Current Date: 21 Nov, 2024

भगवान कृष्ण के जन्म की कथा (Bhagwan Krishn Ke Janm Ki Katha)

- The Lekh


भगवान कृष्ण के जन्म की कथा

9 Names Of Lord Krishna For Baby Boy

भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है।

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'द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।

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एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था।

रास्ते में आकाशवाणी हुई- 'हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा।' यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ।

तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- 'मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है?'

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कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया।

वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। अब आठवां बच्चा होने वाला था। कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए। उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था।

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उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा। जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी।

जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए। दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े। तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं।

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तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंदजी के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो। इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है। फिर भी तुम चिंता न करो। जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी।'

उसी समय वसुदेव नवजात शिशु-रूप श्रीकृष्ण को सूप में रखकर कारागृह से निकल पड़े और अथाह यमुना को पार कर नंदजी के घर पहुंचे। वहां उन्होंने नवजात शिशु को यशोदा के साथ सुला दिया और कन्या को लेकर मथुरा आ गए। कारागृह के फाटक पूर्ववत बंद हो गए।

लगन तुमसे लगा बैठे

अब कंस को सूचना मिली कि वसुदेव-देवकी को बच्चा पैदा हुआ है।

उसने बंदीगृह में जाकर देवकी के हाथ से नवजात कन्या को छीनकर पृथ्वी पर पटक देना चाहा, परंतु वह कन्या आकाश में उड़ गई और वहां से कहा- 'अरे मूर्ख, मुझे मारने से क्या होगा? तुझे मारनेवाला तो वृंदावन में जा पहुंचा है। वह जल्द ही तुझे तेरे पापों का दंड देगा।' यह है कृष्ण जन्म की कथा

Legend of the birth of Lord Krishna

Lord Krishna was born from the womb of Vasudev's wife Devaki in the prison of Mathura in Rohini Nakshatra on the pitch dark midnight of Bhadrapada Krishna Ashtami Tithi. This date reminds us of that auspicious time and is celebrated with great pomp across the country.

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' In the Dwapar era, Bhojvanshi king Ugrasen used to rule in Mathura. His aggressor son Kansa removed him from the throne and himself became the king of Mathura. Kansa had a sister Devaki, who was married to a Yaduvanshi chieftain named Vasudev.

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Once upon a time, Kansa was going to take his sister Devaki to her in-laws house.

On the way there was a voice from the sky- 'O Kansa, the Devaki whom you are taking with great love, your death resides in her. The eighth child born from her womb will kill you.' Hearing this, Kansa was determined to kill Vasudev.

Then Devaki humbly said to him- 'I will bring the child born from my womb in front of you. What is the use of killing brother-in-law?'

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Kansa obeyed Devaki and returned to Mathura. He put Vasudev and Devaki in prison.

Vasudev-Devki had seven children one by one and all seven were killed by Kansa as soon as they were born. Now the eighth child was about to happen. Strict guards were kept on him in the prison. At the same time Nanda's wife Yashoda was also going to have a child.

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Seeing the miserable life of Vasudev-Devki, he devised a way to protect the eighth child. At the time when a son was born to Vasudev-Devki, at the same time a girl child was born from Yashoda's womb, who was nothing but 'Maya'.

In the cell where Devaki-Vasudev were imprisoned, there was a sudden light and the four-armed God appeared in front of them holding conch, chakra, mace and lotus. Both fell at the feet of God. Then God said to him- 'Now I again take the form of a newborn baby.

Sweet hymn of Bihari ji: Vrindavan Ke O Banke Bihari

You send me at this time to your friend Nandji's house in Vrindavan and bring the girl child born at his place and hand her over to Kansa. The environment is not favorable at this time. Still don't worry. While awake, the guards will fall asleep, the prison gates will automatically open and the overflowing Yamuna will give you the way to cross.'

At the same time, Vasudev came out of the prison by placing the newborn child-form Shri Krishna in the soup and crossed the bottomless Yamuna and reached Nandji's house. There he put the newborn baby to sleep with Yashoda and came to Mathura with the girl child. The prison gates were closed as before.

Lagan Tumse Laga Baithe

Now Kansa got information that a child has been born to Vasudev-Devki.

He went to the prison and wanted to snatch the newborn girl from Devaki's hand and throw her on the earth, but that girl flew into the sky and said from there - 'Oh fool, what will happen if I kill you? The person who killed you has reached Vrindavan. He will soon punish you for your sins.' This is the story of Krishna's birth.

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