Current Date: 18 Nov, 2024

नर्मदा अमृतवाणी

- Tara Devi


नर्मदा अमृतवाणी

F:- देवि पूजित, नर्मदा
महिमा बड़ी अपार
चालीसा वर्णन करत
कवि अरु भक्त उदार
इनकी सेवा से सदा
मिटते पाप महान
तट पर कर जप दान नर
पाते हैं नित ज्ञान
आइए सुनते हैं श्री नर्मदा चालीसा

 जय-जय-जय नर्मदा भवानी
तुम्हरी महिमा सब जग जानी
कोरस:- अमरकण्ठ  से निकली माता
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता
F:- कन्या रूप सकल गुण खानी
जब प्रकटीं नर्मदा भवानी
कोरस:-सप्तमी सुर्य मकर रविवारा
अश्वनि माघ मास अवतारा

F:- वाहन मकर आपको साजैं
कमल पुष्प पर आप विराजैं
कोरस:- ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं
तब ही मनवांछित फल पावैं
F:- दर्शन करत पाप कटि जाते
कोटि भक्त गण नित्य नहाते
कोरस:- जो नर तुमको नित ही ध्यावै
वह नर रुद्र लोक को जावैं
F:- मगरमच्छा तुम में सुख पावैं
अंतिम समय परमपद पावैं
कोरस:- मस्तक मुकुट सदा ही साजैं
पांव पैंजनी नित ही राजैं

F:- कल-कल ध्वनि करती हो माता
पाप ताप हरती हो माता
कोरस:- पूरब से पश्चिम की ओरा
बहतीं माता नाचत मोरा
F:- शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं
सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं
कोरस:- शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं
सकल देव गण तुमको ध्यावैं
F:- कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे
ये सब कहलाते दु:ख हारे
कोरस:- मनोकमना पूरण करती
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं

F:- कनखल में गंगा की महिमा
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा
कोरस:- पर नर्मदा ग्राम जंगल में
नित रहती माता मंगल में
F:- एक बार कर के स्नाना 
तरत पिढ़ी है नर नारा
कोरस:- मेकल कन्या तुम ही रेवा
तुम्हरी भजन करें नित देवा
F:- जटा शंकरी नाम तुम्हारा
तुमने कोटि जनों को है तारा
कोरस:- समोद्भवा नर्मदा तुम हो
पाप मोचनी रेवा तुम हो

F:- तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई
करत न बनती मातु बड़ाई
कोरस:- जल प्रताप तुममें अति माता
जो रमणीय तथा सुख दाता
F:- चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी
महिमा अति अपार है तुम्हारी
कोरस:- तुम में पड़ी अस्थि भी भारी
छुवत पाषाण होत वर वारि

F:- यमुना मे जो मनुज नहाता
सात दिनों में वह फल पाता
कोरस:- सरस्वती तीन दीनों में देती
गंगा तुरत बाद हीं देती
F:- पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के
कोरस:- तुम्हरी महिमा है अति भारी
जिसको गाते हैं नर-नारी
F:- जो नर तुम में नित्य नहाता
रुद्र लोक मे पूजा जाता
कोरस:- जड़ी बूटियां तट पर राजें
मोहक दृश्य सदा हीं साजें

F:- वायु सुगंधित चलती तीरा
जो हरती नर तन की पीरा
कोरस:- घाट-घाट की महिमा भारी
कवि भी गा नहिं सकते सारी
F:- नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा
और सहारा नहीं मम दूजा
कोरस:- हो प्रसन्न ऊपर मम माता
तुम ही मातु मोक्ष की दाता
F:- जो मानव यह नित है पढ़ता
उसका मान सदा ही बढ़ता
कोरस:- जो शत बार इसे है गाता
वह विद्या धन दौलत पाता
F:- अगणित बार पढ़ै जो कोई
पूरण मनोकामना होई
कोरस:- सबके उर में बसत नर्मदा
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा 
सबके उर में बसत नर्मदा
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा 

F:- भक्ति भाव उर आनि के
जो करता है जाप
माता जी की कृपा से
दूर होत संताप
बोलिए नर्मदा मैया की 
कोरस:- जय
 

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