Current Date: 18 Nov, 2024

पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा

- शालिनी सिंह


भक्तजनों आज आपको पाप मोचिनी एकादशी की व्रत कथा और व्रत महिमा बतलाने जा रही हूँ 
प्राचीन समय की बात है  चित्ररथ नामक एक रमणिक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे। 
एक बार मेधावी नामक ऋषि भी वहाँ पर तपस्या कर रहे थे। वे ऋषि शिव उपासक थे । एक बार रतिदेव कामदेव ने मुनि का तप भंग करने के लिए उनके पास मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। युवावस्था वाले मुनि रतीदेव की चाल को नहीं समझ पाए और  अप्सरा के हाव भाव, नृत्य, गीत तथा कटाक्षों पर काम मोहित हो गए। रति-क्रीडा करते हुए 57 वर्ष व्यतीत हो गए। 
एक दिन मंजुघोषा ने देवलोक जाने की आज्ञा माँगी। उसके द्वारा आज्ञा माँगने पर मुनि को भान आया और उन्हें आत्मज्ञान हुआ कि मुझे रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण अप्सरा मंजुघोषा ही हैं। क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया। 
श्राप सुनकर मंजुघोषा ने काँपते हुए ऋषि से मुक्ति का उपाय पूछा। तब मुनिश्री ने पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने को कहा। और अप्सरा को मुक्ति का उपाय बताकर पिता च्यवन के आश्रम में चले गए। पुत्र के मुख से श्राप देने की बात सुनकर च्यवन ऋषि ने पुत्र की घोर निन्दा की तथा उन्हें पापमोचनी चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने की आज्ञा दी। व्रत के प्रभाव से मंजुघोष अप्सरा पिशाचनी देह से मुक्त होकर देवलोक चली गई। 
कहते है  जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करता है , उसे  सारों पापों से निश्चित रूप से मुक्ति मिलती  है। और जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है उसे सारे संकटों से मुक्ति मिल जाती है।

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