कोरस :- शनिदेव जय शनिदेव जय शनिदेव आ आ आ आ आ आ
M:- ॐ शं शनिश्चराय नमः बोलिये श्री शनिदेव भगवान की
कोरस :- जय
M:- भक्तो आज पावन शनिवार का दिवस है वेद पुराणों के अनुसार शनिवार के दिवस भगवान शनि का व्रत उपवास रखने से उनका पूजन सुमिरन करने से उन्हें काला कपड़ा काला तिल काली उड़द व् सरसो का तेल भेट करने से जन्मो जन्मो के बुरे कर्मो का नाश हो जाता है और वो प्राणी शनिदेव की वक्र दृष्टि से सदैव बचा रहता है तथा जीवन पर्यन्त शनिदेव की कृपा प्राप्त करता है शनिदेव जो कर्मो के न्यायाधीश है दंड अधिकारी है अपना व्रत उपवास रखने वालो पर सदा हितकारी रहते है तो आइये सुनते है पावन श्री शनिदेव व्रत कथा एक बार फिर बोलिये भगवान श्री शनिदेव की
कोरस :- जय
M:- नवग्रहों पे है ये सर ताजा चरण झुकता अखिल समाजा शनिदेव जी भक्तो का
करते कल्याण जी
कोरस :- भक्तो का करते कल्याण जी
M:- गाथा शनि के व्रत की पावन शुद्धि पा जाता है तन मन दे दो ध्यान जी
जीवन में पाओगे सम्मान जी
कोरस :- जीवन में पाओगे सम्मान जी
M:- एक समय की बात है भक्तो सभी नो ग्रहो सूर्य शनि बृहस्पति शुक्र बुद्ध मंगल चंद्र राहु और केतु में यह विवाद छिड़ गया की उन सबमे सर्वश्रेष्ठ कौन है इस प्रश्न का उत्तर जानने हेतु वो ब्रम्हा विष्णु और शिवजी के पास गए परन्तु उन्हें अपने प्रश्नो का उत्तर नहीं मिला इसके पश्चात वो इंद्र के दरबार में पहुंचे जहाँ देव ऋषि नारद ने उन्हें बताया की पृथ्वी लोक पर एक अत्यंत न्यायप्रिय प्रजा वत्तस्ल राजा है जिसका नाम है विक्रमादित्य उसकी बुद्धिमता की चर्चा तीनो लोको में है आप सब उसके पास जाइये आपको आपके प्रश्नो का उत्तर अवश्य मिल जायेगा यह सुनकर नवग्रह पृथ्वीलोक पर विक्रमादित्य के पास आये और अपना मनवांछित प्रश्न पूछा राजा ने कहा पहले आप अपनी अपनी पसंद की धातु के आसान पर विराजमान होइये फिर मैं इस प्रश्न का उत्तर भी दे दूंगा
स्वर्ण रजत लोहा काँसा पीतल सीसा राँगा जस्ता अभरक
इन सबके आसान बनवाये नव गृह इन पर है बिठवाये
शनि के मन को लोहा भय लोहे पर आसान था जमाया सब हैरान जी
राजा ने किया एलान जी
कोरस:- राजा ने किया एलान जी
M:- नवग्रहों के ये सरताजा चरण झुकता अखिल समाज हो कल्याण जी
भक्तो को देते वरदान जी
कोरस :- भक्तो को देते वरदान जी
शनिदेव जय शनिदेव जय शनिदेव जय शनिदेव आ आ आ आ आ
M:- राजा बोले लीजिये निर्णय हो गया इन सब धातुओं में लोहा सबसे नीचे आता है और सोना सबसे ऊपर जो सोने के सिंघासन पर बैठा है वो गृह सर्वश्रेष्ठ है और जो लोहे के सिंघासन पर बैठा है वो सबसे नीचे शनिदेव इस अपमान को सह नहीं सके और मन ही मन बोले राजन मेरी साढ़े साती तुझ पर प्रारम्भ ही होने वाली है तब तुझे में अपनी शक्ति का भोग कराऊंगा जो ही साढ़े साती प्रारम्भ हुई शनिदेव के घोड़े के व्यापारी के रूप में विक्रमादित्य के पास आये और राजा को एक उड़ने वाला घोडा दिखाया राजा ने ज्यू ही घोड़े पर दौड़ लगाई घोडा पवन वेग से उड़ा और राजा को एक घनघोर वन में फेककर अंतर्ध्यान हो गया भटकते भटकते राजा नगर की सिमा पर आ पंहुचा इस नगर के सेठ को उस पर दया आ गयी वो उसे भोजन कराने अपने घर ले गया भोजन करने बैठा ही था की क्या देखता है की सामने खूटी पर टंगे सेठानी के नोळखें हार को खूटी निगल रही है सेठ सेठानी ने जब वहां अपना हार नहीं पाया तो उन्होंने राजा को चोर बताकर उसे कारावास में बंद करवा दिया और उसके हाथ पाँव तुड़वा दिए गए
चोरी का इल्जाम लगाया कारावास में बंद करवाया
हाथ और पैर उसके तुड़वाये नजर से बाहर थे फिकवाए
एक तेली ने उसे बचाया अपने घर पर लेकर आया वो इंसान जी
विक्रम गाये शनि नाम जी
कोरस :- विक्रम गाये शनि नाम जी
M:- नवग्रहों के ये सरताजा चरण झुकता अखिल समाजा शनि देव जी
भक्तो को करते है कल्याण जी
कोरस :- भक्तो को करते है कल्याण जी
M:- कल का राजा विक्रमादित्य आज बिना हाथ पेरो के अपनी जिव्हा से तेली के घर का कोल्हू हाँक रहे है अब वो समझ गए की ये सब शनिदेव की लीला है उसने जीवन में भारी भूल की जो शनिदेव को छोटा बता दिया शनिदेव को मनाने हेतु वो राजदीपक में शनि स्तुति गाने लगा उसकी मधुर वाणी नगर की राजकुमारी के कानो में पड़ी तो वो इतनी मंत्र मुग्ध हो गयी की उसने निर्णय कर लिया की वो उस सुन्दर वाणी वाले पुरुष से ही विवाह करेगी पता करवाया तो पता चला इसके तो हाथ पैर ही नहीं है परन्तु राज कुमारी थी की मानती ही नहीं थी अगले दिवस विवाह की तैयारी होने लगी और इधर रात को सपने में राजा विक्रमादित्य को दर्शन दिए और कहा है राजन अब बता कौन छोटा है और कौन बड़ा राजा ने शनिदेव से क्षमा याचना की और कहा है शनिदेव आप ही नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ है शनिदेव ने प्रसन्न होकर उसके हाथ पांव वापिस दे दिए और उसका खोया राज्य भी उसे वापिस लोटा दिया अगली सुबह जब सबने देखा की वो युवक तो उज्जैन नगरी का राजा विक्रमादित्य है तो सब हैरान हो गए विक्रमादित्य ने बताया यह सब शनिदेव की माया थी सबने शनिदेव की जय जयकार करीऔर धूम धाम से दोनों का विवाह हो गया
शनि ने माया अपनी हटाई राज्य पाठ सब दिया लौटाई
हाथ पैर भी वापिस दीन्हे क्षमा राजन को शनि जी कीन्हे
ब्याह तो राजा का करवाया सबने शनि नाम है ध्याया हुआ कल्याण जी
वापिस पाया समान जी
कोरस :- वापिस पाया समान जी
M:- नवग्रहों के ये सरताजा चरण झुकता अखिल समाजा शनि देव जी
भक्तो को करते है कल्याण जी
कोरस :- भक्तो को करते है कल्याण जी
M:- शनिदेव जय शनिदेव जय शनिदेव जय शनिदेव आ आ आ आ आ
M:- वहां के राजा ने बड़ी धूम धाम से ढेर सारे उपहार स्वर्ण चांदी हिरे जवाहरात और धन धान्य देकर अपनी पुत्री को राजा विक्रमादित्य के साथ विदा किया विक्रम अपने नगर में आ पहुंचे बड़ी धूम धाम से रानी का स्वागत हुआ राजा विक्रम अपनी रानी के साथ अब नित्य प्रति भगवान शनि देव के व्रत उपवास करने प्रारम्भ कर दिए उन्हें काले तिल तेल काली उड़द व् काले चने का भोग लगाते सायकाल पीपल की जड़ में दीप का दान देकर शनि व्रत कथा सुनते चालीसा आरती व् मंत्रो का पठन करते और पुरे नगर को काले चने से बने भोग का भंडारा करवाते ऐसे ही जीवन पर्यन्त उन्होंने शनिदेव की महिमा गायी और अंत में शनि चरणों में स्थान प्राप्त किया ऐसे ही जो भक्त भगवान शनिदेव का व्रत व् उपवास रखता है और पुरे विधि विधान से व्रत कथा सुनता है वो शनिदेव की वक्र दृष्टि से बचकर साढ़े साती के दौरान शनिदेव की अनुपम कृपा को प्राप्त करता है तो बोलिये भगवान शनिदेव महाराज की
कोरस :- जय
M:- है शनिदेवा जग उपकारी भक्तजनो पे ये हितकारी
लोहा तिल और तेल चढ़ाना चंदन का इन्हे तिलक लगा लो
भव में गोते ना खाओगे भव सागर से तर जाओगे हो कल्याण जी
शनिदेव किरपा के निधान जी
कोरस :- शनिदेव किरपा के निधान जी
M:- नवग्रहों के ये सरताजा चरण झुकता अखिल समाजा शनि देव जी
भक्तो को करते है कल्याण जी
कोरस :- भक्तो को करते है कल्याण जी
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