ले चलो रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
ले चलो रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
राजा धिराजा की,
पालकी को ले चलो,
जय साईं जय साईं,
कहते बढे चलो,
ले चलो रे पालकी।।
सिर पे रूमाल गले पटके सजा के,
कांधे पे बाबा की पालकी उठा के,
ये दुनिया देखेगी शोभा कमाल की।
ले चलों रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
राजा धिराजा की,
पालकी को ले चलो,
जय साईं जय साईं,
कहते बढे चलो,
ले चलो रे पालकी।।
पीरों के पीर वली दाता विधाता,
श्रद्धा से कान्धे पे जो भी उठाता,
बाबा ने हर सांसें,
उसकी खुशहाल की।
ले चलों रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
राजा धिराजा की,
पालकी को ले चलो,
जय साईं जय साईं,
कहते बढे चलो,
ले चलो रे पालकी।।
ऊंची नीची राहों पे चलना सम्भाल के,
राग-द्वेष-बैर-भाव दिल से निकाल के,
बाबा सिखा देंगे,
बातें सुर-ताल की।
ले चलों रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
राजा धिराजा की,
पालकी को ले चलो,
जय साईं जय साईं,
कहते बढे चलो,
ले चलो रे पालकी।।
गर हो विश्वाश खुद बुला लेंगे बाबा,
तू लड़खड़ाया सम्भालेंगे बाबा,
भूलना ना बात,
इस बाबा के “लाल” की।
ले चलों रे पालकी,
शिरडी के लाल की,
राजा धिराजा की,
पालकी को ले चलो,
जय साईं जय साईं,
कहते बढे चलो,
ले चलो रे पालकी।।
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