Current Date: 18 Dec, 2024

Shardiya Navratri 2023 Day 8: नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा का शुभ समय, उपहार और मंत्र

- Bhajan Sangrah


मां दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है और नवरात्रि के आठवें दिन इनकी पूजा की जाती है। इनका वर्ण पूर्ण रूप से गौर है, इसलिए इन्हें महागौरी कहा जाता है। इनके गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से की गई है और इनकी आयु आठ वर्ष की मानी हुई है। इनके समस्त वस्त्र और आभूषण आदि भी श्वेत हैं। वृषभ पर सवार मां की चार भुजाएं हैं जिसमें ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर मुद्रा है और इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है। धन-धन्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति के लिए मां गौरी की उपासना की जानी चाहिए।

 

मां महागौरी की पूजन विधि

अष्टमी तिथि के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात कलश पूजन कर मां की विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन मां को सफेद पुष्प अर्पित करें, मां की वंदना मंत्र का उच्चारण करें। आज के दिन मां की हलुआ, पूरी, सब्जी, काले चने और नारियल का भोग लगाएं। माता रानी को चुनरी अर्पित करें। अगर आपके घर अष्टमी पूजी जाती है तो आप पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं ये शुभ फल देने वाला माना गया है।

 

पूजा से लाभ

मां महागौरी का ध्यान-स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वाधिक कल्याणकारी है। मनुष्य को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए, इनकी कृपा से आलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। ये भक्तों के कष्ट जल्दी ही दूर कर देती हैं एवं इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। ये मनुष्य की वृतियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। भक्तों के लिए यह देवी अन्नपूर्णा का स्वरूप हैं इसलिए अष्टमी के दिन कन्याओं के पूजन का विधान है। ये धन, वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी हैं।

 

ऐसे पड़ा इनका नाम महागौरी

अपने पार्वती रूप में इन्होने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार भी इन्होने भगवान शिव के वरण के लिए अत्यंत कठोर संकल्प लिया था।

 

जन्म कोटि लगि रैगर हमारी
बरउँ संभु न त रहउ कुंआरी

 

इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया। इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा जी के पवित्र जल से मलकर धोया तब बह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा और तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा।

 

स्तुति मंत्र

श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

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