F:- ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की
अँखियाँ जो छुप छुप रोई तुझसे छुपी न कोई
हरी तूने हर पीड़ा दुखियन की
कोरस:- ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की
अँखियाँ जो छुप छुप रोई तुझसे छुपी न कोई
हरी तूने हर पीड़ा दुखियन की
F:- ओ माँ
F:- पर्वत त्रिकूटपे चढके कन्या का रूप धरके तुमने बसाया वैष्णोधाम -2
सुनली तूने सदा श्रीधर की देके उसे सहारा,
करवाके फिर भंडारा भरी ,झोली तूने एक निर्धन की
कोरस:- ओ मां
F:- भैरव ने तुझसे माँगा ,मांस मदिरा प्याला अहंकार तूने ही तोडा -2
भैरो घाटी गिरा सर कट के मांगी क्षमा जो उसने
करके दया फिर तुमने लाज रखली उसके असुवन की
कोरस:- ओ माँ तू तो जाने व्यथा मन की
अँखियाँ जो छुप छुप रोई तुझसे छुपी न कोई
हरी तूने हर पीड़ा दुखियन की ओ माँ
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