Current Date: 21 Dec, 2024

लाल चुनर लहराई रे

- मुकेश बागड़ा जी।


लाल चुनर लहराई रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे,
हो ओ ओ लाल चुनर लहरायी रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे।।

तर्ज – पंख होते तो उड़ आती रे।


लाल चुनर से तेरा क्या नाता,
जग में कोई जान ना पाता,
जिसने भी माँ को चुनरी चढ़ाई,
जिसने भी माँ को चुनरी चढ़ाई,
पल में भवानी दौड़ी तू आई,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे,
हो ओ ओ लाल चुनर लहरायी रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे।।


तेरी चुनरिया जग से निराली,
इसमें छुपी है सबकी खुशहाली,
दुष्टों की ये काल बने माँ,
दुष्टों की ये काल बने माँ,
भक्तो की रखपाल बने माँ,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे,
हो ओ ओ लाल चुनर लहरायी रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे।।


देवों ने तुझे चुनड़ी ओढ़ाई,
वेद पुराणों ने महिमा है गाई,
‘हर्ष’ भगत माँ इतना ही चाहे,
‘हर्ष’ भगत माँ इतना ही चाहे,
तेरी चुनरिया यूँ ही लहराए,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे,
हो ओ ओ लाल चुनर लहरायी रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे।।


लाल चुनर लहराई रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे,
हो ओ ओ लाल चुनर लहरायी रे,
जननी हे अम्बे माँ,
तेरी बहुत बड़ी सकलाई रे।।

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