लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर
लिंगराज मंदिर भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह भुवनेश्वर का मुख्य मन्दिर है तथा इस नगर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह भगवान त्रिभुवनेश्वर (शिव) को समर्पित है। इसे ययाति केशरी ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। यद्यपि इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 12वीं शताब्दी में बना, किंतु इसके कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं। इस मंदिर का वर्णन छठी शताब्दी के लेखों में भी आता है।
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मान्यता
धार्मिक कथा है कि 'लिट्टी' तथा 'वसा' नाम के दो भयंकर राक्षसों का वध देवी पार्वती ने यहीं पर किया था। संग्राम के बाद उन्हें प्यास लगी, तो शिवजी ने कूप बनाकर सभी पवित्र नदियों को योगदान के लिए बुलाया। यहीं पर बिन्दुसागर सरोवर है तथा उसके निकट ही लिंगराज का विशालकाय मन्दिर है। सैकड़ों वर्षों से भुवनेश्वर यहीं पूर्वोत्तर भारत में शैवसम्प्रदाय का मुख्य केन्द्र रहा है। कहते हैं कि मध्ययुग में यहाँ सात हजार से अधिक मन्दिर और पूजास्थल थे, जिनमें से अब लगभग पाँच सौ ही शेष बचे हैं।
रचना-सौन्दर्य
यह जगत प्रसिद्ध मन्दिर उत्तरी भारत के मन्दिरों में रचना सौंदर्य तथा शोभा और अलंकरण की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। लिंगराज का विशाल मन्दिर अपनी अनुपम स्थापत्यकला के लिए भी प्रसिद्ध है। मन्दिर में प्रत्येक शिला पर कारीगरी और मूर्तिकला का चमत्कार है। इस मन्दिर का शिखर भारतीय मन्दिरों के शिखरों के विकास क्रम में प्रारम्भिक अवस्था का शिखर माना जाता है। यह नीचे तो प्रायः सीधा तथा समकोण है किन्तु ऊपर पहुँचकर धीरे-धीरे वक्र होता चला गया है और शीर्ष पर प्रायः वर्तुल दिखाई देता है। इसका शीर्ष चालुक्य मन्दिरों के शिखरों पर बने छोटे गुम्बदों की भाँति नहीं है। मन्दिर की पार्श्व-भित्तियों पर अत्यधिक सुन्दर नक़्क़ाशी की हुई है। यहाँ तक कि मन्दिर के प्रत्येक पाषाण पर कोई न कोई अलंकरण उत्कीर्ण है। जगह-जगह मानवाकृतियों तथा पशु-पक्षियों से सम्बद्ध सुन्दर मूर्तिकारी भी प्रदर्शित है। सर्वांग रूप से देखने पर मन्दिर चारों ओर से स्थूल व लम्बी पुष्पमालाएँ या फूलों के मोटे गजरे पहने हुए जान पड़ता है। मन्दिर के शिखर की ऊँचाई 180 फुट है। गणेश, कार्तिकेय तथा गौरी के तीन छोटे मन्दिर भी मुख्य मन्दिर के विमान से संलग्न हैं। गौरीमन्दिर में पार्वती की काले पत्थर की बनी प्रतिमा है। मन्दिर के चतुर्दिक गज सिंहों की उकेरी हुई मूर्तियाँ दिखाई पड़ती हैं।
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पूजा पद्धति
गर्भग्रह के अलावा जगमोहन तथा भोगमण्डप में सुन्दर सिंहमूर्तियों के साथ देवी-देवताओं की कलात्मक प्रतिमाएँ हैं। यहाँ की पूजा पद्धति के अनुसार सर्वप्रथम बिन्दुसरोवर में स्नान किया जाता है, फिर क्षेत्रपति अनंत वासुदेव के दर्शन किए जाते हैं, जिनका निर्माणकाल नवीं से दसवीं सदी का रहा है।। गणेश पूजा के बाद गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की पूजा के बाद लिंगराज के दर्शन के लिए मुख्य स्थान में प्रवेश किया जाता है। जहाँ आठ फ़ीट मोटा तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू लिंग स्थित है।
अन्य प्रसिद्ध मन्दिर
यहाँ से पूरब की ओर ब्रह्मेश्वर, भास्करेश्वर समुदाय के मन्दिर हैं। यहीं पर राजा-रानी का सुप्रसिद्ध कलात्मक मन्दिर है, जिसका निर्माण सम्भवतः सातवीं सदी में हुआ था। किन्तु मुख्यमन्दिर में प्रतिमा ध्वस्त कर दी गई थी, अतः पूजा अर्चना नहीं होती है। इसके पास ही मन्दिरों का सिद्धारण्य क्षेत्र है, जिसमें मुक्तेश्वर, केदारेश्वर, सिद्धेश्वर तथा परशुरामेश्वर मन्दिर सबसे प्राचीन माना जाता है। ये मन्दिर कलिंग और द्रविड़ स्थापत्यकला के बेजोड़ नमूने हैं, जिन पर जगह-जगह पर बौद्धकला का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। भुवनेश्वर के प्राचीन मन्दिरों के समूह में बैतालमन्दिर का विशेष स्थान है। चामुण्डादेवी और महिषमर्दिनी देवीदुर्गा की प्राचीन प्रतिमाओं वाले इस मन्दिर में तंत्र-साधना करके आलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त की जाती हैं। इसके साथ ही सूर्य उपासना स्थल है, जहाँ सूर्य-रथ के साथ उषा, अरुण और संध्या की प्रतिमाएँ हैं। भुवनेश्वर में महाशिवरात्रि के दिन विशेष समारोह होता है। लिंगराज मन्दिर में सनातन विधि से चौबीस घंटे पूरे विधि-विधान के साथ महादेव शिवशंकर की पूजा-अर्चना की जाती है।
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निर्माण
इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा ययाति केशरी ने ११वीं शताब्दी में करवाया था। उसने तभी अपनी राजधानी को जाजपुर से भुवनेश्वर में स्थानांतरिक किया था। इस स्थान को ब्रह्म पुराण में एकाम्र क्षेत्र बताया गया है।
मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार का है तथा कलश की ऊँचाई 40 मीटर है। प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहाँ रथयात्रा आयोजित होती है। मंदिर के निकट ही स्थित बिंदुसागर सरोवर में भारत के प्रत्येक झरने तथा तालाब का जल संग्रहीत है और उसमें स्नान से पापमोचन होता है।
Lingaraj Temple Bhubaneswar
The Lingaraj Temple is located in Bhubaneswar, the capital of the Odisha state of India. This is the main temple of Bhubaneswar and one of the oldest temples in the city. It is dedicated to Lord Tribhuvaneshwar (Shiva). It was built by Yayati Keshari in the 11th century. Although the present form of this temple was built in the 12th century, some parts of it are more than 1400 years old. The description of this temple also comes in the writings of the sixth century.
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Recognition
There is a religious legend that Goddess Parvati killed two fierce demons named 'Litti' and 'Vasa' here. After the battle, he felt thirsty, so Shivji made a well and called all the holy rivers to contribute. This is where Bindusagar Sarovar is and near it is the huge temple of Lingaraj. For hundreds of years, Bhubaneswar has been the main center of Shaivism here in Northeast India. It is said that there were more than seven thousand temples and places of worship here in the medieval period, out of which only about five hundred are left now.
Design beauty
This world famous temple is considered to be the best among the temples of northern India in terms of design beauty and beauty and ornamentation. The huge temple of Lingaraj is also famous for its unique architecture. There is a miracle of workmanship and sculpture on each rock in the temple. The shikhara of this temple is considered to be the shikhara of the initial stage in the evolution of the shikharas of Indian temples. It is almost straight and right angle at the bottom, but after reaching the top, it gradually becomes curved and appears circular at the top. . Its top is not like the small domes built on the peaks of Chalukya temples. Very beautiful carvings have been done on the side walls of the temple. Even on each stone of the temple some or the other decoration is engraved. Beautiful sculptures related to human beings and animals and birds are also displayed at various places. On seeing the whole, the temple seems to be wearing thick and long garlands or thick garlands of flowers from all sides. The height of the spire of the temple is 180 feet. Three small shrines of Ganesha, Kartikeya and Gauri are also attached to the vimana of the main temple. There is a black stone idol of Parvati in Gaurimandir. One can see carved images of lions in the four yards of the temple.
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Worship system
Apart from the sanctum sanctorum, Jagmohan and Bhogmandap have artistic idols of gods and goddesses with beautiful lion sculptures. According to the method of worship here, first of all bath is taken in Bindusarovar, then Kshetrapati Anant Vasudev is visited, whose construction period is from 9th to 10th century. After worshiping Ganesha, Gopalani Devi, then after worshiping Nandi, the vehicle of Shiva, enters the main place for the darshan of Lingaraj. Where eight feet thick and about one feet high granite stone's swayambhu linga is situated.
Other Famous Temples
There are temples of Brahmeshwar, Bhaskareshwar community towards the east from here. Here is the well-known artistic temple of the king-queen, which was probably built in the seventh century. But the idol in the main temple was demolished, so worship is not done. Near it is the Siddharanya area of temples, in which Mukteshwar, Kedareshwar, Siddheshwar and Parshurameshwar temples are considered to be the oldest. These temples are unique examples of Kalinga and Dravidian architecture, on which the influence of Buddhism is also visible at many places. Baital temple has a special place in the group of ancient temples of Bhubaneswar. In this temple with ancient idols of Chamundadevi and Mahishmardini Devi Durga, supernatural achievements are achieved by practicing Tantra. Along with this there is Surya worship place, where there are idols of Usha, Arun and Sandhya along with Surya-chariot. There is a special ceremony in Bhubaneswar on the day of Mahashivratri. Mahadev Shivshankar is worshiped in the Lingaraj temple according to the Sanatan Vidhi for twenty-four hours with complete rituals.
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Construction
This temple was built by the Somvanshi king Yayati Keshari in the 11th century. He then shifted his capital from Jajpur to Bhubaneswar. This place has been described as Ekamra Kshetra in Brahma Purana.
The courtyard of the temple is 150 meters square and the height of the Kalash is 40 meters. Rath Yatra is organized here every year in the month of April. The water of every spring and pond of India is stored in Bindusagar Sarovar, located near the temple, and by bathing in it, sins are absolved.
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