इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनिया भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
रूप देख कर सागर बोला,
कौन पिता महतारी,
कौन देश की रहने वाली,
कौन पुरुष की नारी,
बता दे कौन पुरुष की नारी,
हौले हौले गौरा बोले,
छाया है रूप अपार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
राजा हिमाचल पिता हमारे,
मैनावती महतारी,
शिव शंकर है पति हमारे,
मैं उनकी घर नारी,
समुंदर मैं उनकी घर नारी,
जल ले जाऊं पिय नहलाऊं,
तू सुन ले वचन हमार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
कहे समुंदर छोड़ भोले को,
पास हमारे आओ,
चौदह रत्न छुपे है मुझमे,
बैठी मौज उड़ाओ,
गिरजा बैठी मौज उड़ाओ,
वो है योगिया पीवत भंगिया,
क्यों सहती कष्ट अपार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
क्रोधित होकर चली है गौरा,
पास भोले के आई,
तुम्हरे रहते तके समुंदर,
सारी कथा सुनाई,
भोले को सारी कथा सुनाई,
शिव कियो जतन,
सागर को मथन,
लियो चौदह रतन निकाल रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनिया भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
🎵चली पनिया भरन शिव नार🎵
🙏 गायक: मिनाक्षी मुकेश
🎼 संगीत: आकाश
विवरण:
मिनाक्षी मुकेश द्वारा गाया गया चली पनिया भरन शिव नार भजन गौरा की शिव के प्रति भक्ति और प्यार की सुंदर कहानी है। यह भजन समुद्र के साथ गौरा की बातचीत और शिव के प्रति उसके समर्पण को दर्शाता है। गौरा के रूप और उसकी आत्मिक यात्रा के माध्यम से, यह भजन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम में जीवन की सभी बाधाएं पार की जा सकती हैं।
समुद्र से संवाद करते हुए, गौरा अपने पिता हिमाचल और पति शिव शंकर के प्रति श्रद्धा और समर्पण की बात करती है।
"चली पनिया भरन शिव नार" हमें अपने भीतर शिव की भक्ति और आस्था को और मजबूत करने का प्रेरणा देता है।
इस भजन को सुनकर आप भी अपने जीवन में शिव के साथ गहरे संबंध महसूस करेंगे।
गीत के बोल:
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनिया भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
रूप देख कर सागर बोला,
कौन पिता महतारी,
कौन देश की रहने वाली,
कौन पुरुष की नारी,
बता दे कौन पुरुष की नारी,
हौले हौले गौरा बोले,
छाया है रूप अपार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
राजा हिमाचल पिता हमारे,
मैनावती महतारी,
शिव शंकर है पति हमारे,
मैं उनकी घर नारी,
समुंदर मैं उनकी घर नारी,
जल ले जाऊं पिय नहलाऊं,
तू सुन ले वचन हमार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
कहे समुंदर छोड़ भोले को,
पास हमारे आओ,
चौदह रत्न छुपे है मुझमे,
बैठी मौज उड़ाओ,
गिरजा बैठी मौज उड़ाओ,
वो है योगिया पीवत भंगिया,
क्यों सहती कष्ट अपार रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
क्रोधित होकर चली है गौरा,
पास भोले के आई,
तुम्हरे रहते तके समुंदर,
सारी कथा सुनाई,
भोले को सारी कथा सुनाई,
शिव कियो जतन,
सागर को मथन,
लियो चौदह रतन निकाल रे,
सागर में उतारी गागरिया।
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनियां भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
इठलाती हुई बल खाती हुई,
चली पनिया भरन शिव नार,
सागर में उतारी गागरिया ॥
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