Current Date: 18 Nov, 2024

शिव अमृतवाणी

- Avinash Karn


मस्तक चंद्र शीश  गंग धारा जय शिव शंकर जय ओमकारा 
मन दर्पण में शिव को बसा लो जीवन अपना धन्य बना लो 
देवो के महादेव है नायक दास जनो के सदा सहायक 
शीतल छवि बड़ी सुखदायी करुणा करण करे करुणाई  
शिव शंकर है घट घट वासी अजर अमर है शिव अविनाशी 
पीके हलाहल ये दर्शाया शिव से धन्य जीवन पाया 
आदि अनादि है आदि योगी शमशानी शिव सती वियोगी 
प्रारम्भ अंत मंध्य ना कोई शिव सम और ना है कोई 
ज्योतिर्लिंग में आप विराजे बैल पत्र सर ऊपर साजे 
बहे निरंतर जल की धारा नृत्य करे शिव लिंग उदारा
लंकापति जब रावण आया कर में जब शिवलिंग उठाया 
चला वेग से लंका जाए बिच राह लघुशंका आये 
कैसे शिवलिंग धरि धरा पर सोच रहा वो खड़े धरा पर 
विष्णु बैउ बनकर आये देखके रावण को मुस्काये 
रावण ने बैजू को पुकारा एक काम तुम करो हमारा 
शिवलिंग शीश धरो पल भर को इतना काम हमारा कर दो 
शिवलिंग लेके चला में लंका सत्ता रही है मुझे लघुशंका 
निवृत होकर में आता हूँ शिवलिंग तुमसे ले जाता हूँ 
बैजू बोलै जल्दी आना मुझको है जल्दी घर जाना 
देर अधिक नहीं रुक पाउँगा ले शिवलिंग चला जाऊंगा 
आओ शीघ्र उसे बतलाया फिर रावण लघुशंका ढाया 
विष्णु जी की देखो माया लघुशंका का वेग बढ़ाया 
लघुशंका मिटती नहीं समय निकलता जाए 
माया श्री जगदीश की रावण समझ ना पाए 
सुबह से हो गयी शाम वहां पर शिवलिंग बैजू थाम वहां पर 
खड़े खड़े बैजू उच्चारा तक गया पूरा बदन हमारा 
कहाँ हो तुम जल्दी आ जाओ शिवलिंग अपने शीश उठाओ 
देर हो रही घर जाता हूँ शिवलिंग यही में धर जाता हूँ 
रावण व्याकुल था अति चिंतित होती नहीं लघुशंका निवृत 
बैजू जोर जोर चिल्लाये कही वो शिवलिंग धर ना जाए 
बीत गयी  जब लम्बी देरी बैजू ने ना करी देरी 
शिवलिंग को धर दिया धरा पर  उधर से रावण चला नहाके 
रावण वहां लोट के आया शिवलिंग धरा धारा पर पाया 
जोर जोर से वो चिल्लाया शिवलिंग पुनः उठा नहीं पाया 
रोये चीखे जोर लगाए लेकिन शिवलिंग उठा ना पाए 
किसी लगी उसे लघुशंका छोड़ के शिवलिंग चला वो लंका 
शिवलिंग जहा गया था धर के है विख्यात नाम देवधर के 
बेधिनाथ का धाम है पावन निज शिवशंकर नाम सुहावन 
भीड़ लगी प्रतिदिन संतन की भोले नाथ के अभिनंदन की 
लगती भीड़ यहाँ अति भारी यहाँ विराजे शिव त्रिपुरारी 
दर्शन कर लो बैजनाथ के शिव वरदानी भोलेनाथ के 
भव बंधन सब कट जायेगा मोक्ष मार्ग तभी मिल जायेगा 
महिमा है शिव ओमकार की महिमा शिव के सोमवार की 
सोमवार दिन सोमनाथ का वरदानी शिव भोलेनाथ का 
जय अभियंकर जय शिव शंकर दया करो सुखदेव के ऊपर 
हाथ रखो अविनाश के सर पर आये नाथ तुम्हारे दर पर 
हाथ जोड़ विनती करू काटो विघ्न कलेश आन बसों ह्रदय मेरे गौरा पति गणेश 
लेखक :- सुखदेव निषाद 

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