छठ में कोसी पूजने की भी एक प्रथा है। यह काम उन भक्तों के द्वारा किया जाता है, जिनकी मन्नत या मनौती पूरी हो जाती है। बिहार में छठ पूजा के दौरान अमूमन हर घाट पर कोसी पूजने की तस्वीर दिख जाएगी। इसे लेकर पहले से ही पूरा परिवार तैयारी करता है। इसकी सामग्री भी अलग होती है। शुरुआत पहले अर्घ्य के बाद होती है और समाप्ति दूसरा अर्घ्य देने के साथ होती है।
ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता है और वह पूरी होती है तो उसे कोसी भरना पड़ता है। जोड़े में कोसी भरना शुभ माना जाता है। सूर्यषष्ठी की शाम में छठी मइया को अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन, छत या फिर नदी के किनारे पर कोसी की पूजा की जाती है। इसके लिए कम से कम चार या सात गन्ने का मंडप बनाया जाता है। लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ, फल, अर्कपात, केराव रखकर गन्ने के मंडप के ऊपर बांधा जाता है। उसके अंदर मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर कलश रख पूजा की जाती है।
क्या होती है कोसी भराई की विधि?
आपको बता दें कि संध्या सूर्य को अर्घ्य देकर लोग अपने-अपने घर में या छत पर कोसी भरने की परंपरा निभाते हैं। इसके लिए सबसे पहले मिट्टी के हाथी को सिंदूर लगाया जाता है। कुछ लोग 12 दीपक जलाते हैं या फिर 24 दीपक भी जलाते हैं। फिर कलश में मौसमी फल और ठेकुआ, सुथनी और अदरक आदि के साथ सारी सामग्री रखी जाती है।
इसके बाद कोसी पर दीपक जलाया जाता है। इसके बाद कोसी में दीपक जलाया जाता है। इसके बाद कोसी के चारों तरफ सूर्य को अर्घ्य देने वाली सामग्री से भरी सूप, डलिया और मिट्टी के ढक्कन में तांबे के पात्र को रखकर फिर दीपक जलाते हैं। आपको बता दें कि इसके बाद हवन की प्रक्रिया भी की जाती है।
इसके बाद छठी मइया की पूजा की जाती है। इसके बाद इसी विधि के साथ अगले दिन की सुबह को कोसी भरी जाती है जो घाट पर होती है। जब यह विधि की जाती है तो महिलाएं लोक गीत भी गाती हैं और अंत में मनोकामना पूर्ण होने के लिए छठी मइया को और सूर्य देव को मन से आभार व्यक्त करती हैं।
आपको बता दें कि कोसी भरने की विधि जो सभी परिवार के लोग करते हैं उनके परिवार के सदस्य रतजगा यानी रात भर जगते हैं और महिलाएं छठी मइया के गीत भी गाती हैं।
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