मस्तक चंद्र शीश गंग धारा जय शिव शंकर जय ओमकारा
मन दर्पण में शिव को बसा लो जीवन अपना धन्य बना लो
देवो के महादेव है नायक दास जनो के सदा सहायक
शीतल छवि बड़ी सुखदायी करुणा करण करे करुणाई
शिव शंकर है घट घट वासी अजर अमर है शिव अविनाशी
पीके हलाहल ये दर्शाया शिव से धन्य जीवन पाया
आदि अनादि है आदि योगी शमशानी शिव सती वियोगी
प्रारम्भ अंत मंध्य ना कोई शिव सम और ना है कोई
ज्योतिर्लिंग में आप विराजे बैल पत्र सर ऊपर साजे
बहे निरंतर जल की धारा नृत्य करे शिव लिंग उदारा
लंकापति जब रावण आया कर में जब शिवलिंग उठाया
चला वेग से लंका जाए बिच राह लघुशंका आये
कैसे शिवलिंग धरि धरा पर सोच रहा वो खड़े धरा पर
विष्णु बैउ बनकर आये देखके रावण को मुस्काये
रावण ने बैजू को पुकारा एक काम तुम करो हमारा
शिवलिंग शीश धरो पल भर को इतना काम हमारा कर दो
शिवलिंग लेके चला में लंका सत्ता रही है मुझे लघुशंका
निवृत होकर में आता हूँ शिवलिंग तुमसे ले जाता हूँ
बैजू बोलै जल्दी आना मुझको है जल्दी घर जाना
देर अधिक नहीं रुक पाउँगा ले शिवलिंग चला जाऊंगा
आओ शीघ्र उसे बतलाया फिर रावण लघुशंका ढाया
विष्णु जी की देखो माया लघुशंका का वेग बढ़ाया
लघुशंका मिटती नहीं समय निकलता जाए
माया श्री जगदीश की रावण समझ ना पाए
सुबह से हो गयी शाम वहां पर शिवलिंग बैजू थाम वहां पर
खड़े खड़े बैजू उच्चारा तक गया पूरा बदन हमारा
कहाँ हो तुम जल्दी आ जाओ शिवलिंग अपने शीश उठाओ
देर हो रही घर जाता हूँ शिवलिंग यही में धर जाता हूँ
रावण व्याकुल था अति चिंतित होती नहीं लघुशंका निवृत
बैजू जोर जोर चिल्लाये कही वो शिवलिंग धर ना जाए
बीत गयी जब लम्बी देरी बैजू ने ना करी देरी
शिवलिंग को धर दिया धरा पर उधर से रावण चला नहाके
रावण वहां लोट के आया शिवलिंग धरा धारा पर पाया
जोर जोर से वो चिल्लाया शिवलिंग पुनः उठा नहीं पाया
रोये चीखे जोर लगाए लेकिन शिवलिंग उठा ना पाए
किसी लगी उसे लघुशंका छोड़ के शिवलिंग चला वो लंका
शिवलिंग जहा गया था धर के है विख्यात नाम देवधर के
बेधिनाथ का धाम है पावन निज शिवशंकर नाम सुहावन
भीड़ लगी प्रतिदिन संतन की भोले नाथ के अभिनंदन की
लगती भीड़ यहाँ अति भारी यहाँ विराजे शिव त्रिपुरारी
दर्शन कर लो बैजनाथ के शिव वरदानी भोलेनाथ के
भव बंधन सब कट जायेगा मोक्ष मार्ग तभी मिल जायेगा
महिमा है शिव ओमकार की महिमा शिव के सोमवार की
सोमवार दिन सोमनाथ का वरदानी शिव भोलेनाथ का
जय अभियंकर जय शिव शंकर दया करो सुखदेव के ऊपर
हाथ रखो अविनाश के सर पर आये नाथ तुम्हारे दर पर
हाथ जोड़ विनती करू काटो विघ्न कलेश आन बसों ह्रदय मेरे गौरा पति गणेश
लेखक :- सुखदेव निषाद
अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।