Current Date: 18 Nov, 2024

खोल तेरी मुट्ठी

- स्वाति अग्रवाल


माँ राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है,
इब खोल तेरी मुट्ठी,
क्यों जी ने जलावे है,
मां राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है।।

तर्ज – ना स्वर है ना सरगम है।

तेरे होतां क्यों दादी,
टाबर तेरो तरसे,
बिन सावन भादो के,
मेरी आंखड़ल्या बरसे,
क्यों देर करे दादी,
मेरे सबर ना आवे है,
मां राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है।।

चरना में अरज करूँ,
कल्याण करो मेरो,
मानो नालायक हूँ,
पर टाबर हूँ तेरो,
माँ के बिन बेटे की,
कुंण पीड़ मिटावे है,
मां राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है।।

तेरी मुट्ठी में दादी,
किस्मत है बंद मेरी,
इने खोल के माँ कर दे,
तक़दीर बुलंद मेरी,
तेरे ‘हर्ष’ की सुन दादी,
क्यों देर लगावे है,
मां राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है।।

माँ राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है,
इब खोल तेरी मुट्ठी,
क्यों जी ने जलावे है,
मां राणीसती सुनले,
तेरो लाल बुलावे है।।

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