नाकोड़ा वाले सुन लेना एक सवाल दीवाने का,
अगर समझ में आ जाए, तो भक्तो को समझा देना ।
हमने अपना नियम निभाया, नाकोड़ा पैदल आने का,
दादा तेरा क्या फ़र्ज़ नहीं भक्तो के घर आने का ॥
जिसका घर छोटा सा हो, क्या उसके घर नहीं आते,
या फिर मुझसे प्रेम नहीं, क्यों मेरे घर नहीं आते ।
अब इतना बतलादो दादा कैसे तुझे मनाने का,
दादा तेरा क्या फ़र्ज़ नहीं भक्तो के घर आने का ॥
ऐसा रास्ता ढूंढ़ लिया रोज मिले तो चैन आए,
इक दिन मिलने तुम आयो, इक दिन मिलने हम आए ।
अब तो पक्का सोच लिया घर नाकोड़ा में बनाने का,
दादा तेरा क्या फ़र्ज़ नहीं भक्तो के घर आने का ॥
जिसका जिसका घर देखा वो क्या तेरे लगते हैं,
रिश्तेदारी में दादा वो क्या हमसे बढ़के हैं ।
क्या मेरा हक्क नहीं बनता है तुझको घर पे बुलाने का,
दादा तेरा क्या फ़र्ज़ नहीं भक्तो के घर आने का ॥
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