Current Date: 22 Dec, 2024

शीश के दानी अमर कहानी

- Rajesh Prince


बात महाभारत काल की है अज्ञात वास के समय महाबली भीम ने हिडिम्बा नामक राक्षशी से विवाह रचाया कुछ समय पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम घटोतकच  रखा जब घटोतकच बड़ा हुआ तो उसका विवाह कान कन्ठ कठाह से हुआ एक दिन घटोतकच की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जन्म से ही इस बालक के शरीर पर बबर शेर की तरह बाल होने से उनका नाम बर्बरीक रखा गया बर्बरीक जी की घोर तपस्या से प्रसन हो कर समस्त  प्रकट हुई थी बर्बरीक जी को अतुलनीय बल का वरदान देते हुए सभी देवियाँ अंतर्ध्यान हो गई अज्ञात वास का समय समाप्त होने पर पाण्डु पुत्र हस्तिनापुर आ गए मगर दुर्योधन ने उन्हें राज पाट वापस करना तो दूर पांच गाओं भी पाण्डु पुत्रो को देना गवारा नहीं समझा धर्म का अधर्म से टकराव होना निश्चित हुआ तथा महाविनाशकारी  युद्ध की रणभेदी बज उठी वही सागर तीर्थ से अपनी तपस्या पूर्ण कर बर्बरीक जी अपनी माता के चरणों में आ गए तथा महाभारत युद्ध का समाचार जान अपनी माता से युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की माता की आज्ञा पा कर बर्बरीक जी युद्ध मैदान की ओर चल पड़े ! ओर उधर युद्ध के महानायक भगवान श्री कृष्णा को अंतर्यामी थे वे बर्बरीक जी की बात जान चुके थे तथा यह भी जानते थे यदि बर्बरीक जी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ते हैं तो रणभूमि का नक्शा ही बदल जायेगा यह जान भगवान श्री कृष्णा ब्राह्मण का रूप धर कर बर्बरीक जी के आने वाले मार्ग पर एक पीपल के वृक्ष तले बैठ गए उधर से गुजर रहे बर्बरीक जी के दृष्टि जॉब पीपल वृक्ष के नीचे बैठे ब्राह्मण देव पर पड़ी तो उनका नीला घोडा जिसको रोक कर उसे नीचे उतरे तथा ब्राह्मण देव को प्रणाम किया ब्राह्मण वेश धारी भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक जी की परीक्षा लेते हुए कहा वीर युद्ध क्षेत्र की ओर जा रहे हो वे भी तरकस में रखे केवल तीन बाण के साथ इस पर बर्बरीक जी ने कहा की उनका एक बाण ही महाभारत के युद्ध में भाग ले रहे सेना को क्षण भर में परलोक पहुंचा पुनः तरकस में आ जायेगा यदि तीनो बाणों का प्रयोग किया तो तीनो लोको में हाहाकार मच जायेगा इस पर ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्णा ने बर्बरीक जी की परीक्षा लेते हुए कहा तुम्हे अपनी वीरता पर इतना ही मान है तो इस पीपल वृक्ष के नीचे मई बैठा हूँ इसके हर पत्ते को एक ही बाण में भेद के दिखाओ वीर बर्बरीक जी ने ब्राह्मण की इच्छा पूरी करने के लिए अपने तरकस से एक बाण निकाल अपने आराध्य का ध्यान कर बाण छोड़ दिया देखते देखते बाण ने क्षण भर में पीपल वृक्ष के सम्पूर्ण पत्तों को भेद दिया परन्तु पीपल का एक पत्ता ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्णा ने अपने पाऊँ के नीचे दवा लिया था इसीलिए पीपल के सभी पत्तों को भेद कर बाण भगवान श्री कृष्णा के पैर की परिक्रमा करने लगा! यह देख कर ब्राह्मण देव ने बर्बरीक जी से इसका कारण पूछा तब वीर बर्बरीक जे ने ब्राह्मण देव से कहा की पीपल का अभी भी कोई एक पत्ता इस बाण से अभेद बचा हुआ है जो आपके पाऊँ के नीचे दबा पड़ा है यह जब तक उसे भेद ना दे तब तक आपके पाऊँ की परिक्रमा करता रहेगा इतना सुनने पर ब्राह्मण देव ने अपना पाऊँ उस पत्ते से हटाया तो वह उस पत्ते को भेद कर पुनः बर्बरीक जी के तरकस में आ गया तब ब्राह्मण भेष धारी भगवान श्री कृष्णा ने छल रचते हुए बर्बरीक जी से कहा की तुम सच में क्षत्रिय हो लेकिन एक क्षत्रिय को वीर होने के साथ साथ दानी भी होना परम आवश्यक है धर्म पर अधर्म की जीत के लिए भगवान श्री कृष्णा ने छलिया बन कर उनका शीश दान में मांग लिया ब्राह्मण देव की बात सुन बर्बरीक जी अचंभित हो गए इस पर भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक जी को अपना दिव्य रूप दिखाया ! तथा कहा देखो बर्बरीक युद्ध से पहले रणभूमि की पूजा के लिए एक सम्पूर्ण क्षत्रिय वीर के शीश की बलि देना आवश्यक है जो की इस भू मंडल में अपनी वीरता में सबसे श्रेष्ठ हो मुझे इस भू मंडल में तुमसे बढ़कर कोई वीर नजर नहीं आया इसीलिए मैंने तुम्हारे शीश का दान माँगा है ! बर्बरीक जी ने कहा प्रभु मेरी इच्छा है की मै भी इस युद्ध को अंत तक देखु भगवान श्री कृष्णा ने अपने परम् भक्त बर्बरीक की इच्छा पूरी करते हुए ये कहा तथास्तू ! फागण शुक्ल एकादशी के रात्रि भर वीर बर्बरीक जी ने भजन संकीर्तन किया तथा फागण शुक्ली एकादशी के प्रातः बेला में स्नान पूजा अर्चना कर छलिया भगवान श्री कृष्णा को अपना शीश दान कर दिया !
    M:-    बर्बरीक शीश दान करे मंगलम 
कोरस :-     बर्बरीक शीश दान करे मंगलम
M:-    आप ने दिया उन्हें वरदान मंगलम
कोरस :-     आप ने दिया उन्हें वरदान मंगलम
M:-    श्याम मंगलम खाटू श्याम मंगलम
कोरस :-     श्याम मंगलम खाटू श्याम मंगलम
M:-    शीश के ओ दानी सुखधाम मंगलम
कोरस :-     शीश के ओ दानी सुखधाम मंगलम
M:-    शीश के दानी बर्बरीक जी से उनका शीश दान में लेकर भगवान श्री कृष्ण व देवियों ने उस युद्ध मैदान के पास ऊँचे पर्वत शिखर पर अमृत जड़ियों के सहारे स्थापित कर अंत तक युद्ध देखने का वरदान देकर देवियां अंतर्ध्यान हो गईं ! श्री कृष्णा जी ने पर्वत शिखर पर रखे बर्बरीक जी के शीश को वरदान देते हुए कहा हे अभिक मै तुम्हारी इस महान त्याग से प्रसन्न हो कर तुम्हे वरदान देता हूँ की कलयुग में तुम मेरे नाम श्याम से जाने व पूजे जाओगे तुम्हरे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा तुम सभी देवो से भी बढ़ चढ़कर संसार में पूजे जाओगे !
 

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