भारतीय संस्कृति में गणेश जी (Ganesh Ji) को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी, रक्षा कारक, सिद्धिदायक, समृद्धि, शक्ति और सम्मान प्रदायक माना गया है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरूप माना गया है.
जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं गणेश चतुर्थी मनाने की वजह क्या है?
गणपति की स्थापना के पीछे धार्मिक कारण (Religious reason behind the establishment of Ganpati)
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है. लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था. अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की.
गणपति जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था.
महर्षि व्यास ने की थी स्थापना (Maharishi Vyas founded)
अतः गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की. मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पार्थिव गणेश भी पड़ा. महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला. अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ.
इसलिए होता है गणेश उत्सव (That's why Ganesh festival happens)
वेदव्यास ने देखा कि, गणपति का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया. इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए. तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी.
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