कोणार्क सूर्य मंदिर
वैदिक काल से ही सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जा रही है। वहीं कुछ बड़े राजाओं ने भी सूर्यदेव की आराधना की और कष्ट दूर होने एवं मनोकामनाएं पूर्ण होने पर सूर्यदेव के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रदर्शित करने के लिए कई सूर्य मंदिरों का निर्माण भी करवाया। वहीं उन्हीं में से एक है कोणार्क का सूर्य मंदिर।
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जो कि अपनी भव्यता और अद्भुत बनावट के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है और देश के सबसे प्राचीनतम ऐतिहासिक धरोहरों में से एक हैं,
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास
सूर्य भगवान को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी अनूठी कलाकृति औऱ भव्यता की वजह से यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल किया गया है।
इतिहासकारों के मुताबिक अफगान शासक मोहम्मद गौरी के शासनकाल में 13वीं शताब्दी में जब मुस्लिम शासकों ने भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य एवं बंगाल के प्रांतों समेत कई राज्यों में जीत हासिल की थी, तब उस उमय तक कोई भी शासक इन ताकतवर मुस्लिम शासकों से मुकाबला करने के लिए आगे नहीं आया, तब हिन्दू शासन नष्ट होने की कगार पर पहुंच गया और ऐसी उम्मीद की जाने लगी कि उड़ीसा में भी हिन्दू सम्राज्य खत्म हो जाएगा।
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वहीं इस स्थिति को भापते हुए गंगा राजवंश के शासक नरसिम्हादेव ने मुस्लिम शासकों से लड़ने का साहस भरा और उन्हें सबक सिखाने के लिए अपनी चतुर नीति से मुस्लिम शासकों के खिलाफ आक्रमण कर दिया।
वहीं उस दौरान दिल्ली के तल्ख पर सुल्तान इल्तुतमिश बैठा हुआ था, जिसकी मौत के बाद नसीरुद्दीन मोहम्मद को उत्तराधिकारी बनाया गया था और तुगान खान को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद 1243 ईसवी में नरसिम्हा देव प्रथम और तुगान खान के बीच काफी बड़ी लड़ाई हुई।
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इस लड़ाई में नरसिम्हा देव ने मुस्लिम सेना को बुरी तरह खदेड़ कर जीत हासिल की। आपको बता दें कि नरसिम्हा देव सूर्य देव के बहुत बड़े उपासक थे, इसलिए उन्होंने अपनी जीत की खुशी में सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बनाने का फैसला लिया।
इस विश्व प्रसिद्ध कोर्णाक सूर्य मंदिर का आकार भगवान एक भव्य और विशाल रथ की तरह है, जिसमें 24 रथ के चक्के और 6 घोड़े नेतृत्व करते दिख रहे हैं। ओड़िशा में स्थित यह सूर्य मंदिर देखने में बेहद सुंदर और भव्य लगता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक धार्मिक कथाएं
उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का अदभुत नमूना कोणार्क सूर्य मंदिर से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुईं हैं। एक प्रचलित धार्मिक कथा के मुताबिक – भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा ने एक बार नारद मुनि के साथ बेहद अभद्रता के साथ बुरा बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें नारद जी ने कुष्ठ रोग ( कोढ़ रोग) होने का श्राप दे दिया था।
वहीं इस श्राप से बचने के लिए ऋषि कटक ने नारद मुनि के सूर्यदेव की कठोर तपस्या और आराधना करने की सलाह दी थी। जिसके बाद श्री कृष्ण के पुक्ष सांबा ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक कष्ट निवारण देव सूर्य का कठोर तप किया था।
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वहीं इसके बाद एक दिन जब सांबा चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें पानी में भगवान सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसके बाद उन्होंने इस मूर्ति को इसी स्थान पर स्थापित कर दिया, जहां पर आज यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर बना हुआ।
इस तरह सांबा को सूर्य देव की कठोर आराधना करने के बाद श्राप से मुक्ति मिली और उनका रोग बिल्कुल ठीक हो गया, तभी से इस मंदिर का बेहद महत्व है। इस मंदिर से करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है, यही वजह है कि इस मंदिर के दर्शन करने बहुत दूर-दूर से भक्तगढ़ आते हैं।
Konark Sun Temple
Sun God is being worshiped since the Vedic period. At the same time, some big kings also worshiped the Sun God and also built many Sun temples to show their unwavering faith towards the Sun God after sufferings were removed and wishes were fulfilled. And one of them is the Sun Temple of Konark.
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Which is famous all over the country due to its grandeur and amazing design and is one of the oldest historical heritage of the country.
History of Konark Sun Temple
The Konark Sun Temple, dedicated to the Sun God, has also been included in the UNESCO World Heritage Site due to its unique artwork and grandeur.
According to historians, in the 13th century during the reign of the Afghan ruler Mohammad Ghori, when the Muslim rulers had conquered many states, including the North Eastern states of India and the provinces of Bengal, till that time no ruler was able to compete with these powerful Muslim rulers. When Hindu rule did not come forward, then the Hindu rule reached the verge of destruction and it was expected that the Hindu rule would also end in Orissa.
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While sensing this situation, Narasimhadeva, the ruler of the Ganga dynasty gathered courage to fight with the Muslim rulers and to teach them a lesson, he attacked the Muslim rulers with his clever policy.
At the same time, Sultan Iltutmish was sitting on the throne of Delhi, after whose death Nasiruddin Mohammad was made the successor and Tugan Khan was appointed as the governor of Bengal. After this, in 1243 AD, there was a big fight between Narasimha Deva I and Tugan Khan.
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In this battle, Narasimha Dev won by badly repulsing the Muslim army. Let us tell you that Narasimha Dev was a great worshiper of the Sun God, so he decided to build the Konark Sun Temple dedicated to the Sun God in the joy of his victory.
The shape of this world famous Konark Sun Temple is like a grand and huge chariot, in which 24 chariot wheels and 6 horses are seen leading. This Sun Temple located in Odisha looks very beautiful and grand.
Mythological religious stories related to Konark Sun Temple
Many religious and mythological stories are also associated with Konark Sun Temple, a wonderful specimen of Orissa's medieval architecture. According to a popular religious legend – Samba, the son of Lord Shri Krishna, once misbehaved with Narad Muni with extreme indecency, due to which Narad ji cursed him to have leprosy.
At the same time, to avoid this curse, Rishi Katak had advised Narad Muni to do harsh penance and worship the Sun God. After which Shri Krishna's Puksha Samba had done severe penance for about 12 years on the banks of Chandrabhaga river near Mitravan, the God of sufferings.
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And after this, one day when Samba was bathing in the Chandrabhaga river, he found an idol of Lord Surya Dev in the water, after which he installed this idol at the same place, where today the world famous Konark Sun Temple was built. Happened.
In this way, Samba got rid of the curse after doing rigorous worship of Sun God and his disease was completely cured, since then this temple is very important. The faith of crores of devotees is attached to this temple, that is why devotees come from far and wide to visit this temple.
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