Current Date: 21 Dec, 2024

उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर (Mahakaleshwar Temple of Ujjain)

- The Lekh


उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर

ujjain mahakal temple photography ban Know why the collector took this  decision stmp | उज्जैन महाकाल मंदिर में फोटो खिंचवाने पर बैन! जानिए मंदिर  समिति ने क्यों लिया ये फैसला | Hindi

महाकालेश्वर मंदिर  भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है। १२३५ ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

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इतिहास
इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् ११०७ से १७२८ ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में अवंति की लगभग ४५०० वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थी। लेकिन १६९० ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और २९ नवंबर १७२८ को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन १७३१ से १८०९ तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं - पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनिर्नर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।

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वर्णन
मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का क्षेत्रफल १०.७७ x १०.७७ वर्गमीटर और ऊंचाई २८.७१ मीटर है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। सन १९६८ के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके ११८ शिखरों पर १६ किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है। अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है।

Mahakaleshwar Temple of Ujjain

Mahakaleshwar Temple is one of the twelve Jyotirlingas of India. This is the main temple of Mahakaleshwar Bhagwan, located in Ujjain city of Madhya Pradesh state. Beautiful description of this temple is found in the works of great poets like Puranas, Mahabharata and Kalidas. Mahakaleshwar Mahadev has very virtuous importance because of being self-made, grand and south-facing. It is a belief that salvation is attained only by its darshan. Mahakavi Kalidas has praised this temple while discussing Ujjayini in Meghdoot. After the destruction of this ancient temple by Iltutmish in 1235 AD, the rulers who lived here paid special attention to the restoration and beautification of this temple, that is why the temple has attained its present form. This temple is decorated every year and before Simhastha.

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History

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History shows that Ujjain was ruled by the Yavanas from 1107 to 1728 AD. During his reign, the ancient religious traditions of the Hindus established in about 4500 years of Avanti had almost been destroyed. But in 1690 AD, the Marathas invaded the Malwa region and on 29 November 1728, the Maratha rulers established their supremacy in the Malwa region. After this, the lost glory of Ujjain returned and from 1731 to 1809, this city remained the capital of Malwa. Two important events took place here during the reign of the Marathas - first, the reconstruction of the Mahakaleshwar temple and the re-establishment of the Jyotirlinga and the establishment of the Simhastha festival bath, which was a great achievement. Later, Raja Bhoj expanded this temple.

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Description
The temple is situated inside a wall. There is a staircase leading to the sanctum sanctorum. Just above this there is another room in which Omkareshwar Shivling is installed. The area of the temple is 10.77 x 10.77 square meters and the height is 28.71 meters. There is a huge crowd in this temple on every Monday in the month of Mahashivratri and Shravan. There is a small water source adjacent to the temple called Kotitirtha. It is a belief that when Iltutmish got the temple demolished, he had thrown the Shivling in this very place. Later it was restored. Prior to the Simhastha Mahaparva in 1968, the main gate was expanded and furnished. Apart from this, another gate was also constructed for evacuation. But keeping in view the huge crowd of visitors, a huge assembly hall was constructed by the Birla Group of Industries before the Simhastha of 1980. An administrative committee has been formed for the arrangement of Mahakaleshwar temple, under whose direction the arrangements here are running smoothly. Recently, a layer of 16 kg gold has been offered on its 118 peaks. Now internet facility has also been started for donation in the temple.

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