रयमोऽथबभ्रुःकृष्णःशनिःपिंगलमन्दसौरिः।
नित्यंस्मृतोयोहरते च पीड़ांतस्मैनमःश्रीरविनंदनाय॥
नरानरेंद्राःपशवोमृगेन्द्रावन्याश्वयेकीटपतंगभृगाः।
पीड्यन्तिसर्वेविषमस्थितेनतस्मैनमःश्रीरविनन्दनाय॥
देशाश्चदुर्गाणिवनानियत्रसेनानिवेशा: पुरपत्तनानि।
पीड्यन्तिसर्वेविषस्थितेनतस्मैनमःश्रीरविनंदाय।।
तिलै्यवैर्माघगुडान्नदानैःलौह्हेश्चनीलाम्बरदानतोवा।
प्रीष्तििमंत्रैन्निजवासरे च तस्मैनमःश्रीरविनंदनाय॥
प्रयागकूलेयमुनातटेवासरस्वतीपुण्यजलेगुहायाम्।
योयोगिनाध्यानगतोऽपिसूक्ष्मतस्मैनमःश्रीरविनंदनाय॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहंप्रविष्टस्तदीयवारे स नरःसुखीस्यात्।
गृहाद्गतोयो न पुनःप्रयातितस्मैनमःश्रीरविनंदनाय॥
स्त्रष्टास्वयम्भुर्भुवनत्रयस्यत्राताहरीशोहरतेपिनाकी।
एकस्त्रिधाऋग्यजुसाममूर्तितस्मैनमःश्रीरविनन्दनाय॥
शन्यष्टकंयःप्रयतःप्रभातेनित्यंसपुत्रैःपशुबान्धवैश्च।
पठेत्तुसौख्यंभुविभोगयुक्तःप्राप्नोतिनिर्वाणपदंतदन्ने॥
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