रूसो मम प्रियांबिका, मजवरी पिताही रूसो। रूसो मम प्रियांगना, प्रियसुतात्मजाही रूसो।।
रूसो भगिनी बंधुही, श्वशुर सासुबाई रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो ।।१।।
पुसो न सुनबाई त्या, मज न भ्रातृजाया पुसो। पुसो न प्रिय सोयरे, प्रिय सगे न ज्ञाती पुसो।।
पुसो सुहृद ना सखा, स्वजन नाप्तबंधू पुसो। परीन गुरू साई मा मजवरी,कधीहीं रूसो।।२।।
पुसो न अबला मुले, तरूण वृद्धही ना पुसो। पुसो न गुरूं धाकुटें, मजन थोर साने पुसो।।
पुसो नच भलेबुरे, सुजन साधुही ना पुसो। परी न गुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो।।३।।
रूसो चतुर तत्ववित्, विबुध प्राज्ञे ज्ञानी रूसो। रूसोहि विदुषी स्त्रिया, कुशल पंडिताही रूसो।।
रूसो महिपती यती, भजक तापसीही रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो।।४।।
रूसो कवि ऋषी मुनी, अनघ सिद्ध योगी रूसो। रूसो हि गृहदेवता, नि कुलग्रामदेवी रूसो॥
रूसो खल पिशाच्चही, मलिन डाकिनींही रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो।।५।।
रूसो मृगखग कृमी, अखिल जीवजंतु रूसो। रूसो विटप प्रस्तरा, अचल आपगाब्धी रूसो।
रूसो ख पवनाग्नि वार, अवनि पंचतत्वें रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो।।६।।
रूसो विमल किन्नरा, अमल यक्षिणीही रूसो। रूसो शशि खगादिही, गगनिं तारकाही रूसो।।
रूसो अमरराजही, अदये धर्मराजा रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो।।७।।
रूसो मन सरस्वती, चपलचित्त तेंही रूसो। रूसो वपु दिशाखिला, कठिण काल तोही रूसो।
रूसो सकल विश्वही, मयि तु ब्रह्मगोलं रूसो। न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो।।८।।
विमूढ म्हणूनी हसो, मज न मत्सराही डसो। पदाभिरूचि उल्हासो, जननकर्दमीं ना फसो।
न दुर्ग धृतिचा धसो, अशिवभाव मागें खसो। प्रपंचि मन हें रूसो, दृढ विरक्ति चित्तीं ठसो॥९॥
कुणाचिही घृणा नसो, न च स्पृहा कशाची असो। सदैव हृदयीं वसो, मनसि ध्यानिं साई वसो।
पदी प्रणय वोरसो, निखिल दृश्य बाबा दिसो। न दत्तगुरू साई मा, उपरि याचनेला रूसो॥१०॥
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