Current Date: 18 Dec, 2024

हैप्पी ओणम 2023: ओणम क्यों मनाते हैं? (Happy Onam 2023)

- Bhajan Sangrah


ओणम से जुड़ी तीन खास बातें: पाताल लोक से कैसे लौटे राजा महाबली?

ओणम वैसे तो केरल का महत्वपूर्ण त्योहार है लेकिन उसकी धूम समूचे दक्षिण भारत में रहती है। यह त्योहार हिन्दी कैलेंडर के अनुसार भाद्र माह की शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। जबकि मलयालम कैलेंडर के अनुसार चिंगम माह में यह त्योहार मनाया जाता हैजो कि प्रथम माह है। खासकर यह त्योहार हस्त नक्षत्र से शुरू होकर श्रवण नक्षत्र तक चलता है। आओ इस त्योहार की 3 खास बातें जानते हैं।

 1.क्यों मनाते हैं यह त्योहार?

पहली मान्यता : यह त्योहार किसी देवी-देवता के सम्मान में नहीं बल्की एक दानवीर असुर के सम्मान में मनाया जाता है जिसने विष्णु के अवतार भगवान वामन को तीन पग भूमि दान में दे दी थी और फिर श्री वामन ने उन्हें अमरता का वरदान देकर पाताल लोक का राजा बना दिया था। ऐसी मान्यता है कि अजर-अमर राजा बलि ओणम के दिन अपनी प्रजा को देखने आते हैं। राजा बलि की राजधानी महाबलीपुरम थी। लोग इस त्योहार को फसल और उपज के लिए भी मनाते हैं।

 दूसरी मान्यता : मान्यता अनुसार परशुरामजी ने हैययवंशी क्षत्रियों से धरती को जीतकर दान कर दी थी। जब उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं बची तो वे सह्याद्री पर्वत की गुफा में बैठकर वरुणदेव की तपस्या करने लगे। वरुण देवता ने परशुरामजी को दर्शन दिए और कहा कि तुम अपना फरसा समुद्र में फेंको। जहां तक तुम्हारा फरसा समुद्र में जाकर गिरेगा, वहीं तक समुद्र का जल सूखकर पृथ्वी बन जाएगी। वह सब पृथ्वी तुम्हारी ही होगी। परशुरामजी के ऐसा करते पर समुद्र का जल सूख गया और जो भूमि उनको समुद्र में मिली, उसी को वर्तमान को केरल कहते हैं। परशुरामजी ने सर्वप्रथज्ञ इस भूमि पर विष्णु भगवान का मंदिर बनाया। कहते हैं कि वही मंदिर आज भी 'तिरूक्ककर अप्पण' के नाम से प्रसिद्ध है। जिस दिन परशुरामजी ने मंदिर में मूर्ति स्थापित की थी, उस दिन को 'ओणम' का त्योहार मनाया जाता है।

2.कैसे मनाते हैं इस त्योहार को?

जिस तरह दशहरे में दस दिन पहले रामलीलाओं का आयोजन होता है या दीपावली के पहले घर की रंगाई-पुताई के साथ फूलों से सजावट होती रही है। उसी तरह ओणम से दस दिन पहले घरों को फूलों से सजाने का कार्य चलता रहता है। घर को अच्छे से सजाकर बाहर रंगोली बनाते हैं।

 खासकर घर में कमरे को साफ करके एक फूल-गृह बनाया जाता है जिसमें गोलाकार रुप में फूल सजाए जाते हैं। प्रतिदिन आठ दिन तक सजावट का यह कार्यक्रम चलता है। इस बीच राजा बलि की मिट्टी की बनी त्रिकोणात्मक मूर्ति पर अलग-अलग फूलों से चित्र बनाते हैं। प्रथम दिन फूलों से जितने गोलाकार वृत बनाई जाती हैं दसवें दिन तक उसके दसवें गुने तक गोलाकार में फूलों के वृत रचे जाते हैं।

 नौवें दिन हर घर में भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा होती है तथा परिवार की महिलाएं इसके इर्द-गिर्द नाचती हुई तालियां बजाती हैं। वामन अवतार के गीत गाते हैं। इस दौरान सर्प नौका दौड़ के साथ कथकली नृत्य और गाना भी होता है। रात को गणेशजी और श्रावण देवता की मूर्ति की पूजा होती है। मूर्तियों के सामने मंगलदीप जलाए जाते हैं। पूजा-अर्चना के बाद मूर्ति विसर्जन किया जाता है। 

3.कौन से पकवान बनते हैं इस त्योहार पर?

इस दौरान पापड़ और केले के चिप्स बनाए जाते हैं। इसके अलावा 'पचड़ी–पचड़ी काल्लम, ओल्लम, दाव, घी, सांभर' भी बनाया जाता है। दूध, नारियल मिलाकर खास तरह की खीर बनाते हैं। कहते हैं कि केरल में अठारह प्रकार के दुग्ध पकवान बनते हैं। इनमें कई प्रकार की दालें जैसे मूंग व चना के आटे का प्रयोग भी विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। भोजन को कदली के पत्तों में परोसा जाता है।

ओणम के 10 दिन:

1.पहला दिन अथं होता है। इस दिन राजा बलि या महाबली पाताल से केरल जाने की तैयारी करते हैं।

2.दूसरा दिन चिथिरा होता है। इस दिन फूलों का कालीन जिसे पूक्क्लम कहते हैं। बनाना प्रारंभ करते हैं।

3.तीसरा दिन चोधी होता है। इस दिन पूक्क्लम में 4 या 5 तरह के फूलों से अलगी लेयर बनाते हैं।

4.चौथा विशाकम होता है। इस दिन हर तरह की प्रतियोगिताएं प्रारंभ हो जाती है।

5.पांचवां अनिज्हम होता है। इस दिन नौका रेस की तैयारियां होती हैं।

6.छठा थिक्रेता होता है। इस दिन से छुट्टियां प्रारंभ हो जाती हैं।

7.सातवां मूलम होता है। मंदिरों में विशेष पूजाएं प्रारंभ हो जाती हैं।

8.आठवां पूरादम होता है। राजा महाबली और भगवान वामन की प्रतिमा घर में स्थापित की जाती है।

9.नौवां उठ्रोदम होता है। इस दिन महाबली केरल में प्रवेश करते हैं।

10.दसवां थिरुवोनम होता है। यह मुख्य त्योहार है। इस दिन उत्सव का माहौल होता है।

 

अगर आपको यह भजन अच्छा लगा हो तो कृपया इसे अन्य लोगो तक साझा करें।