Current Date: 17 Nov, 2024

कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी

- Chitra Vichitra Ji Maharaj


मैं रूप तेरे पर, आशिक हूँ,
यह दिल तो तेरा, हुआ दीवाना ।
ठोकर खाई, दुनियाँ में बहुत,
मुझे द्वार से, अब न ठुकराना ।।

हर तरह से तुम्हारा, हुआ मैं तो,
फिर क्यों तुमको, मैं बेगाना ।
मुझे दरस दिखा दो, नंद लाला,
नहीं तो दर तेरे पर, मर जाना ।।

कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी ।
तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी ।।

गोपाल सहारा तेरा है ,
हे नंद लाल सहारा तेरा है ,
मेरा और सहारा कोई नहीं
गोपाल सहारा तेरा है ,
हे नंद लाल सहारा तेरा है…

ओ दीनो के दिल में, जगह तुम न पाते,
तो किस दिल में होती, हिफाजत तुम्हारी ।
कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी ।।

ग़रीबों की दुनियाँ है, आबाद तुमसे ,
ग़रीबों से है, बादशाहत तुम्हारी ।
कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी ।।

न मुल्जिम ही होते, न तुम होते हाकिम,
न घर-घर में होती, इबादत तुम्हारी ।
कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी ।।

तुम्हारी ही उल्फ़त के, द्रिग ‘बिन्दु’ हैं यह ,
तुम्हें सौंपते है, अमानत तुम्हारी ।
कृपा की न होती जो, आदत तुम्हारी,
तो सूनी ही रहती, अदालत तुम्हारी ।।

Credit Details :

Song: Kripa Ki Na Hoti Jo Aadat Tumhari
Singer: Chitra Vichitra Ji Maharaj

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