श्री गुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
जब ते राम ब्याही घर आये, नित नव मंगल मोद बधाये |
भुवन चारी दस बूधर भारी, सूकृत मेघ वर्षहिं सूखवारी ||
रिद्धी सिद्धी संपति नदी सूहाई , उमगि अव्धि अम्बूधि तहं आई|
मणिगुर पूर नर नारी सुजाती, शूचि अमोल सुंदर सब भाँति ||
कही न जाई कछू इति प्रभूति , जनू इतनी विरंची करतुती |
सब विधि सब पूरलोग सुखारी, रामचन्द्र मुखचंद्र निहारी ||
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली |
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥
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