श्लोक
प्रथम मनाऊँ श्री गुरु,
और वंदन कर श्री हरिदास,
विपुल प्रेम निज नेम गही,
कही सुजस बिहारीणी दास,
गुरु सेवत गोविंद मिल्यौ,,
और गुरु गोविंद ही आप,
श्री बिहारी दास श्री हरिदास को,
जीवत है मुख चार।
सांवरे को दिल में बसाकर तो देखो,
दुनिया से मन को हटा करके देखो।
बड़ा ही दयालु है बांके बिहारी,
इक बार वृन्दावन आकर तो देखो।।
बांके बिहारी भक्तो के दिलदार,
सदा लुटाते है कृपा के भंडार।
मीरा ने जैसे गिरधर को पाया,
प्याला ज़हर का अमृत बनाया,
तुम अपनी हस्ती मिटा कर तो देखो,
इक बार वृन्दावन आ कर तो देखो।।
बांके बिहारी भक्तो के दिलदार,
सदा लुटाते है कृपा के भंडार।
श्याम बिना मेरा कोई ना अपना,
ये दुनिया है इक झुटा सपना,
नज़रों से पर्दा हटा कर तो देखो,
इक बार वृन्दावन आ कर तो देखो।।
बांके बिहारी भक्तो के दिलदार,
सदा लुटाते है कृपा के भंडार।
तेरी पल में झोली वो भर देगा,
दुःख दर्द जिंदगी के वो हर लेगा,
चौखट पे दामन फैला कर तो देखो,
इक बार वृन्दावन आ कर तो देखो।।
बांके बिहारी भक्तो के दिलदार,
सदा लुटाते है कृपा के भंडार।
चित्र-विचित्र का तो बस यही कहना,
गुरु चरणो से कभी दूर नहीं रहना,
जिंदगी ये बंदगी में मिटा कर तो देखो,
इक बार वृन्दावन आ कर तो देखो।।
बांके बिहारी भक्तो के दिलदार,
सदा लुटाते है कृपा के भंडार।
सांवरे को दिल में बसाकर तो देखो,
दुनिया से मन को हटा करके देखो।
बड़ा ही दयालु है बांके बिहारी,
इक बार वृन्दावन आकर तो देखो।।
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