Current Date: 24 Nov, 2024

श्री राधा चालीसा |Shree Radha Chalisa. (रोज़ाना सुने ये चमत्कारी चालीसा)

- Rashmi Yogini


श्री राधा चालीसा लिरिक्स अर्थ सहित हिंदी में |Shree Radha Chalisa Lyrics With Hindi Meaning.

।।दोहा।।

 

श्री राधे वृषभानुजा भक्तिनी प्राणाधार।

वृन्दाविपिन विहारिणी प्रणवों बारम्बार ।।

जैसो तैसो रावरौ कृष्ण प्रिया सुखधाम ।

चरण शरण निज दीजिये सुन्दर सुखद ललाम ।।

 

हे वृषभानु नंदिनी श्री राधा! आप भक्तों के प्राणों की आधार हैं। हे वृन्दावन विहारिणी ! मैं बार-बार आपको प्रणाम करता हूँ। हे कृष्ण प्रिया! हे समस्त सुखों की धाम, मैं जैसा भी हूँ, जो भी हूँ, परन्तु आपका ही हूँ। अपने सुन्दर एवं सुखद चरण कमलों की निज शरण प्रदान कीजिये।

 

 

।।चौपाई।।

 

जय वृषभानु कुँवरी श्री श्यामा।

कीरति नंदिनी शोभा धामा ।।

नित्य बिहारिनी रस विस्तारिणी।

अमित मोद मंगल दातारा ।।1।।

 

हे वृषभानु लाड़िली श्री श्यामा जू ! आपकी जय हो, कीरति नंदिनी श्री श्यामा जू !आपकी जय हो,आप शोभा की धाम हैं, नित्य बिहारिणी हैं, रास का विस्तार करने वाली हैं, नित्य सुख तथा समस्त मंगल की दात्री हैं।।1।।

 

 

 

रास विलासिनी रस विस्तारिणी।

सहचरी सुभग यूथ मन भावनी ।।

करुणा सागर हिय उमंगिनी।

ललितादिक सखियन की संगिनी ।।2।।

 

हे श्री राधा ! आप नित्य रास परायण हैं, रस का विस्तार करने वाली हैं। सहचरियों के यूथ के मध्य में विराजमान आपकी अनिर्वचनीय शोभा मन को मोहने वाली है।आप करुणा की सागर हैं, एवं जिनका हृदय नित्य ही उमंग में रहता है तथा ललितादिक सखियोंकी नित्य संगिनी हैं।।2।।

 

 

 

दिनकर कन्या कुल विहारिनी।

कृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनी ।।

नित्य श्याम तुम्हरौ गुण गावै।

राधा राधा कहि हरषावै ।।3।।

 

हे सूर्य के कुल की सुशोभित नित्य विहारनी ! हे श्री कृष्ण की प्राण प्रिय ! एवं उनके हृदय के उल्लास को बढ़ाने वाली! श्री श्याम सुंदर नित्य ही आपके गुणों को गाते हैं एवं राधा राधा कहकर हर्षित होते हैं।।3।।

 

 

 

मुरली में नित नाम उचारें।

तुम कारण लीला वपु धारें।।

प्रेम स्वरूपिणी अति सुकुमारी।

श्याम प्रिया वृषभानु दुलारी।।4।।

 

श्री श्याम सुंदर नित्य ही अपनी मुरली में आपका नाम उच्चारण करते हैं एवं आपके ही कारण वह समस्त लीलाएँ करते हैं । आप प्रेम स्वरूपिणी हैं, अति सुकुमारी हैं, श्याम प्रिया हैं एवं वृषभानु दुलारी हैं ।।4।।

 

 

 

नवल किशोरी अति छवि धामा।

द्युति लघु लगै कोटि रति कामा ।।

गौरांगी शशि निंदक वंदना।

सुभग चपल अनियारे नयना ।।5।।

 

नित्य नवीन शोभा वाली हे किशोरी जू !आप सुंदरता की धाम हैं जिसकी कोई सीमा नहीं, करोड़ों काम रति भी आपके समक्ष तेजहीन हैं,आपका गौरांग वदन है जो करोड़ों चंद्र के प्रकाश से भी अधिक उज्जवल है तथा आपके नेत्र सुभग चपल एवं अनियरे हैं।।5।।

 

 

 

जावक युत युग पंकज चरना।

नुपुर धुनि प्रीतम मन हरना।।

संतत सहचरी सेवा करहिं।

महा मोद मंगल मन भरहीं।।6।।

 

आपके चरणों में जावक सुशोभित है, एवं आपके नूपुर प्रीतम के मन का हरण करते हैं।आपकी सहचरियाँ नित्य ही आपकी सेवा करती हैं एवं उनका हृदय महा आनंद में भरकर मंगल को प्राप्त होता है ।।6।।

 

 

 

रसिकन जीवन प्राण अधारा।

राधा नाम सकल सुख सारा।।

अगम अगोचर नित्य स्वरूपा।

ध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा।।7।।

 

हे श्री राधा ! आप रसिकों के प्राणों की आधार हैं। आपके “राधा” नाम में समस्त सुख समायें हैं।आप आगम-निगम तथा वेदों से अगोचर नित्य स्वरूपा हैं तथा ब्रज भूप श्री कृष्ण नित्य आपका ध्यान धरते हैं।।7।।

 

 

 

उपजेहु जासु अंश गुण खानी।

कोटिन उमा रमा ब्रह्माणी।।

नित्य धाम गोलोक विहारिनी।

जन रक्षक दुःख दोष नसावनि।।8।।

 

हे श्री राधा ! आपके मात्र एक अंश से करोड़ों-करोड़ों लक्ष्मी,सरस्वती तथा पार्वती देवियाँ प्रकट होती हैं, जो गुणों की खान हैं, आप नित्य गोलोक धाम में विहार परायण हैं, सब जनों की रक्षक हैं तथा उनके दुःख दोष का नाश करनेवाली हैं।।8।।

 

 

 

शिव अज मुनि सनकादिक नारद।

पार न पायें शेष अरु शारद।।

राधा शुभ गुण रूप उजारी।

निरखि प्रसन्न होत बनवारी।।9।।

 

 शिव, ब्रह्मा, मुनि जन, सनकादिक, नारद, शेष एवं सरस्वती भी आपका पार न पा सके। हे श्री राधा ! आप शुभ हैं, गुण और रूप की खान हैं। आपके एक दर्शन से ही बनवारी श्री कृष्ण प्रसन्न हो जाते हैं।।9।।

 

 

 

ब्रज जीवन धन राधा रानी।

महिमा अमित न जाय बखानी।।

प्रीतम संग देई गलबाँही ।

बिहरत नित वृन्दावन माँहि।।10।।

 

हे श्री राधा रानी !आप ब्रज मंडल की जीवन धन हैं, आपकी महिमा अपार है जिसका वर्णन संभव नहीं है।आप श्री श्यामसुंदर संग गलबाँही दिए नित्य वृन्दावन में रमण करती हैं।।10।।

 

 

 

राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधा,

एक रूप दोउ प्रीति अगाधा।

श्री राधा मोहन मन हरनी,

जन सुख दायक प्रफुलित बदनी।।11।।

 

हे श्री राधा ! आप सदैव श्री कृष्ण नाम का उच्चारण करती हैं तथा श्री कृष्ण आपके नाम का उच्चारण करते हैं,जिनका स्वरूप एक समान है तथा दोनों प्रेम के समुद्र हैं।आप सबको मोहने वाले मनमोहन के मन का हरण करने वाली हैं, समस्त जनों को सुख प्रदान करती है तथा नित्य प्रफुल्लित हैं।।11।।

 

 

 

कोटिक रूप धरे नंद नंदा।

दर्श करन हित गोकुल चंदा।।

रास केलि करि तुम्हें रिझावें।

मान करो जब अति दुःख पावें।।12।।

 

हे श्री राधा ! आपके दर्शन प्राप्ति के हित में नन्द नंदन श्री कृष्ण करोड़ों रूप धरते हैं। गोकुल चंद्र श्री श्यामसुंदर आपको रिझाने के लिए महारास लीला करते हैं और जब आप मान लीला करती हैं अर्थात क्रोध करने की लीला करती हैं तब वे बहुत दुःख पाते हैं।।12।।

 

 

 

प्रफुलित होत दर्श जब पावें।

विविध भांति नित विनय सुनावे।।

वृन्दारण्य विहारिनी श्यामा।

नाम लेत पूरण सब कामा।।13।।

 

हे श्री राधा ! मान लीला के पश्चात् जब श्री कृष्ण आपका दर्शन पाते हैं तो प्रफुल्लित हो जाते हैं तथा बहुत प्रकार से आपको विनय सुनते हैं। हे वृन्दावन विहारिणी श्री श्यामा जू ! आपका नाम लेने से समस्त कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।।13।।

 

 

 

कोटिन यज्ञ तपस्या करहु।

विविध नेम व्रतहिय में धरहु।।

तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावें।

जब लगि राधा नाम न गावें।।14।।

 

श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भले ही कोई करोड़ों यज्ञ करे, तपस्या करे,बहुत प्रकार के नियम और व्रत का अनुष्ठान करे, परन्तु फिर भी श्री कृष्ण उस साधक को तब तक अपनाते नहीं हैं, जब तक वह राधा नाम का गान न करे।।14।।

 

 

 

वृंदा विपिन स्वामिनी राधा।

लीला वपु तब अमित अगाधा।।

स्वयं कृष्ण पावै नहीं पारा।

और तुम्हैं को जानन हारा।।15।।

 

 

हे वृन्दावन की स्वामिनी श्री राधा ! आपका लीला स्वरुप नित्य है एवं अगाध है। स्वयं श्री कृष्ण आपका पार नहीं पाते तो औरों की तो कल्पना ही नहीं है।।15।।

 

 

 

श्री राधा रस प्रीति अभेदा।

सादर गान करत नित वेदा।।

राधा त्यागि कृष्ण को भजिहैं।

ते सपनेहुँ जग जलधि न तरिहैं।।16।। 

 

हे श्री राधा !आप ही रस स्वरूप हैं तथा प्रीति स्वरुप हैं जिसमें भेद नहीं है, वेद भी इसी का गान करते रहते हैं।आपको त्याग कर जो केवल श्री कृष्ण का भजन करता है, वह सपने में भी संसार सागर को पार नहीं कर सकता।।16।।

 

 

 

कीरति कुंवरि लाडिली राधा ।

सुमिरत सकल मिटहि भव बाधा।।

नाम अमंगल मूल नसावन ।

त्रिविध ताप हर हरि मनभावन ।।17।। 

 

हे कीरति कुँवरि श्री राधा ! आपके स्मरण से समस्त प्रकार की संसार की बाधा मिट जाती है। हे लाड़िली जू ! आपका नाम अमंगल के मूल का नाश कर देता है, तीनों तापों को हरने वाला है तथा श्री हरि [कृष्ण]और हर [शिव] के मन को भाने वाला है।।17।।

 

 

 

राधा नाम परम सुखदाई।

भजतहिं कृपा करहिं यदुराई।।

यशुमति नंदन पीछे फिरिहैं।

जो कोऊ राधा नाम सुमिरिहै।।18।।

 

हे श्री राधा ! आपका नाम परम सुख को प्रदान करने वाला है, जिसको भजते ही श्री कृष्ण तत्क्षण कृपा करते हैं। जो भी आपके नाम का स्मरण करता है उस भाग्यशाली जीव के पीछे यशोदा नंदन फिरने लगते हैं।।18।।

 

 

 

रास विहारिनी श्यामा प्यारी।

करहु कृपा बरसाने वारी ।।

वृन्दावन है शरण तिहारी।

जय जय जय वृषभानु दुलारी ।।19।। 

 

हे रासेश्वरी राधा ! मुझे आशीर्वाद दो जिससे मैं तुम्हारी कृपा पा सकूं। यहां तक ​​कि वृंदावन धाम भी आपके शरण है।।19।।

 

 

 

।।दोहा।।

 

 

श्री राधा सर्वेश्वरी , रसिकेश्वर घनश्याम ।

करहुँ निरंतर वास मैं , श्री वृन्दावन धाम ।। 

 

हे सर्वेश्वरी राधा एवं रसिकेश्वर श्री कृष्ण! ऐसी कृपा कीजिए कि मैं नित्य ही वृंदावन धाम में वास करता रहूँ ।

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