तर्ज- आदमी मुसाफिर है
नाकोड़ा के मंदिर में ,भक्त जो भी आता है
भेरूजी से रिश्ता वो , पल में जोड़ जाता है
धाम नाकोड़ा का जग में निराला
जाये जो भक्त वो , है किस्मतवाला
फिर वो धाम हर बार आता है
नाकोड़ा के मंदिर में ....
घर घर मे सेवा , पूजा तुम्हारी
तुमसे ही रोशन , दुनिया हमारी
इनकी शरण मे जो जाता है
नाकोड़ा के मंदिर में ....
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