Current Date: 19 Nov, 2024

सांसो का क्या भरोसा

- Sanjay Gulati


साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 
जीवन की है जो ज्योति बुझ जाए चलते चलते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 

जीवन है चार दिन का दो दिन की जिंदगानी 
जब आएगा बुढ़ापा थक जाए चलते चलते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 

समझाना तो इशारा ना समझा खेल इसका 
क्यों तेरे बात बिगड़े हर बार बनते बनते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 

तेरे साथ जाये बंदे तेरे कर्मो की कमाई 
गए जग से बादशाह भी यु ही हाथ मलते मलते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 

अब तक किया ना पगले अब तो हरी सिमरले 
कह रही है जिंदगी की ये शाम ढलते ढलते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 

साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते 
जीवन की है जो ज्योति बुझ जाए जलते जलते 
साँसों का क्या भरोसा रुक जाए चलते चलते
 

अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।