पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था। खाटू श्याम जी का मधुर भजन: जबसे तुमसे नजरे मिलाने लगे
वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है।
इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों? खाटू श्याम जी का मधुर भजन: दीप जलाये एक बाबा के नाम
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया। खाटू श्याम जी का मधुर भजन: साँवरे थाणे ही निभानो है
राजा को देखकर मुनियों ने कहा - हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो।
राजा ने पूछा - महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए।
मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए।
मुनि बोले - हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा। खाटू श्याम जी का मधुर भजन: हारे के सहारे हमें तेरा ही सहारा है
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
श्रीकृष्ण बोले: हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।"
Paush Putrada Ekadashi fasting story
A king named Suketuman used to rule in a city named Bhadravati. He had no son. His wife's name was Shaivya. She was always worried about being childless. Even the ancestors of the king used to take the pind while crying and used to think that after this who will give us the pind. The king was not satisfied with any of these brothers, relatives, wealth, elephants, horses, kingdom and ministers.
He always used to think that after my death, who will do Pind Daan for me. How can I repay the debt of ancestors and gods without a son. There is always darkness in the house where there is no son. That's why efforts should be made to have a son. Sweet hymn of Khatu Shyam ji: Jabse Tumse Nazaren Milane Lage
Blessed is the man who has seen the face of the son. He gets fame in this world and peace in the hereafter, that means both his worlds improve. Sons, wealth etc. are obtained in this birth only by the deeds of the previous birth. The king used to worry like this day and night.
At one time the king decided to sacrifice his body, but considering suicide as a great sin, he did not do so. One day thinking like this the king mounted his horse and went to the forest and started watching the birds and trees. He saw that deer, tiger, boar, lion, monkey, snake etc. are all roaming in the forest. The elephant is roaming among its children and the elephants. Sweet hymn of Khatu Shyam ji: Deep Jalaye Ek Baba Ke Naam
Somewhere in this forest jackals are speaking in their hoarse voice, somewhere owls are making sound. Seeing the scenes of the forest, the king started thinking. Half a day passed like this. He started thinking that I performed many yagyas, satisfied the brahmins with delicious food, still I got sorrow, why?
The king became very sad due to thirst and started roaming here and there in search of water. At a short distance the king saw a lake. Lotuses were blooming in that lake and storks, swans, crocodiles etc. were roaming around. Hermitages of sages were built around that lake. At the same time the king's right limbs started fluttering. The king got down from his horse thinking it was auspicious omen and sat down after paying obeisance to the sages.
Seeing the king, the sages said - O king! We are very pleased with you. Say what you want.
The king asked - Maharaj, who are you, and why have you come here. Please tell.
Muni started saying that O Rajan! Today is Putrada Ekadashi, the one who gives children, we are Vishwadev and have come to bathe in this lake. Sweet hymn of Khatu Shyam ji: Sanware Thane Hi Nibhano Hai
Hearing this, the king started saying that Maharaj, I also do not have any child, if you are happy with me, then give me the boon of a son.
Muni said - Hey Rajan! Today is Putrada Ekadashi. You must observe this fast, by the grace of God, you will surely have a son in your house.
After listening to the sage's words, the king fasted on Ekadashi on the same day and celebrated it on Dwadashi. After this he returned to the palace after saluting the sages. After some time the queen conceived and after nine months she had a son. That prince became extremely brave, successful and a protector of the people. Sweet hymn of Khatu Shyam ji: Hare Ke Sahare Hame Tera Hi Sahara Hai
Shri Krishna said: Hey Rajan! To get a son one should fast on Putrada Ekadashi. One who reads or listens to this greatness attains heaven in the end.
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