F:- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय
बलिहारी गुरु अपनों गोविंद दियो बताये कबीरा गोविंद दियो बताये
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय कबीरा पढ़े सो पंडित होय
माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर कबीरा मन का मनका फेर
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान
मोल करो तरवार का, पड़ी रहन दो म्यान कबीरा पड़ी रहन दो म्यान
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय कबीरा दया करे सब कोय
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय कबीरा साधु ना भूखा जाय
तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई
सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ कबीरा जे मन जोगी होइ
माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर
आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर रे भैया यों कही गए कबीर
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि है मैं नाहीं
सब अँधियारा मिट गया दीपक देखा माहि कबीरा दीपक देखा माहि
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर कबीरा फल लागे अति दूर
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