केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड
यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह अपेक्षाकृत प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है।
श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर)
मंदिर के गर्भगृह में अर्धा के पास चारों कोनों पर चार सुदृढ़ पाषाण स्तंभ हैं, जहां से होकर प्रदक्षिणा होती है। अर्धा, जो चौकोर है, अंदर से पोली है और अपेक्षाकृत नवीन बनी है। सभामंडप विशाल एवं भव्य है। उसकी छत चार विशाल पाषाण स्तंभों पर टिकी है। विशालकाय छत एक ही पत्थर की बनी है। गवाक्षों में आठ पुरुष प्रमाण मूर्तियां हैं, जो अत्यंत कलात्मक हैं।
मंदिर का निर्माण इतिहास
पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है।
यह मंदिर मौजूदा मंदिर के पीछे सर्वप्रथम पांडवों ने बनवाया था, लेकिन वक्त के थपेड़ों की मार के चलते यह मंदिर लुप्त हो गया। बाद में 8वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने एक नए मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा।
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था। माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था।
Kedarnath Temple Uttarakhand
This is the largest Shiva temple in Uttarakhand, built by joining huge boulders of cut stones. These boulders are brown in colour. The temple is built on a platform about 6 feet high. Its sanctum sanctorum is relatively ancient which is believed to be around 80th century.
Shri Laxmi Narayan Temple (Birla Mandir)
In the sanctum sanctorum of the temple, there are four strong stone pillars at the four corners near Ardha, through which circumambulation takes place. The ardha, which is square, is polished inside and is relatively new. The assembly hall is huge and grand. Its roof rests on four huge stone pillars. The massive roof is made of a single stone. There are eight male idols in the gallery, which are very artistic.
History of the construction of the temple
According to mythology, Mahatapasvi Nar and Narayan Rishi, the incarnations of Lord Vishnu, used to do penance on the Kedar Shringa of the Himalayas. Pleased with his worship, Lord Shankar appeared and as per his request, granted him the boon to reside forever in the form of Jyotirlinga. This place Kedarnath Parvatraj is situated on the horn named Kedar of the Himalayas.
This temple was first built by the Pandavas behind the existing temple, but due to the ravages of time, this temple disappeared. Later in the 8th century, Adishankaracharya built a new temple, which remained buried under ice for 400 years.
According to Rahul Sankrityayan, this temple is of 12-13th century. Historian Dr. Shiv Prasad Dabral believes that Shaivites have been going to Kedarnath even before Adi Shankaracharya, even then this temple existed. Pilgrimage to Kedarnath is believed to have continued for over a thousand years. It is said that the ancient temple of Kedareshwar Jyotirlinga was built by the Pandavas. It was later renovated by Janamejaya, the grandson of Abhimanyu.
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