Current Date: 26 Dec, 2024

कैसे तोड़ा प्रभु राम ने हनुमान का घमंड (Kaise Toda Prabhu Ram Ne Hanuman Ka Ghamand)

- The Lekh


कैसे तोड़ा प्रभु राम ने हनुमान का घमंड

जब भगवान श्रीराम के लंका जाने के लिए समुद्र पर सेतु बांधने की तैयारी चल रही थी, तब श्रीरामजी की इच्छा समुद्र सेतु पर शिवलिंग स्थापित करने की हुई। उन्होंने हनुमानजी से कहा - कि मुहुर्त के भीतर काशी जाकर भगवान शंकर से लिंग मांग कर लाओ। हनुमान जी क्षणभर में काशी पहुंच गए। इस पर उन्हें गर्व का अनुभव होने लगा। श्रीराम जी को इस बात का पता लग गया। उन्होंने सुग्रीव को बुलाया और कहा कि मुहुर्त बीतने वाला है, अतएव मैं रेत से बनाकर एक लिंग स्थापित कर देता हूं।

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हनुमान जी हो गए विफल 

कुछ ही समय में हनुमान जी भी पहुंच गए। उन्होंने श्रीराम से कहा- काशी भेजकर मेरे साथ ऐसा क्यों किया? श्रीराम ने कहा - 'मुझसे भूल हुई है। मेरे द्वारा स्थापित इस बालू के लिंग को उखाड़ दो। मैं अभी तुम्हारे लाए लिंग को स्थापित कर देता हूं| हनुमानजी ने पूंछ में लपेटकर शिवलिंग उखाड़ने का प्रयास किया। शिवलिंग टस से मस नहीं हुआ। हनुमान जी को शक्ति और गति का जो घमण्ड था वह चकनाचूर हो गया। उन्होंने श्रीराम के चरणों में शीश झुका लिया और अपनी नादानी पर क्षमा मांगी। 

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शिक्षा- इस प्रसंग से यह सीखा जा सकता है कि कभी भी अपने बाहुबल और ज्ञान पर घमंड़ नहीं करना चाहिए क्योंकि इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है।

 

How Lord Rama broke Hanuman's pride

When preparations were going on to build a bridge on the sea for Lord Shri ram to go to Lanka, then Shriramji desired to establish a Shivling on the sea bridge. He told Hanumanji to go to Kashi within the auspicious time and ask for a linga from Lord Shankar. Hanuman ji reached Kashi in a moment. He started feeling proud on this. Shriram ji came to know about this. He called Sugriva and said that the Muhurta is about to pass, so I install a linga made of sand. 

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Hanuman ji failed

Hanuman ji also reached in no time. He said to Shriram, "Why did you do this to me by sending me to Kashi?" Shriram said, "I have made a mistake. Uproot this sand lingam installed by me. I will just install the linga you brought. Hanuman ji tried to uproot the Shivling by wrapping it in his tail. The Shivling did not budge from the toss. The pride of power and speed that Hanuman ji had got shattered. He bowed his head at the feet of Shri Ram and apologized for his ignorance. 

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Moral- It can be learned from this context that one should never be proud of one's muscle power and knowledge because nothing is permanent in this world.

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