Current Date: 18 Nov, 2024

शीश का दानी

- आशीष श्रीवास्तव


खाटू के चप्पे चप्पे पे,
श्याम की है निगरानी,
इस नगरी का कण कण बोले,
भक्तों श्याम ज़ुबानी,
मेरा बाबा शीश का दानी,
मेरा बाबा शीश का दानी।।

तर्ज – फिर भी दिल है हिंदुस्तानी।


बाबा के प्रेमी उनको रिझाये,
रींगस से खाटू मिलने आएं,
कोई पेट पलनीया,
कोई चलकर आये,
कोई दौड़ श्याम को,
निशान चढ़ाये,
सब भक्तों के संग में चलता,
बर्बरीक कल्याणी,
इस नगरी का कण कण बोले,
भक्तों श्याम ज़ुबानी,
मेरा बाबा शीश का दानी,
मेरा बाबा शीश का दानी।।


श्याम कुंड का अमृत जल है,
डुबकी लगाने से मिलता फल है,
जो ना मानो तो,
आज़मा कर देखो,
मेरे श्याम शरण में,
तुम आकर देखो,
श्याम नज़र जो पड़ जाए तो,
दूर हटे परेशानी,
इस नगरी का कण कण बोले,
भक्तों श्याम ज़ुबानी,
मेरा बाबा शीश का दानी,
मेरा बाबा शीश का दानी।।


सिर को झुकाये दर पे आजा,
जग से छुपाता वो इनको बता जा,
बड़ा दिल ठोकर है,
इस जग की खाई,
मेरा श्याम करेगा,
तेरी सुनवाई,
‘गोलू’ कहता गर्व से,
ना है श्याम का कोई सानी,
इस नगरी का कण कण बोले,
भक्तों श्याम ज़ुबानी,
मेरा बाबा शीश का दानी,
मेरा बाबा शीश का दानी।।


खाटू के चप्पे चप्पे पे,
श्याम की है निगरानी,
इस नगरी का कण कण बोले,
भक्तों श्याम ज़ुबानी,
मेरा बाबा शीश का दानी,
मेरा बाबा शीश का दानी।।

 

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