हिंदू धर्म में कुल चार वेद और 18 पुराण हैं और इन वेदों पुराणों (ved puran) में देवी-देवताओं के जन्म से लेकर उनके अवतार और अन्य कृत्यों की जानकारी का वर्णन किया गया है। दुविधा की बात तो यह है कि कुछ समान बातों से परे सभी में कहानियों का अलग – अलग तरीके से बखान किया गया है जो इन जानकारियों की विश्वसनीयता को और भी अधिक पेचीदा बना देता है। पुराणों में त्रिदेव कहे जाने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश के जन्म से जुड़ी कहानियों का भी उल्लेख किया गया है।
जहां एक तरफ वेदों में भगवान को एक निराकार रूप का दर्जा दिया गया है वहीं दूसरी तरफ पुराणों में त्रिदेवों के जन्म से संबंधित कहानियों के बारे में बताया गया है। आज हम बात करेंगे देवो के देव महादेव यानी शंकर भगवान की कहानी ( Shankar Bhagwan ki kahani ) के बारे में। भोलेनाथ के जन्म से जुड़ी कई सारी कहानियां हमें पुराणों में पढ़ने को मिलती है इन्हीं कहानियों में से हम जानेंगे कि आखिर शिवजी का जन्म कब हुआ और उनके जन्म के पीछे की वजह क्या थी।
विष्णु पुराण की कथाएँ ( Vishnu Puran ki kathaye ) कहती हैं कि भगवान शिव का जन्म ( Bhagwan Shiv ka janm ) भगवान विष्णु के माथे से उत्पन्न हुए तेज से हुआ है। माथे के तेज से ही जन्में होने के कारण भगवान शंकर सदैव योग मुद्रा में रहते हैं। इतना ही नहीं विष्णु पुराण में वर्णित भगवान शिव के जन्म की कहानी उनके बालपन का एकमात्र वर्णन है क्योंकि और कहीं भी उनके जन्म से जुड़े साक्ष्य नहीं पाए जाते हैं।
विष्णु पुराण ( Vishnu Puran ) में वर्णित भगवान शिव के जन्म की कहानी कुछ इस प्रकार है कि ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या के फल के तौर पर एक रोता हुआ बालक उनकी गोद में आ गया। जब ब्रह्मा जी ने इस रोते हुए बालक को देखा तो यह सवाल किया कि तुम रो क्यों रहे हो?
इसपर वह बालक बोला कि उसका नाम ब्रह्मा नहीं है इसलिए वह रो रहा है। उस नन्हें मासूम बालक की बात को सुन ब्रह्मा ने उसे नाम दिया ‘रूद्र’। इस नाम का अर्थ था रोने वाला। परंतु बालक रूप में बैठे भगवान शिव तब भी चुप न हुए।
इस तरह बालक शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा जी ने आठ नाम दिए थे। वे आठ नाम हैं – रूद्र, भाव, उग्र, भीम, शर्व, पशुपति, महादेव और ईशान। यही वजह है कि भगवान शिव इन सभी नामों से भी जाने जाते हैं।
शिव जी (Shiv Ji) के जन्म के पीछे की इस पूरी कहानी की बात करें तो था कुछ इस प्रकार है। जब संपूर्ण ब्रह्मांड – धरती, आकाश और पाताल जलमग्न था, उस समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अलावा कोई भी अस्तित्व में नहीं था। उस दौरान केवल भगवान विष्णु ही थे जो जल में शेषनाग पर विश्राम करते हुए नजर आ रहे थे। तभी ब्रह्मा जी भगवान शिव की नाभि से प्रकट हुए और फिर भगवान शिव की उत्पत्ति ( Bhagwan Shiv ki Utpatti ) माथे के तेज से हुई।
ब्रह्मा जी से शिव जी को देखा तो पहचानने से साफ इनकार कर दिया। ब्रह्मा के इनकार से भगवान विष्णु को यह भय सताने लगा कि कहीं शिव जी रूठ न जाएं। जिस कारण उन्होंने ब्रह्मा जी को दिव्यदृष्टि प्रदान की जिससे उन्हें शिव जी के बारे में स्मरण हो आया।
सब कुछ स्मरण होते ही ब्रह्मा जी को अपनी गलती का आभास हुआ और उन्होंने शिव जी से माफी मांगी। साथ ही ब्रह्मा जी ने शिव जी से अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद भी मांगा। भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को माफ करते हुए उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया।
इसके बाद भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुए मधु कैटभ के वध के बाद जब ब्रह्मा जी ने संसार की रचना करना आरंभ किया तब उन्हें एक बच्चे की जरूरत पड़ी। इसी समय उन्हें भगवान शिव से मिला आशीर्वाद याद आया। आशीर्वाद को पाने के लिए उन्होंने तपस्या की और फिर एक बालक उनकी गोद में प्रकट हो गया।
विष्णुपुराण की मानें तो शिव जी के पिता ब्रह्मा जी थे जिन्होंने शिव जी से अपने पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद माँगा था। फिर समय आने पर सृष्टि के निर्माण के समय शिव जी ने ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया।
शंकर भगवान के गुरु कौन थे? ( Shankar Bhaghwan ke guru kaun the? )
भगवान शिव स्वयं इस संसार के गुरु माने जाते हैं जिन्होंने इस संसार में गुरु शिष्य की परंपरा का शुभारंभ किया था। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ कहते हैं कि ब्रह्मा जी और शिव जी इस संसार के सबसे पहले गुरु हैं। जहाँ ब्रह्मदेव ने अपने मानस पुत्रों को शिक्षा प्रदान की थी वहीँ भगवान शिव ने अपने सात शिष्यों को शिक्षा प्रदान की थी। इन्हीं सात शिष्यों को सप्तऋषियों का दर्जा दिया गया।
शिव पुराण में जन्म से जुड़ा शिव का रहस्य कहता है कि भगवान शिव का आदि और अंत से कोई संबंध नहीं है। वे काल और मृत्यु के चक्र से बिल्कुल परे हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयंभू हैं जिनका जन्म स्वयं हुआ है। जिस प्रकार शिव स्वयंभू हैं उसी प्रकार नर्मदा नदी से निर्मित होने वाले शिवलिंग को भी स्वयंभू माना जाना जाता है।
इसके पीछे की वजह यह है कि उन शिवलिंग को कहीं से निर्मित नहीं किया गया है वे खुद ही नर्मदा नदी से निर्मित होकर निकले हैं। नर्मदेश्वर शिवलिंग ( Narmadeshwar Shivling )स्वयंभू होने के कारण अपने साथ कई विषेशताओं को लिए हुए है। जिस घर में भी इस स्वयंभू शिवलिंग को पूजा जाता है वहां भगवान शिव का आशीर्वाद सदैव बना रहता है सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं।
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