Current Date: 18 Dec, 2024

मैं हूँ नहीं तेरे

- श्री चित्र विचित्र जी महराज।


मैं हूँ नहीं तेरे प्यार के काबिल,
हो तेरे प्यार के काबिल,
गुनाहगार हूँ,खतावार हूँ,
मैं हूँ नही तेरे प्यार के काबिल।।

अवगुन भरा शरीर मेरा में कैसे तुझे मिल पाऊँ,
चुनरिया ये दाग दगीलि में कैसे दाग छुड़ाऊँ,
ना भक्ति नहीं प्रेम रस हाँ कैसे तुझे मिल पाऊँ,
आन पड़ा अब द्वार तुम्हारे अब किस द्वारे जाऊँ,
उजड़ा हुआ गुलशन हूँ में,
ना बहार के काबिल,
मैं हूँ नही तेरे प्यार के काबिल।।

वो दृष्टि नही है पास मेरे जो रूप तुम्हारा निहार सकूँ,
वो तड़प नही है दिल अंदर जिस तड़प से तुझको पुकार सकूँ,
वो आग नही है आहो में जो तन मन सारा पजार सकूँ,
वो त्याग नही है अपने में जो सर्वस्व तुम पर वार सकूँ,
भुला हूँ में, वादाओ को,
ना करार के काबिल,
मैं हूँ नही तेरे प्यार के काबिल।।

तुम ही करो मुझे प्यार के काबिल और कौन है मेरा,
काम क्रोध मद लोभ मोह ने आकर डाला डेरा,
एक तेरे दीदार बिना इस दिल में हुआ अँधेरा,
मुझे भरोसा नही किसी का एक भरोसा तेरा,
हो तेरे प्यार में, पागल हुआ,
ना संसार के काबिल,
मैं हूँ नहीं तेरे प्यार के काबिल।।

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